अपने लोकतांत्रिक अधिकार और निर्वाचित सरकार बहाल करने को लेकर म्यांमार में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे आंदोलनकारियों पर सेना की क्रूरता जारी है। म्यांमार की जनता करीब एक महीने से सेना के चंगुल से खुद को आजाद करवाने के लिए जद्दोजहद में लगी है। लेकिन सेना के चंगुल से आजादी तो नहीं लोगों को मौत जरूर मिल रही है। सेना की कार्रवाई में अब तक 70 प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई है। वहीं, हिरासत में करीब 1500 लोगों को लिया गया है। जनता तो त्राहि-त्राहि कर ही रही हैं। तो वहीं अन्य देश भी म्यांमार की सेना से नाराज हैं।
‘हत्यारों का कब्जा’
थॉमस एंड्रयू द्वारा जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार काउंसिल में कहा गया है कि म्यांमार पर इस वक्त हत्यारों का अवैध शासन हो चुका है’ जो कत्लेआम पर उतर चुका है। लोगों को यातनाएं झेलनी पड़ रही हैं। एंड्रयू की ओर से मांग की गई है कि देश के नए सैन्य अधिकारियों और तीन कंपनियों पर जल्द से जल्द प्रतिबंध लगाया जाए। 11 मार्च के दिन सात प्रदर्शनकारियों को गोली मार दी गई। जिसके बाद मरने वालों की संख्या 70 हो गई है जो चिंताजनक है। बताया जा रहा है कि सेना सीधे सर पर गोली मार रही है। लोगों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन के बावजूद सेना अपनी क्रूरता से बाज नहीं आ रही है।
क्या भारत में चुपचाप इलाज करा रहे हैं तंजानिया के राष्ट्रपति?
यहीं नहीं अब तो सेना ने म्यांमार की अपदस्त नेता आंग सान सू की पर अवैध रूप से 6 लाख डॉलर (करीब 4 करोड़ 36 लाख रुपये) और 11 किलो सोना लेने का आरोप लगा दिया है। आंग सान पर सेना का लगाया ये आरोप अब तक का सबसे बड़ा आरोप है। हालांकि सेना की ओर से इसके कोई सबूत नहीं दिखाए गए हैं। लेकिन आंग सान सू की की पार्टी की एक नेता ने इसकी पुष्टि की है। दूसरी ओर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार जांचकर्ता (UN human rights investigator) ने भी सैन्य सरकार पर ‘मानवता के खिलाफ अपराध’ करने का आरोप लगाया है।