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कोरोना वैक्सीन को लेकर उठे सवाल 

पिछले एक साल से देश में कोरोना वायरस का प्रकोप जारी है। केन्द्र व राज्य सरकारें मिलकर इसकी रोकथाम के लिए लगातार प्रयास कर रही हैं ।इस बीच कोरोना वैक्सीन के फ्रंट पर कल तीन जनवरी को देश के लिए अच्छी खबर आई। ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने दो वैक्सीन सीरम इंस्टिट्यूट की कोविशील्ड और भारत बायोटेक की कोवैक्सीन के भारत में इमर्जेंसी इस्तेमाल को मंजूरी दे दी । पीएम मोदी ने भी इसको लेकर ट्वीट करके खुशी जताई ।

कांग्रेस के तीन नेताओं आनंद शर्मा, जयराम रमेश और शशि थरूर ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन से यह समझाने के लिए कहा कि भारत बायोटेक के कोविड-19 टीके को सीमित इस्तेमाल की मंजूरी दिए जाने से पहले अनिवार्य प्रोटोकॉल और  आंकड़ों के सत्यापन के पैमाने का पालन क्यों नहीं किया गया। वहीं, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष  एवं उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख़्यमंत्री  अखिलेश यादव ने कहा कि टीकाकरण कार्यक्रम एक संवेदनशील प्रक्रिया है और सरकार इसे कोई सजावटी-दिखावटी इवेंट न समझे और पुख्ता  इंतजामों के बाद ही इसे शुरू करे। ये लोगों के जीवन से जुड़ा विषय है, इसलिए इसमें बाद में सुधार का खतरा नहीं उठाया जा सकता है।

हालांकि, सरकार का दावा है कि वैक्सीन को अनुमति देने से पहले हर स्टैंडर्ड प्रॉटोकॉल का पालन किया गया है। ऐसे में आपके भी मन में कुछ सवाल उठ रहे होंगे। एक सवाल तो यह कि इन दो दावों के बीच आखिर हकीकत क्या है? क्या भारत बायोटेक के कोवैक्सीन को जल्दबाजी में अनुमति दी गई है? अमेरिका, रूस, चीन जैसे देशों ने जिन प्रक्रियाओं का पालन किया है, क्या भारत ने भी किया?

दुनियाभार में किसी वैक्सीन को मंजूरी देने से पहले तीन कारकों पर विचार किया जाता है- सुरक्षा , रोग प्रतिरोधक क्षमता पैदा करने की ताकत और प्रभावोत्पादकता ।

सामान्य परिस्थितियों में किसी वैक्सीन कैंडिडेट के क्लिनिकल ट्रायल की प्रक्रिया पूरा करने में सालों लग जाते हैं, लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के नियमों के तहत अगर प्रभावोत्पादकता (एफिकेसी) के न्यूनतम सुनिश्चित मापदंड पूरे कर लिए जाएं तो कुछ प्रक्रियाओं के पूरा होने से पहले वैक्सीन के उपयोग की मंजूरी दी जा सकती है।

भारत बायोटेक के मुताबिक कोवैक्सीन के तीसरे चरण का क्लिनिकल ट्रायल अभी  पूरा नहीं हुआ है, लेकिन जारी है। तमिलनाडु में वेलोर स्थित क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज के डिपार्टमेंट ऑफ गेस्ट्रोइंटेस्टिनल साइसेंज में प्रफेसर गगनदीप कांग के हवाले से कहा गया है कि वैक्सीन कैंडिडेट के तीसरे चरण के क्लीनिकल ट्रायल में कम-से-कम छह हफ्ते का वक्त लगता है। उसके बाद ही वैक्सीन का एफिकेसी के अंतरिम आंकड़े आ पाते हैं।

कोविड-19 के मामले में न्यूनतम प्रभावोत्पादकता की अनिवार्यता  50 प्रतिशत  से ज्यादा सुनिश्चित किया गया है। प्रभावोत्पादकता का मतलब प्रभावशीलता  नहीं होता है बल्कि यह वो आंकड़ा होता है जो बताता है कि टीका लगाए जाने के बाद बीमारी कितने प्रतिशत की कमी आई।

केंद्र सरकार कहती है कि टीकाकरण के अधिक विकल्पों के लिए क्लिनिकल ट्रायल मोड में काफी एहतियात बरतने के बाद ही भारत बायोटेक के वैक्सीन को आपातकालीन परिस्थिति में सीमित उपयोग की मंजूरी दी गई है। लेख में दावा किया गया है कि दरअसल भारत बायोटेक के वैक्सीन के सुरक्षा मानकों पर खरे उतरने के कारण सीमित उपयोग को मंजूरी दे दी गई, उसका एफिकेसी डेटा का इंतजार नहीं किया गया।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के निर्धारित नियम में एक प्रावधान है जो ब्रिटेन और अमेरिका की नियामक संस्थाओं  की तरफ से किसी वैक्सीन को उपयोग की मंजूरी मिल जाने के बाद दूसरे देशों के रेग्युलेटरों को भी अपने यहां उपयोग की अनुमति देने का अधिकार देता है। भारत बायोटेक ने कहा है कि वह अपने वैक्सीन का देश में सबसे बड़ा क्लीनिकल ट्रायल कर रही है जिसमें 23 हजार लोग भाग ले रहे हैं। हालांकि, उसने 100 लोगों का एफिकेसी डेटा साझा नहीं किया जो वैक्सीन की मंजूरी के लिए न्यूनतम पैमाना है।

चीन और रूस समेत दुनियाभर की दवा निर्माता कंपनियों ने अपने-अपने वैक्सीन कैंडिडेट की सेफ्टी और एफिकेसी के डीटेल विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित किए। अमेरिकी नियामक संस्था खाद्य एवं दवा प्रशासन  यानी FDA) आमसभा बुलाती है जहां वैक्सीन के लिए मंजूरी मांगने वाली कंपनी को विशेषज्ञ समूह के सामने आंकड़े पेश करने होते हैं। इस आमसभा में क्या हुआ, क्या नहीं, यह इंटरनेट पर उपलब्ध होता है। वहीं, ब्रिटेन की रेग्युलेटरी बॉडी दवा और स्वास्थ्य देखभाल उत्पाद नियामक एजेंसी  यानी MHR) ने ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका के वैक्सीन कोवीशील्ड  को उपयोगी की अनुमति देने पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस किया था। भारत बायोटेक के मामले में भी ऐसा ही हुआ।

वैक्सीन के 110 फीसदी सुरक्षित होने का दावा
DCGI निदेशक वीजी सोमानी ने कहा- ‘यदि सुरक्षा से जुड़ा थोड़ा भी संशय होता तो हम ऐसे किसी भी चीज को मंजूरी नहीं देते। ये वैक्सीन 110 फीसदी सुरक्षित हैं। हल्के बुखार, दर्द और एलर्जी जैसे कुछ दुष्प्रभाव हर वैक्सीन के लिए आम बात हैं। वैक्सीन से लोग नपुंसक हो सकते हैं, यह दावा पूरी तरह से बकवास है।’

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