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Country Uttarakhand

कांवड़ में भी नहीं रखी मोदी मिशन की लाज

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छता मिशन को उत्तराखण्ड की त्रिवेंद्र सरकार किस तरह धोखा दे रही है, यह हरिद्वार पहुंचे करोड़ों कांवड़ियों ने महसूस किया। शासन-प्रशासन ने इस बार तीन करोड़ कांवड़ियों के लिए सिर्फ 275 शौचालय बनाए। कांवड़ियों को हरकी पैड़ी के आस-पास के इलाकों में ही शौच के लिए विवश होना पड़ा

 

हरिद्वार में लगने वाला कांवड़ मेला साल दर साल दुनिया का सबसे बड़ा आयोजन बनने की ओर अग्रसर है पिछले करीब एक दशक में कांवड़ मेले ने जो विराट रूप धारण किया है। उसकी किसी ने पहले कल्पना भी नहीं की थी। हरियाणा, दिल्ली, पंजाब तथा देश के अन्य कई राज्यों से आए करोड़ों कांवड़िये इस मेले को विशाल रूप प्रदान करते हैं। कुछ दिनां के लिए जैसे पूरा हरिद्वार जनपद जाम सा हो जाता है। हर तरफ भगवाधारी कावड़ियों और उनके वाहनों की भीड़ का सैलाब नजर आता है। हरिद्वार प्रशासन ने इस बार कांवड़ियों की संख्या 3 करोड़ से ऊपर बताई है जिनकी सुरक्षा और यातायात व्यवस्था के लिए 10हजार पुलिसकर्मियों की तैनाती भी की गई।

सुरक्षा और कानून व्यवस्था की दृष्टि से देखें तो छिटपुट लाठीचार्ज की घटनाओं को छोड़कर बाकी सब संतोषजनक रहा। लेकिन बात अगर गदंगी फैलने की करें तो उसे रोक पाने में हरिद्वार प्रशासन पूरी तरह फिसड्डी नजर आया। आसमान में हेलिकॉप्टर से भले ही सरकार ने कांवड़ियों पर फूलां की बारिश कराई हो, लेकिन जमीन पर हर तरफ फैली गंदगी, कूडे़ के ढेर, प्रतिबंधित पॉलिथिन के अंबार कांवड़ मेले की सफाई व्यवस्था को बैकफुट पर ले आई। सबसे ज्यादा निराश कर देने वाला विषय था लाखों लोगों के खुले में शौच करना। इसकी वजह से हर की पैड़ी के आसपास का पूरा क्षेत्र भंयकर बदबू से सराबोर था। गौर से देखा जाए तो इतनी बड़ी मात्रा में खुले में शौच होना जिला प्रशासन का बड़ा फेलियर है, पर जिस तरह की व्यवस्था कांवड़ मेले में जिला प्रशासन द्वारा की गई थी उसके हिसाब से ये स्वाभाविक भी था।

कांवड़ मेले से पूर्व ही जिला प्रशासन चार करोड़ कावड़ियों का हरिद्वार में पहुंचना तय मान रहा था, पर आश्चर्य की सारी सीमाएं तब टूट जाती हैं जब पता चलता है कि चार करोड़ कांवड़ियों के लिए केवल 275 शौचालय बनाए गए। अब ये 275 शौचालय आखिर कितनी देर तक करोड़ों कांवड़ियां से धर्मनगरी को खुले में शौच से मुक्त कराने में कारगर साबित हो सकते थे? अंत में वही हुआ जिसकी उम्मीद थी हर की पैड़ी के आस-पास के क्षेत्रों रोड़ीबेल वाला, पंतद्वीप, बैरागी कैंप, आदि कई जगह खुले में शौच का ऐसा नजारा देखने को मिला जैसा शायद ही कभी देखने को मिला हो, हर तरफ कांवड़ियों के झुंड़ के झुंड़ खुले में शौच कर रहे थे और जिले के प्रशासनिक अधिकारी आंखे मूंदे हुए थे। परिणामस्वरूप 29 जुलाई तक पूरा क्षेत्र खुले में शौच की दुर्गंध से सराबोर हो गया। हर खाली पड़ी जगह पर शौच के ढेर लगे हुए थे। आलम ये था कि आस-पास मौजूद लोग इस भंयकर गदंगी और बदबू से त्रस्त हो चुके थे। इस दुर्गंध ने हर की पैड़ी सहित आस-पास के पूरे क्षेत्र को अपने कब्जे में ले लिया था।


ऐसा भी नहीं था कि हरिद्वार पहुंचे कांवड़ियों को खुले में शौच का शौक था, पर विवशता के चलते उन्हें ये करना पड़ रहा था। खुले में शौच कर आये दिल्ली निवासी अजय शर्मा से जब बातचीत की गई तो उन्हांने अपनी विवशता बताते हुए कहा कि वे करीब पांच घंटे से शौच जाने का प्रयास कर रहे थे। उन्होंने कई किलोमीटर पैदल चलकर शौचालय ढूंढने का प्रयास भी किया, पर उन्हें पूरे क्षेत्र में केवल दो शौचालय मिले। वहां भी पचास-पचास लोग पहले ही लाईन में थे। कुछ लोग तो वहां पिछले तीन घंटे से शौचालय के बाहर लाइन में इंतजार कर रहे थे कि कब उनकी बारी आएगी। ऊपर से शौचालय वाला भी मनमाना शुल्क वसूल रहा था अंत में जब कहीं जगह नहीं मिली तो मुझे यहां खुले में शौच को विवश होना पड़ा।

यही नजारा हमें पंतद्वीप में भी देखने को मिला जहां खुले पडे़ घास के मैदान को सबसे बड़ा शौच केंद्र बना दिया गया हालांकि यहां कांवड़ बाजार के ठेकेदार द्वारा 50 अस्थाई शौचालय का निर्माण कराया जाना था, परंतु उसने केवल खानापूर्ति कर टीन की दीवारें खड़ी कर ऐसे शौचालय बनाए जिनमें न तो पानी था और न रोशनी। परिणामस्वरूप ये शौचालय कुछ देर के बाद ही इस्तेमाल करने लायक नहीं रह गए, क्योंकि इनके भीतर गंदगी के ढेर लग गए। विडंबना ये भी रही कि इन शौचालय की सफाई की भी कोई व्यवस्था नहीं की गई थी।

खुले में शौच का ऐसा ही नजारा पंतद्वीप पार्किंग में देखने को मिला जहां नियमतः पार्किंग ठेकेदार को अस्थाई शौचालयों का निर्माण कराया जाना था, पर उसने कोई शौचालय नहीं बनवाया। जिसका खामियाजा सीधा हर की पैड़ी के सबसे नजदीकी गंगा घाटों को भंयकर गदंगी के रूप में भुगतना पड़ा। हालांकि नगर निगम के अधिकारी कांवड़ मेले के दौरान 275 अस्थाई शौचालयां बनवाने का दावा कर अपना दामन बचाते नजर आए, पर आश्चर्यजनक है कि पूरा कांवड़ मेला छानने के बाद भी इतनी बड़ी संख्या में शौचालय कहीं दिखाई नहीं पडे़। हां, कहीं- कहीं कुछ शौचालय जरूर मिले, जो नगर निगम द्वारा संचालित थे।

बातचीत में सहायक नगर आयुक्त संजय कुमार ने बताया कि हमने कई जगह अस्थाई शौचालयां की व्यवस्था की है, जहां शौच करना निःशुल्क है, पर हद तो तब हो गई जब इन शौचालयों से भी वहां मौजूद कर्मचारियां ने लोगों से मोटा शुल्क वसूला।

 

बात अपनी-अपनी

जब अफसरशाही हावी रहेगी तो ऐसे ही दुष्परिणाम देखने को मिलेंगे। बेशक कांवड़ मेले में खुले में शौच से भंयकर गंदगी फैली है जिसके लिए सरकार की गलत नीतियां भी जिम्मेदार हैं। विडम्बना देखिए कि हरिद्वार नगर निगम क्षेत्र में कांवड मेला हुआ रुड़की में नहीं, जबकि हरिद्वार नगर निगम को पांच लाख और रुड़की नगर निगम को दस लाख रुपए दिए गए। बैरागी कैंप पार्किंग में डंडे मार-मार कर जबरन भेजा गया ताकि उनसे पार्किंग शुल्क वसूला जा सके। ये सब किसके इशारे पर हुआ, सब जानते हैं। नतीजा वहां भी लाखों लोगों को खुले में शौच कर गंगा किनारे गंदगी फैलाने को विवश होना पड़ा।
अनिता शर्मा, मेयर नगर निगम हरिद्वार

यह मामला हमारी भी समझ से परे है कि रुड़की नगर निगम को 10 लाख और हमें केवल 5 लाख रुपए शासन द्वारा दिए गए। धन की कमी के कारण भी हम अधिक शौचालय नहीं बना पाए। बात अगर कांवड़ मेले के बाद की करें तो अभी भी करीब 16000 मीट्रिक टन कूड़ा यहां जमा है। जिसे निस्तारण करने के लिए हमें 65 लाख रुपए की धनराशि की आवश्यकता है, जबकि हमारे पास पार्किंग और शासन द्वारा भेजी गई सहायता मिलाकर केवल 22-23 लाख रुपए ही हो पाएंगे। अब बड़ा सवाल यह भी है कि आखिर इतनी भारी मात्रा में जमा कूड़े का निस्तारण पैसों की कमी के चलते कैसे होगा?
उदय सिंह राणा, एमएनए नगर निगम हरिद्वार

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