भारत और नेपाल के मध्य सीमा को लेकर हुआ विवाद कोई नई बात नहीं है। लेकिन इस विवाद का इतनी जल्दी उभरके सामने आना ये एकदम नई बात है। भारत ने पिछले साल नवंबर में जम्मू-कश्मीर का विभाजन कर दो केंद्र शासित प्रदेश बनाए और अपना नया नक्शा जारी किया। इस नक्शे में कालापानी क्षेत्र भी शामिल था।
इसे लेकर नेपाल ने इसे तीखी आपत्ति दर्ज कराई और कहा कि भारत अपना नक्शा बदल ले क्योंकि कालापानी नेपाल का इलाक़ा है। अब फिर से पाँच महीने बाद दोनों देशों के बीच लिपुलेख को लेकर तनाव पैदा हो गया है। नेपाल अब भारत के साथ चल रहे विवाद के बीच एक नया नक्शा जारी करेगा। इस नक्शे में नेपाल लिंपियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख को अपना क्षेत्र दर्शाएगा।
नेपाल की राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने यह घोषणा की है। संघीय संसद में वित्त वर्ष के लिए नेपाल सरकार की नीतियां और कार्यक्रम पेश करते हुए राष्ट्रपति बिद्या भंडारी ने दोहराया कि यह विवादित क्षेत्र नेपाल के हैं। मौजूदा विवाद के समाधान के लिए उपयुक्त कूटनीतिक उपाय किए जाएंगे।
संसद में राष्ट्रपति द्वारा नीतियों और कार्यक्रमों पर पढ़े गए दस्तावेज में यह कहा गया कि लिंपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी ये सब नेपाल के क्षेत्र हैं और उन्हें हासिल करने के लिए ठोस कूटनीतिक पहल भी की जाएगी। एक नया राजनीतिक नक्शा भी जल्दी ही जारी कर जाएगा। इस क्षेत्र को लेकर भारत और नेपाल के मध्य पिछले साल ही विवाद पैदा हो गया था। इस पर नई दिल्ली ने एक नया नक्शा प्रकाशित किया जिसमें कालापानी को उसकी सीमा में दर्शाया गया था।
सड़क निर्माण पर आपत्ति
इसपर काठमांडू ने अपना विरोध भी जताया था। आज ही सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे लिपुलेख दर्रे से पांच किलोमीटर पहले तक सड़क निर्माण पर जताई गई नेपाल की आपत्ति पर हैरानी जताते हुए इसके पीछे चीन की ओर इशारा किया। उन्होंने कहा कि ऐसी संभावना है कि नेपाल ऐसा किसी और के कहने पर कर रहा है। सेना प्रमुख नरवणे का कहना था कि इस मसले पर कोई विवाद नजर ही नहीं आता है। भारत अपने क्षेत्र में ही काम कर रहा है।
रिपोर्टों के अनुसार, नेपाल कालापानी क्षेत्र के छांगरु में स्थायी रूप से 160 सैनिकों की टुकड़ी को तैनात करेगा। साथ ही अंतरराष्ट्रीय सीमा से करीब 12 किमी दूर एक छावनी का निर्माण भी करेगा। भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार, नेपाल कालापानी क्षेत्र में तैनात सैनिकों के लिए एक बेहतर व्यवस्था करने में जुटा है। इसी क्रम में उसने एक स्थायी छावनी निर्माण की योजना भी तैयार की है।
लिपुलेख नेपाल के उत्तर-पश्चिम में स्थित है। यह भारत, नेपाल और चीन की सीमा से लगता है। इस इलाक़े को भारत उत्तराखंड का हिस्सा मानता है तो वहीं नेपाल इसे अपना हिस्सा मानता है। नेपाल ने काठमांडू में स्थित भारतीय दूतावास से राजदूत को समन किया और अपनी आपत्ति दर्ज कराई। वहीं भारत ने लिपुलेख में क़रीब 5,200 मीटर रोड का उद्घाटन किया है और इसे लेकर नेपाल के लोगो में ग़ुस्सा हैं।
पीस एंड फ्रेंडशिप संधि
सत्ताधारी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी कहती है कि लिपुलेख में भारत का सड़क बनाना उसकी संप्रभुता का उल्लंघन है। नेपाल की ओर से जारी इस बयान पर प्रधानमंत्री खड़गा प्रसाद शर्मा ओली के हस्ताक्षर भी हैं। भारत और नेपाल के मध्य 1950 में हुए पीस एंड फ्रेंडशिप संधि को लेकर भी नेपाली पीएम केपी ओली सख़्त रहे हैं। उनका ये कहना है कि यह संधि नेपाल के हक़ में नहीं है।
इस संधि के विरुद्ध प्रधानमंत्री ओली नेपाल के चुनावी अभियानों में भी बहुत कुछ बोल चुके हैं। ओली यह चाहते हैं कि भारत के साथ यह संधि जल्द से जल्द ख़त्म हो। दोनों ही देशों के बीच सीमा विवाद एक बहुत बड़ा मुद्दा है। सुस्ता और कालापानी इलाक़े को लेकर दोनों देशों के बीच विवाद बढ़ता जा रहा है। चार साल पहले दोनों देशों के मध्य सुस्ता और कालापानी को लेकर विदेश सचिव के स्तर की बातचीत को लेकर सहमति बनी थी लेकिन अभी तक इस पर एक भी बैठक नहीं हुई है। ओली जब भारत आते हैं तो उन पर ये दबाव होता है कि वह इन दोनों मुद्दों पर बातचीत जरूर करें परन्तु द्विपक्षीय वार्ताओं में इनका ज़िक्र नहीं हो पाता।
लिपुलेख में सड़क का उद्घाटन
पिछले ही हफ़्ते शुक्रवार को वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के जरिए भारतीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने लिपुलेख में सड़क का उद्घाटन किया था और तब से इसे लेकर नेपाल में आपत्ति जताई जा रही है। इसी क्रम में सोमवार को नेपाल ने काठमांडू में भारतीय राजदूत विनय मोहन क्वात्रा को एक ‘डिप्लोमैटिक नोट’ भी सौंपा।
लिपुलेख की इस सड़क को कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जाने वाले हिंदू, बौद्ध और जैन तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए तैयार किया गया है। भारतीय रक्षा मंत्रालय की तरफ से जारी एक बयान में यह कहा गया था, “इस सड़क की मदद से कैलाश मानसरोवर की यात्रा महज एक हफ़्ते में की जा सकेगी. पहले इसमें दो-तीन हफ़्ते लगते थे।”
बयान के अनुसार, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने लिपुलेख की इस सड़क को प्रधानमंत्री मोदी के ‘सुदूर इलाक़ों में विकास का ख़ास विज़न’ का प्रमाण बताया था। भारत ने नेपाल की चिंताओं को यह कहकर ख़ारिज कर दिया कि लिपुलेख “पूरी तरह से भारतीय सीमा में’ स्थित है। भारत और नेपाल के बीच में इस मुद्दे पर अभी तक कोई भी द्विपक्षीय वार्ता तो नहीं हुई है परन्तु इससे दोनों देशों के बीच जारी तनाव का पता ज़रूर चलता है। आम तौर पर नेपाल और भारत सीमा से जुड़े अपने आपसी विवादों को अब तक शांतिपूर्ण और कूटनीतिक बातचीत के ज़रिए सुलझाते रहे हैं।
जबकि साल 2015 से ही दोनों देशों के बीच तनाव चल रहा है। भारत ने जब नेपाल के नए संविधान का विरोध किया था और इसके जवाब में नेपाल ने अनाधिकारिक रूप से आर्थिक नाकेबंदी लगा दी थी। पिछले वर्षो में नेपाल ने भी भारत की बजाय चीन पर ज़्यादा भरोसा किया है कि जबकि ऐतिहासिक रूप से नेपाल के सबसे महत्वपूर्ण कूटनीतिक सम्बन्ध भारत से ही रहे हैं। एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर नेपाल के विदेश मंत्रालय ने लिपुलेख में हुए भारत के सड़क उद्घाटन पर अपनी आपत्ति जताई है।
लिपुलेख पर नेपाल का दावा
नेपाल लिपुलेख पर अपना दावा कर रहा है और भारतीय विदेश मंत्रालय का कहना है कि ये सड़क कैलाश मानसरोवर की यात्रा के लिए पहले से बनी सड़क के दायरे में है। इस मसले पर नेपाल की प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली सरकार की भी आलोचना हो रही है। आलोचकों का यह कहना है कि नेपाल ने कालापनी मुद्दे को भारत के साथ ठीक प्रकार से नहीं सुलझाया और लिपुलेख में रोड का उद्घाटन नेपाल सरकार की इसी निष्क्रियता का ही नतीजा है।
नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ने काठमांडू में भारतीय राजदूत विनय मोहन क्वात्रा को अपने दफ़्तर बुलाकर लिपुलेख मसले पर नाराज़गी ज़ाहिर की और साथ ही एक डिप्लोमैटिक नोट भी थमाया। नेपाल के विदेश मंत्रालय द्वारा जारी किए गए एक संक्षिप्त बयान के मुताबिक, विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ज्ञवाली ने विदेश मंत्रालय में हुई एक बैठक में भारतीय राजदूत को सीमा से जुड़े मसले पर नेपाल के रुख़ के बारे में जानकारी दी और इस सिलसिले में एक डिप्लोमैटिक नोट सौंपा।
इसी प्रकार नई दिल्ली स्थित नेपाली दूतावास ने भी भारतीय विदेश मंत्रालय को उस डिप्लोमैटिक नोट की एक प्रति सौंपी है। विशेषज्ञों के मुताबिक नेपाल ने भारत को जो नोट सौंपा है वो न ही औपचारिक कूटनीतिक संदेश है और न तो कोई अनौपचारिक नोट। ये नोट इन दोनों के बीच कहीं नहीं आता है। इस तरह के नोट में किसी के हस्ताक्षर नहीं होते और आम तौर पर एक संस्थान दूसरे संस्थान को ऐसे नोट सौंपती हैं।
नेपाली अख़बार काठमांडू पोस्ट के मुताबिक, दो नेपाली अधिकारियों ये का कहना है कि विदेश मंत्री ज्ञवाली ने भारतीय राजदूत को जो नोट सौंपा वो केवल सीमा विवाद पर नेपाल का रुख़ स्पष्ट करने के लिए था। नेपाली विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने काठमांडू पोस्ट से नाम ज़ाहिर न किए जाने की शर्त पर बताया कि इस नोट में नेपाल और भारत के सकारात्मक सम्बन्धों का भी ज़िक्र किया गया है।
उन्होंने यह भी कहा, “नेपाल ने बताया है कि वो भारत के साथ अपने सम्बन्धों को ख़ास अहमियत देता है। इसके साथ ही नेपाल ने नवंबर 2015 से लेकर अब तक हुई अप्रत्याशित घटनाओं पर नाराज़गी भी जताई है। इस नोट में नेपाल ने भारत से लिपुलेख सड़क का निर्माण रोकने की अपील की है।” अधिकारी के अनुसार नोट में सीमा विवाद के ऐतिहासिक संदर्भ और सुगौली संधि का भी ज़िक्र किया गया है। नोट में यह भी कहा गया है कि कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा पर नेपाल का ही हक़ है।
विदेश मंत्रालय ने इस पूरे विवाद को सुलझाने के लिए भारत के समक्ष जल्द से जल्द एक बातचीत का प्रस्ताव भी रखा है। लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा को लेकर काफ़ी पहले से विवाद चल रहा है परन्तु नेपाल ने साल 2015 में पहली बार इस मुद्दे को भारत और चीन के समक्ष उठाया जब दोनों देश लिपुलेख दर्रे से एक व्यापारिक मार्ग खोलने को लेकर सहमत हुए थे। लिपुलेख नेपाल के उत्तर-पश्चिम में स्थित ज़मीन का एक टुकड़ा है जो की नेपाल, भारत और तिब्बत के मध्य में स्थित है।
नेपाल का जल्द वार्ता पर जोर
भारत के द्वारा इस लिंक रोड को खोलने के बाद से ही नेपाल में लगातार विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं। पुलिस ने इस सिलसिले में काठमांडू के अलग-अलग हिस्सों से 100 से ज़्यादा प्रदर्शनकारियों को गिरफ़्तार भी किया है।
नेपाल में सत्ताधारी और विपक्षी पार्टियों, दोनों के ही नेता भारत के सामने सीमा विवाद का मसला न पेश करने के लिए नेपाल सरकार की आलोचना कर रहे हैं। आलोचको ने इसे नेपाल सरकार की ‘कूटनीतिक असफलता’ बताई हैं। नेपाली सांसदों ने रविवार को संसद में भी यह मुद्दा उठाया।
इसके बाद नेपाली संसद की ‘इंटरनेशनल रिलेशन्स कमिटी’ ने रविवार को विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ज्ञवाली को इस मुद्दे पर चर्चा के लिए समन भेजा गया था। सोमवार की सुबह ज्ञवाली ने कहा कि नेपाल भारत के साथ जल्द से जल्द इस मामले पर बात करना चाहता है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत के साथ यह मुद्दा सुलझा लेने के बाद नेपाल चीन से भी इस बारे में बात करेगा।
इसके कुछ ही घंटों बाद विदेश मंत्रालय ने भारतीय राजदूत विनय मोहन क्वात्रा को डिप्लोमैटिक नोट भी सौंप दिया। काठमांडू में भारतीय दूतावास ने भी इस बारे में सोमवार को जानकारी दी।
भारतीय दूतावास की तरफ से जारी बयान में कहा गया कि “भारतीय राजदूत ने आज नेपाली विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ज्ञवाली से मुलाक़ात की. भारतीय विदेश मंत्रालय ने ट्वीट कर बताया कि क्वात्रा ने विदेश मंत्री को सीमा विवाद के मुद्दे पर भारत के रुख़ से अवगत कराया. उन्होंने भारतीय विदेश मंत्रालय के जवाब की एक प्रति भी विदेश मंत्री को सौंपी.”
भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपने एक बयान में कहा, “कोविड-19 के संक्रमण की चुनौतियों से सफलतापूर्वक निबटने के बाद दोनों पक्ष इस बारे में बातचीत करेंगे.” जबकि नेपाल इस बारे में जल्दी वार्ता कराने पर ज़ोर दे रहा है।
सोमवार को नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ज्ञवाली ने कहा कि नेपाल भारत के साथ वार्ता के लिए कोरोना संकट ख़त्म होने का इंतज़ार नहीं कर सकता। उन्होंने अपनी इंटरनेशनल रिलेशंस कमिटी में बताया, “हम भारत के साथ प्रधानमंत्री स्तर या विदेश मंत्री स्तर पर वार्ता करने के लिए तैयार हैं.”
विवाद का मुख्य कारण
नेपाल और ब्रिटिश भारत के मध्य 1816 में हुई एक संधि ने माकाली नदी का निर्धारण किया। जो नदी कालापानी के माध्यम से चलती है, यह नदी दो पड़ोसियों के बीच एक सीमा के रूप में चलती है। जबकि इस नदी की कई सहायक नदियाँ भी हैं जो कालापानी में जाकर मिलती हैं। इसी कारण से भारत का यह दावा है कि ये नदी कालापानी में शुरू होती है, परन्तु नेपाल का यह कहना है कि यह नदी लिपु लेख से शुरू होती है, जो इसकी अधिकांश सहायक नदियों का भी स्रोत है।
दोनों देशों के बीच पिछले साल ताजा तनाव देखने को मिला जब नवंबर में जारी भारत के एक नए नक्शे में नेपाल के संकट के लिए कालापानी को उत्तराखंड राज्य के भीतर दिखाया गया था। लिपु लेख दर्रा चीन की सैन्य टुकड़ी की निगरानी रखने के लिए एक महत्वपूर्ण बिंदु के रूप में भारत के लिए रणनीतिक महत्व रखता है।
काठमांडू में भारतीय दूतावास के बाहर शनिवार को कई लोगों ने सड़क पर विरोध प्रदर्शन करते हुए एक राष्ट्रव्यापी कोरोनो वायरस लॉकडाउन के बावजूद भी इकट्ठा होने का विरोध किया। समाचार एजेंसी एएफपी के मुताबिक, कम से कम 38 प्रदर्शनकारियों को हिरासत में ले लिया गया है। नेपाल में कई लोगों ने हैशटैग # बैकऑफइंडिया के साथ ट्विटर भी लिया।