- बबिता भाटिया
कुंभ को लेकर सरकार और मेला प्रशासन के तौर-तरीकों से श्रद्धालु मायूस हैं। उन्हें लगता है कि कुंभ मेले की व्यवस्थाएं जनता नहीं, बल्किसरकार के लिए हो रही हैं
कुंभ देश ही नहीं दुनियाभर का पर्व है, लेकिन पहली बार ऐसा लग रहा है कि हरिद्वार कुंभ महज सरकार का होकर रह गया है। न तो श्रद्धालु सरकार के इंतजामों से खुश हैं और न ही साधु-संतों की एक बड़ी बिरादरी। जानकार कहते हैं कि परंपराओं के अनुसार मौनी आमावस्या, मकर संक्रांति और बसंत पंचमी जैसे पर्व कुंभ के महत्वपूर्ण स्नानों में शामिल होने चाहिए थे, लेकिन सरकार की ढीली-ढाली तैयारियों के चलते ऐसा नहीं हो पाया। केंद्र सरकार के लिए एक नारा दिया जाता है कि ‘मोदी है तो मुमकिन है’। लेकिन उत्तराख्ण्ड की त्रिवेंद्र सरकार के लिए अब यह भी मुमकिन नहीं हो पा रहा है कि ‘महा शिवरात्रि’ जैसे पर्व को कुंभ स्नान का पर्व बनाया जा सके।
आगामी 11 मार्च को पड़ रहे महा शिवरात्रि स्नान के लिये प्रदेश सरकार अलग से एसओपी जारी करेगी। कुंभ का पहला शाही स्नान महाशिवरात्रि पर पड़ रहा है, लेकिन इस स्नान को कुंभ अवधि में शामिल नहीं किया जा रहा है।
कुंभ को लेकर सरकार की तैयारियों पर लोग प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे हैं कि सरकार के सामने न धर्म कुछ है और न धर्म गुरु। संत हों या शंकराचार्य, आश्रम हों या अखाड़े, सरकार के सामने सभी नतमस्तक लगते हैं। इसलिए कुंभ 2021 मात्र औपचारिकता बनकर रह गया है। सरकार ने पहले तो 1 करोड़ रुपए हर अखाड़े को देकर अपना और उनका उद्देश्य पूरा किया और दूसरी तरफ अंग्रेजांे के नियम कानून फूट डालो और राज करो जैसी गाइड लाइन चरित्रतार्थ होती नजर आ रही है। बैरागी संत सरकार से बेहद खफा हैं। बैरागी संतों का कहना है कि कुंभ मेले में बैरागियों की उपेक्षा सरकार के लिये अच्छी नहीं है। सरकार ने समय से यह नहीं सोचा कि जब माघ मेले के बाद या फिर कहा जाए कि महाशिवरात्रि स्नान के बाद हजारों की संख्या में बैरागी संत और खालसे हरिद्वार आयेंगे, तो उन्हें कहां ठहराया जायेगा। सरकार की नई गाईडलाइन आई है कि मेले में तंबू और टैन्ट नहीं लगेंगे। सोचने वाली बात यह है कि जब टैंट और तम्बू नहीं लगेंगे तो जो साधु-संत बैरागी कैम्प में आयेंगे वे कहां रहेंगे। उनकी व्यवव्स्था कैसे होगी? एक तरफ तो शासन-प्रशासन भव्य कुंभ के सपने दिखा रहा है और दूसरी तरफ सबको डराने का काम कर रहा है। कभी तो कहते हैं कि कुंभ में बच्चे और बूढ़े नहीं आयेंगे और आये तो बच्चों को कैम्पों में छोड़कर माता-पिता स्नान करने जायेंगे। लेकिन कभी कहते हैं बूढ़े आएंगे ही नहीं। रोज-रोज नई -नई बातें समाने आ रही हैं। आमतौर पर कुंभ में बुजुर्ग ज्यादा आते हैं। लोग अपने बुजुगों को कुंभ स्नान कराने लाते हैं, लेकिन सरकार की गाइडलाइन से बुजुर्ग नाराज हैं। वे सवाल उठाते हैं कि आखिर कुंभ के लिए सरकार को अरबों रुपए खर्च करने की क्या जरूरत है?
बात अपनी-अपनी
अन्य अखाड़ों की तरह ही सरकार बैरागी कैम्प में भी सुविधाएं उपलब्ध कराये। कोरोना के कारण अगर टैंट नहीं लग सकते हैं, तो टीन शेड्स लगाये जायें। सरकार ये भी नहीं कर सकती तो बैरागी संत छाता लगाकर धूनी जमाकर बैठेंगे।
बाबा हठयोगी
प्रयागराज में माघ महीने का स्नान जोर-शोर से चल रहा है। रोज बड़ी-बड़ी रैलियां और नेताओं की सभायें हो रही हैं। वहां पर कोई गाइड लाइन नहीं है, तो फिर हरिद्वार कुंभ में यह सब क्यों ? सरकार और प्रशासन की मंशा समझ में नहीं आ रही है।
जसविन्दर सिंह, निर्मल अखाड़ा
अभी दो तीन दिन में साधु-संतों के साथ बैठक होने जा रही है। जिसमें सभी बातों पर विचार-विमर्श कर निर्णय लिया जाएगा।
दीपक रावत, मेला अधिकारी