- प्रियंका यादव, प्रशिक्षु
गोवा विधानसभा चुनावों में टीएमसी के बेहद निराशाजनक प्रदर्शन बाद अब ममता बनर्जी का जादू उतार की तरफ जा रहा है। त्रिपुरा में खासकर इसका असर देखने को मिल रहा है। कुछ अर्सा पहले भाजपा छोड़ तृणमूल में शामिल हुए पूर्व विधायक आशीष दास के बागी तेवर कुछ ऐसा ही संकेत दे रहे हैं
पिछले वर्ष पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भारी विजय के बाद से ही तृणमूल कांग्रेस पूर्वोत्तर राज्यों में अपने कदम बढ़ा रही है। विशेषकर त्रिपुरा पर टीएमसी की सीधी नजर रही है। उसके लिए त्रिपुरा राजनीतिक दृष्टि से केंद्र बिंदु बन उभरने लगा था। त्रिपुरा में होने वाले निकाय व विधानसभा चुनावों के लिए टीएमसी के कई नेताओं द्वारा त्रिपुरा का दौरा किया गया। पश्चिम बंगाल की जीत को देखते हुए विपक्ष के कई नेता टीएमसी में शामिल हुए। जून 2021 में भाजपा के सीनियर नेता मुकुल रॉय भी बीजेपी का दामन छोड़ टीएमसी में दोबारा शामिल हो गए। उनके आने के बाद टीएमसी ने दावा किया था कि त्रिपुरा भाजपा के कई नेता और विधायक जल्द ही तृणमूल में शामिल हो सकते हैं। त्रिपुरा में हिंसा, भ्रष्टाचार और विकास के मुद्दे को हथियार बना केंद्र सरकार और भाजपा पर लगातार प्रहार कर रही तृणमूल लेकिन अभी तक राज्य की
राजनीति पर अपनी मजबूत पकड़ बनाने में खास सफल नहीं होती दिखाई दे रही है। नवंबर, 2021 में हुए स्थानीय निकाय चुनावों में उसका प्रदर्शन खासा निराशाजनक रहा।
त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में समानता
पश्चिम बंगाल विधानसभा सभा जीत से मजबूत होकर ममता ने पूर्वोत्तर राज्यों में अपनी पकड़ मजबूत करने का काम शुरू किया। त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल के लोगों में रहन-सहन, खान-पान और बोली में काफी हद तक समानता है। खासकर बंगाली हिंदुओं की तादाद यहां सबसे ज्यादा है। वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक राज्य में बाहर से आकर बसने वालों की तादाद लगभग 69 फीसदी है। इनमें से ज्यादातर बंगाली हैं। यही वजह है कि प्रदेश में भले ही सरकारी भाषा त्रिपुरी हो लेकिन उसे बोलने वालों की संख्या मात्र 26 फीसदी है, दूसरी तरफ बांग्ला बोलने वालों की तादाद करीब 63 फीसदी है। ममता बनर्जी के अनुसार बंगाल और त्रिपुरा समान है। हिंदू बंगाली की संख्या वहां काफी है जिन्हें ममता बनर्जी मतदाताओं के रूप में दिखती है। वर्ष गत् नवंबर में हुए निकाय चुनावों में जीत हासिल करने के लिए उन्होंने कई हथकंडे अपनाए। टीएमसी के कई बड़े नेताओं ने राज्य का धुंआधार दौरा किया। बीजेपी को सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए टीएमसी वहां के क्षेत्रीय दलों से हाथ मिलाने के लिए भी तैयार हो गई थी।
विफलता के कारण
इन निकाय चुनावों में लेकिन तृणमूल कांग्रेस को गहरी शिकस्त मिली। टीएमसी के चुनाव प्रचार-प्रसार से लग रहा था कि त्रिपुरा में बीजेपी को बंगाल की तरह कड़ी चुनौती मिलेगी पर चुनाव परिणाम के नतीजे इससे विपरीत दिखाई दिए। इन चुनावों में बीजेपी ने टीएमसी को बड़ा झटका दिया। राजधानी अगरतला नगर निगम सहित कुल 24 नगर निकायों के चुनाव हुए थे। जिसमें 334 वार्डों में से भाजपा ने 329 पर विजय प्राप्त की। टीएमसी केवल एक सीट पा सकी। त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में पूरी सीटों पर बीजेपी का वर्चस्व हो गया। यहां टीएमसी अपना खाता तक नहीं खोल पाई। अमरपुर, सोनमपुरा, मेलाघर, कुमारघाट, धर्मनगर, अगरतला समेत अनेक नगर निगम और पंचायतों में तृणमूल पूरी तरह विफल रही। निकाय चुनाव के परिणामों का अनुमान संभवत ममता ने पहले ही लगा लिया था जिसके चलते ही वो त्रिपुरा निकाय चुनाव को टालना चाहती थीं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में त्रिपुरा निकाय चुनाव को रद्द करने की याचिका दी थी। याचिका में उन्होंने राज्य की बिगड़ी कानून व्यवस्था का हवाला देते हुए चुनाव न कराए जाने की अपील की थी।
तृणमूल का आरोप था कि राज्य भर में टीएमसी कार्यकर्ताओं पर हमले किए गए। ममता बनर्जी के भतीजे और सांसद अभिषेक बनर्जी के अगरतला पहुंचने पर उनकी कार पर हमला किया गया और गो बैक के नारे लगाए गए। तृणमूल के नेताओं की मानें तो पुलिस ने इस मामले में न तो किसी को गिरफ्तार किया था और न ही दूसरी कोई कार्रवाई की थी। राज्य की बीजेपी सरकार या उसके किसी मंत्री ने भी इस मामले की निंदा नहीं की थी। ऐसे में तृणमूल ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई थी कि त्रिपुरा में चुनाव के लिए पुख्ता इंतजाम नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए राज्य सरकार को निकाय चुनाव सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने के निर्देश दिए थे। गोवा विधानसभा चुनावों में टीएमसी के बेहद निराशाजनक प्रदर्शन बाद अब ममता बनर्जी का जादू उतार की तरफ जा रहा है। त्रिपुरा में खासकर इसका असर देखने को मिल रहा है। कुछ अर्सा पहले भाजपा छोड़ तृणमूल में शामिल हुए पूर्व विधायक आशीष दास के बागी तेवर कुछ ऐसा ही संकेत दे रहे हैं। गत् सप्ताह दास ने सोशल मीडिया के जरिए तृणमूल नेतृत्व पर तीखा प्रहार करते हुए कहा कि यदि समय रहते पार्टी नेतृत्व नहीं चेता तो स्थिति बेहद खराब हो जाएगी। उन्होंने अपनी इस पोस्ट में इशारा किया है कि वे जल्द ही पार्टी छोड़ सकते हैं।