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बिलकिस बानो केस : दोषियों की रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हजारों लोग

आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में महिला शक्ति का खास तौर पर जिक्र किया। इस दौरान प्रधानमंत्री ने महिलाओं के अपमान को लेकर अपनी पीड़ा भी जाहिर की है,लेकिन इसे संयोग कहे या विडंबना की इसी दिन बिलकिस बानो गैंगरेप केस में उम्रकैद की सजा पाने वाले सभी 11 दोषियों को रिहा कर दिया गया। जिसके बाद इनकी रिहाई सवालों के घेरे में आ गया है। बिलक़ीस बानो सहित विपक्षी नेता इस पर गुजरात सरकार से जवाब मांग रहे है।अब महिला एवं मानवाधिकार पर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं समेत 6000 हजार से अधिक नागरिकों ने उच्चतम न्यायालय से आग्रह किया है कि 2002 के बिलक़ीस बानो मामले में बलात्कार और हत्या के लिए दोषी करार दिए गए 11 व्यक्तियों की सजा माफ करने के निर्णय को रद्द करने का निर्देश दिया जाए।

मुंबई की एक विशेष सीबीआई अदालत ने 21 जनवरी 2008 को इन 11 लोगों को बलात्कार और बिलक़ीस बानो के परिवार के सात सदस्यों की हत्या के आरोप में उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इन 11 लोगों की दोषसिद्धि को बॉम्बे हाईकोर्ट ने बरकरार रखा था। वर्ष 2002 में जब बिलकिस के साथ जब सामूहिक बलात्कार किया गया था, उस वक्त वह 21 वर्ष की थीं और उन्हें 5 महीने का गर्भ था। मारे गए लोगों में उनकी 3 साल की बेटी भी शामिल थी।

मानव अधिकार और सामाजिक कार्यकर्ताओं के एक संयुक्त बयान में कहा गया है कि 15 अगस्त, 2022 की सुबह अपने स्वतंत्रता दिवस के दिन में भारत के प्रधानमंत्री ने महिलाओं के अधिकारों, गरिमा और ‘नारी शक्ति’ की बात की थी लेकिन उसी दोपहर, न्याय के लिए अपने लंबे और कठिन संघर्ष करने वाली ‘नारी शक्ति’ की मिसाल बिलक़ीस बानो को पता चला कि उसके परिवार, उसकी 3 साल की बेटी की हत्या करने वाले, उसके साथ सामूहिक बलात्कार कर मरने के लिए छोड़ देने वाले अपराधी आज़ाद हो गए हैं। इसके साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या के दोषी 11 लोगों की सजा माफ करने से हर उस बलात्कार पीड़िता पर हतोत्साहित करने वाला प्रभाव पड़ेगा जिन्हें न्याय व्यवस्था पर भरोसा करने, न्याय की मांग करने और विश्वास करने को कहा जाता है। इसमें यह भी कहा गया है, कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि, केंद्रीय जांच एजेंसी द्वारा किए गए जांच और केस चलने वाले मामले में केंद्र सरकार की सहमति के राज्य सरकार द्वारा कोई छूट नहीं दी जा सकती है। यदि केंद्र सरकार द्वारा इस तरह की रियायत पर विव्हर किया गया, या इसकी अनुमति दी गई, तो यह महिला शक्ति, बेटी बचाओ, महिलाओं के अधिकारों और पीड़ितों के लिए न्याय के दिखावे के खोखलेपन को उजागर करता है। इसलिए यह बयान देश के सर्वोच्च न्यायालय से आग्रह करता है कि से न्याय के साथ हुए इस गंभीर खिलवाड़ को रोके।

इस बयान को जारी करने वालों में सैयदा हमीद, जफरुल इस्लाम खान, रूपरेखा, देवकी जैन, उमा चक्रवर्ती, सुभाषिनी अली, कविता कृष्णन, मैमूना मुल्ला, हसीना खान, रचना मुद्राबाईना, शबनम हाशमी और अन्य शामिल हैं। नागरिक अधिकार संगठनों में सहेली विमेंस रिसोर्स सेंटर, गमन महिला समूह, बेबाक कलेक्टिव, ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव विमेंस एसोसिएशन, उत्तराखंड महिला मंच और अन्य संगठन शामिल हैं।बयान में यह भी कहा गया है कि,‘हम मांग करते हैं कि न्याय व्यवस्था में महिलाओं के विश्वास को बहाल किया जाए। हम इन 11 दोषियों की सजा माफ करने के फैसले को तत्काल वापस लेने और उन्हें सुनाई गई उम्रकैद की सजा पूरी करने के लिए जेल भेजने की मांग करते हैं। सजा माफी का निर्णय तत्काल वापस लिया जाए। बयान में यह भी कहा है कि हत्या और बलात्कार के इन दोषियों को सजा पूरी करने से पहले रिहा करने से महिलाओं के प्रति अत्याचार करने वाले सभी अपराधियों के मन में दंडित किए जाने का डर कम हो जाएगा।

इसी साल जून में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने दोषी ठहराए गए कैदियों की रिहाई के संबंध में देश के राज्य सरकार को एक दिशानिर्देश जारी किए थे जिसके अनुसार , आजादी 75वें वर्ष को लेकर तैयार की गई एक विशेष नीति के तहत जारी किए गए थे।उसके तहद कैदियों को 15 अगस्त, 2022, 26 जनवरी, 2023 और 15 अगस्त, 2023 को विशेष छूट दी जानी थी। लेकिन दिशानिर्देशों में यह स्पष्ट किया गया था कि किसी जघन्य अपराध में आजीवन कारावास की सजा पाने वाले और बलात्कार के दोषी को समय से पहले जेल से रिहाई के हकदार नहीं होंगे। ऐसे में इस निर्णय के बाद कई विशेषज्ञों ने सवाल उठाए हैं कि क्या गुजरात सरकार ने बिलकिस बानो मामले के दोषियों को रिहा करने में केंद्रीय दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया है।

 

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