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बिलकिस बानो के दोषियों के रिहाई से फिर हरा हुआ दो दशक पुराना घाव

आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में महिला शक्ति का खास तौर पर जिक्र किया। इस दौरान प्रधानमंत्री ने महिलाओं के अपमान को लेकर अपनी पीड़ा भी जाहिर की है,लेकिन इसे संयोग कहे या विडंबना की इसी दिन बिलकिस बानो गैंगरेप केस में उम्रकैद की सजा पाने वाले सभी 11 दोषियों को रिहा कर दिया गया। जिसके बाद इनकी रिहाई सवालों के घेरे में आ गया है। बिलक़ीस बानो सहित विपक्षी नेता इस पर गुजरात सरकार से जवाब मांग रहे है।

 

बिलक़ीस बानो का कहना है कि,2 दिन पहले 15 अगस्त 2022 को जब मैंने सुना कि मेरे परिवार और मेरी जिन्दगी बर्बाद करने वाले, मुझसे मेरी तीन साल की बच्ची छीनने वाले 11 दोषियों को आजाद कर दिया गया है तो 20 साल पुराना भयावह मंजर मेरी आंखों के सामने फिर से आ गया है।’‘मेरे पास शब्द नहीं हैं। मैं अब भी स्तब्ध हूं। उन्होंने कहा कि वह सिर्फ इतना ही कह सकती हैं कि, किसी महिला के लिए न्याय ऐसे कैसे खत्म हो सकता है?”मैंने अपने देश के उच्चतम न्यायालय पर भरोसा किया। मैंने तंत्र पर भरोसा किया और मैं धीरे-धीरे अपने भयावह अतीत के साथ जीना सीख ही रही थी कि दोषियों की रिहाई ने मेरी शांति छीन ली है और न्याय पर से मेरा भरोसा डिग गया है।’ ‘मेरा दुख और मेरा टूट रहा भरोसा सिर्फ मेरी समस्या नहीं है, बल्कि इसका राब्ता अदालतों में न्याय के लिए लड़ रहीं सभी महिलाओं से है।’ इसके साथ ही बिलक़ीस बानो ने दोषियों की रिहाई के बाद राज्य सरकार से उनकी और उनके परिवार की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग की है। कहा है कि मैं सरकार से अपील करती हूं कि रिहाई के फैसले को वापस लें। और बिना डर और शांति से जीवन जीने के मेरे अधिकार को लौटाएं।


एक रिपोर्ट के मुताबिक,उस वक़्त बिलक़ीस करीब 20 साल की थीं, जब 2002 के गुजरात दंगों के दौरान अहमदाबाद के पास रणधी कपूर गाँव में एक भीड़ ने उनके परिवार पर हमला किया था। इस दौरान पाँच महीने की गर्भवती बिलक़ीस बानो के साथ गैंगरेप किया गया। उनकी तीन साल की बेटी सालेहा की भी बेरहमी से हत्या कर दी गई। इस दंगे में बिलक़ीस बानो की माँ, छोटी बहन और अन्य रिश्तेदार समेत 14 लोग मारे गए थे।मामले में 21 जनवरी, 2008 को मुंबई की स्पेशल कोर्ट ने 11 लोगों को हत्या और गैंगरेप का दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इस मामले में पुलिस और डॉक्टर सहित सात लोगों को छोड़ दिया गया था। सीबीआई ने बॉम्बे हाई कोर्ट में दोषियों के लिए और कड़ी सजा की मांग की थी। इसके बाद बॉम्बे हाई कोर्ट ने वर्ष 2017 में बरी हुए सात लोगों को अपना दायित्व न निभाने और सबूतों से छेड़छाड़ को लेकर आरोपी ठहराया था।

क्या है पूरा मामला?

15 अगस्त को गुजरात की गोधरा जेल में बंद बिलक़ीस बानो मामले के 11 दोषियों को गुजरात सरकार की माफी योजना के तहत रिहाई दे दी गई। इन दोषियों ने 15 साल से अधिक जेल की सजा काटी थी जिसके बाद उनमें से एक ने अपनी समय से पहले रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक राज्य सरकार के एक पैनल ने सजा की माफी के लिए उनके आवेदन को मंजूरी दी जिसके बाद उनकी जेल रिहाई हो पाई। इंडियन एक्सप्रेस को गुजरात के अतिरिक्त मुख्य सचिव राज कुमार ने बताया है कि जेल में ‘14 साल पूरे होने’ और अन्य कारणों जैसे ‘उम्र, अपराध की प्रकृति, जेल में व्यवहार आदि’ के कारण माफी के आवेदन पर विचार किया गया था। इस मामले के इन 11 लोगों को साल 2004 में गिरफ्तार किया गया था। फिर अहमदाबाद में केस का ट्रायल शुरू हुआ। हालांकि, बिलक़ीस बानो ने आशंका जताई कि गवाहों को नुकसान पहुंचाया जा सकता है और केंद्रीय जांच ब्यूरो द्वारा एकत्रित सबूतों से छेड़छाड़ की जा सकती है। ऐसे में उच्त्तम न्यायालय ने अगस्त 2004 में इस केस को मुंबई ट्रांसफर कर दिया था।साल 2008 में इन सभी आरोपियों को सजा हुई थी, जिसमें राधेश्याम शाह, जसवंत चतुरभाई नाई, केशुभाई वदानिया, बकाभाई वदानिया, राजू भाई सोनी, रमेश भाई चौहान, शैलेशभाई भट्ट, बिपिन चंद्र जोशी, गोविंदभाई नाई, महेश भट्ट और प्रदीप मोढिया के नाम शामिल थे। इन कैदियों में से एक राधेश्याम ने सजा में छूट के लिए आवेदन दिया था। राधेश्याम ने सजा को माफ करने के लिए गुजरात हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। हाईकोर्ट ने ये कहते हुए याचिका खारिज कर दी थी कि उनकी माफी के बारे में फैसला करने वाली ‘उपयुक्त सरकार’ महाराष्ट्र है, न कि गुजरात।राधेश्याम ने तब उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की और कहा कि वह 1 अप्रैल, 2022 तक बिना किसी छूट के 15 साल 4 महीने जेल में रहा। 13 मई को उच्चतम न्यायालय ने कहा कि चूंकि अपराध गुजरात में किया गया था, इसलिए गुजरात राज्य राधेश्याम के आवेदन की जांच करने के लिए उपयुक्त सरकार है। उच्चतम न्यायालय ने गुजरात सरकार को 9 जुलाई, 1992 की माफी नीति के अनुसार समय से पहले रिहाई के आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया और कहा था कि दो महीने के अंदर फैसला किया जा सकता है।एक रिपोर्ट के मुताबिक,अतिरिक्त मुख्य सचिव, राज कुमार ने बताया कि 11 दोषियों ने कुल 14 साल की सजा काट ली है। कानून के अनुसार, आजीवन कारावास का मतलब न्यूनतम 14 साल की अवधि है, जिसके बाद दोषी छूट के लिए आवेदन कर सकता है। फिर आवेदन पर विचार करना सरकार का निर्णय होता है। उन्होंने बताया कि कैदियों को जेल सलाहकार समिति के साथ-साथ जिला कानूनी अधिकारियों की सिफारिश के बाद छूट दी जाती है।


गौरतलब है कि रिहाई के फैसले के बाद अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला संगठन ने बिलक़ीस बानो के दोषियों की रिहाई का विरोध करते हुए प्रधानमंत्री मोदी और गुजरात सरकार से इस माफी का आधार पूछा है। साथ ही इस छुट पर सवाल उठाते हुए इसे सांप्रदायिक हत्यारों और बलात्कारियों को सज़ा से बचाने का एक जरिया करार दिया है। इतना ही नहीं संगठन की अध्यक्ष रति राव, महासचिव मीना तिवारी और सचिव कविता कृष्णनन ने एक साझा बयान जारी करके कहा है कि आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ के दिन बिलक़ीस के बलात्कारियों को मुक्त करने का फैसला कर भाजपा ने इसे देश की महिलाओं के लिए शर्म का दिन बना दिया है। क्या यही अमृतकाल है? क्या मुसलमानों के बलात्कार और हत्या के लिए छूट और आजादी एक इनाम थी.बयान में आगे कहा गया है कि हिंदू-वर्चस्व वासियों के लिए आज खुलेआम मुसलमानों के नरसंहार और बलात्कार का आह्वान करना आम बात हो गई है। बिलक़ीस बानो के बलात्कारियों को आज़ाद करने का फैसला ऐसे लोगों को और प्रोत्साहित करता है।

इतना ही नहीं संगठन का कहना है कि नारीवादी कार्यकर्ताओं और महिला संगठनों पर अक्सर ‘बलात्कारियों के प्रति नरम’ होने का आरोप ‘गोदी मीडिया’ लगता रहा है क्योंकि हम बलात्कार के लिए मौत की सजा का विरोध करते हैं। इस मामले में खुद बिलक़ीस ने कहा था कि वह मौत की सजा की मांग नहीं करेंगी, क्योंकि उन्होंने सैद्धांतिक तौर पर इसका विरोध किया था। अब जबकि उनके अपराधियों को कुछ साल की जेल के बाद रिहा किया जा रहा है, तो क्या ये ‘गोदी मीडिया’ बिलक़ीस के लिए न्याय की मांग को आगे बढ़ाएगा?

अखिल भारतीय जनवादी महिला संगठनकी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व सांसद सुभाषिनी अली ने बिलक़ीस के दोषियों की माफी को लेकर नाराज़गी जाहिर करते हुए कहा कि आज़ादी का महोत्सव तो यही लोग मना रहे हैं जिन्हें हत्या और बलात्कार करने की आज़ादी मिली है। बिलक़ीस का चेहरा बार बार आंखों के सामने तैरता है।सुभाषिनी ने अपने ट्वीट में लिखा, प्रधानमंत्री ने लोगों से महिलाओं का सम्मान करने का आवाहन किया। लेकिन उनकी बातों की सच्चाई सामने आई, बिलक़ीस बानो के साथ बलात्कार करने वालों सभी आरोपियों को जेल से रिहाई कर के मिठाई खिलाई गई।

27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन के एक डिब्बे में आग लगने से करीब 60 लोग मारे गए थे। ये सभी कारसेवक थे, जो अयोध्या से लौट रहे थे। गोधरा कांड के बाद पूरे गुजरात में दंगे भड़क उठे। इन दंगों में 1,044 लोग मारे गए थे। उस समय राज्य में भाजपा की सरकार थी और नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। उन पर और उनकी सरकार पर भी कई आरोप लगे थे, हालांकि कोर्ट उन्हें क्लीन चीट दे चुकी है लेकिन ये मामला अभी भी लगातार सुर्खियों में है। इस पर विशेषज्ञों का कहना है कि प्रधानमंत्री का लाल किले से महिलाओं के सम्मान की बात करना अच्छी बात है। लेकिन जिस राज्य से वे आते है। वहां की सरकार ने रेप के 11 दोषियों को छोड़ दी है।

 

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