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चरम पर पहुंचा जातिवाद

भारतीय समाज की सबसे बड़ी समस्या जातिवाद है। जो बिना किसी धार्मिक भेदभाव के लगभग सभी धर्मों में व्याप्त है। जो खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। आज भी जातिवाद पर जमीनी हकीकत कुछ और है। जातियों के नाम पर आज भी वैसा ही भेदभाव होता है जैसा सदियों पहले हुआ करता था। इन सभी बातों को इसलिए कुरेद रहे हैं क्योंकि कुछ दिनों पहले उत्तर प्रदेश के राजधानी लखनऊ में एक कथित उच्च जाति के व्यक्ति द्वारा जोमैटो डिलीवरी ब्वॉय की इसलिए पिटाई कर दी जाती है क्योंकि वह दलित है।

दरअसल, लखनऊ के आशियाना निवासी विनीत रावत जोमैटो में डिलीवरी ब्वॉय हैं। गत दिनों 18 जून की रात उन्हें आशियाना में ही अजय सिंह नाम के कस्टमर के यहां डिलीवरी देने के लिए भेजा। वे डिलीवरी लेकर पहुंचे। फिर उनके साथ जाति के नाम पर दुर्व्यवहार किया गया। पुलिस के मुताबिक विनीत का आरोप है कि जैसे ही उन्होंने अजय सिंह को अपना नाम विनीत रावत बताया, इस पर वह भड़क गए। उन्होंने गालियां देते हुए कहा-अब हम तुम लोगों का छुआ सामान लेंगे क्या? इस पर विनीत ने कहा अगर आपको खाना नहीं लेना है तो कैंसिल कर दीजिए, गालियां मत दीजिए।

इस पर, पहले तो उन्होंने खाने का पैकेट फेंक दिया, इसके बाद मुंह पर तंबाकू थूक दिया। जब विनीत ने विरोध किया तो अजय और उनके परिवार के सदस्यों ने उसकी डंडों से खूब पिटाई की। विनीत जैसे-तैसे वहां से भागे और पुलिस को सूचना दी। थोड़ी देर बाद पहुंची पुलिस टीम ने विनीत को उसकी गाड़ी दिलवाई और कहा कि थाने जाकर केस दर्ज करा दे।

जाति को लेकर भेदभाव का यह पहला मामला नहीं है। पिछले दिनों ऐसे कई मामले देखने को मिले हैं। हमारे सामंज में जातिगत आधार पर वर्गीकरण आज भी मौजूद स्पष्ट नजर आता है। एक अर्सा पहले ही उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के चरथावन थाना क्षेत्र के पावती खुर्द गांव के पूर्व मुखिया राजबीर त्यागी ने गांव में रहने वाले दलितों के घर के आगे मुनादी करवाई थी और मुनादी में कहा गया कि दलितों का उनके खेत में और उनके ट्यूबवेल पर प्रवेश वर्जित है। इसके बाद यह वीडियो तेजी से वायरल हुआ और पुलिस को कार्रवाई करनी पड़ी थी।

गौरतलब है कि भारत में जातिगत भेदभाव के मामले लगातार सामने आते रहे हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में दलितों के साथ भेदभाव के मामले में कमी आती नहीं दिख रही है। यह बात सही है कि संविधान और कानूनी प्रावधान भी जातीय भेदभाव, उत्पीड़न और अन्याय को खत्म करने में बहुत सफल नहीं हो पाते हैं क्योंकि सत्ता राजनीति को संचालित करने वाली शक्तियां उन अधिकारों और दमित जातियों के बीच में अवरोध की तरह बनी रहती है। यही वजह है कि आईएएस जैसी सर्वोच्च सिविल सेवा में पहुंच जाने के बाद भी अनुसूचित जाति के उम्मीदवार को ताने सहने पड़ते हैं, उच्च शिक्षा हासिल करने का सामाजिक दंश झेलना होता है, समाज में अपनी आर्थिक हैसियत बना लेना एक गंभीर अपराध समझा जाता है और उच्च जाति में प्रेम और विवाह जैसी कोशिश तो मौत के मुंह में धकेल सकती है।

इस मामले पर इंडिया टुडे से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार महेश डोनिया का कहना है कि ‘नए भारत की जो तस्वीर नजर आ रही है उसमें जातिवाद की दुर्गंध है। हमारा पढ़ा- लिखा समाज फूहड़ समाज है। जो इस कदर गिर गया है जिसकी कोई सीमा नहीं है। खासकर जब से केंद्र में मोदी सरकार, आरएसएस की सरकार आई है तब से ऐसी घटनाएं लगातार बढ़ गई हैं और शायद इसलिए भी बढ़ गई है क्योंकि पूर्व में जो सरकारें थी वह थोड़ा संवेनदशील थी। उस समय दलितों पर हो रहे अत्याचारों और उनके खिलाफ हुए मामलों पर कुछ कार्रवाई होने की संभावनाएं थी और इसका एक कारण यह भी है कि जो बहुजन आंदोलन निरंतर कमजोर होता चला गया तो उससे भी लगता है कि जो फूहड़ समाज है।

पिछले सात-आठ सालों में यही हुआ है। जिस तरह पिछले वर्ष एक साठ वर्ष के व्यक्ति ने नौ साल के दलित शिल्पकार बच्ची से बलात्कार करने की कोशिश की। उसके समर्थन में पूरा गांव खड़ा हो गया था। अभी पिथौरागढ़ में एक लड़की के साथ कुछ लड़कों ने सामूहिक बलात्कार कर दिया तो पूरा समाज उनके साथ खड़ा दिखा जिसकी एक लड़के ने रिपोर्टिंग की तो उसे पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया और दो महीने बाद उसे जमानत मिली। यही ओवर ऑल सवर्ण समाज का चरित्र रहा है। हम इस घटना को आज छिट-पुट घटना समझ कर खारिज करेंगे तो यह गलत होगा। इस समय यह विशेष रूप से दो कोमो के प्रति घृणा देखने को मिलेगी। इस समय जो भारतीय समाज घृणा से भरा हुआ है वह हिंदू और मुस्लिम दलित। इन सबके लिए पूरी तरह से घृणा भरी हुई है। आप टीवी डिबेट में देख लीजिए, मुसलमानों के खिलाफ क्या-क्या बोला जा रहा है।’

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