सूर्य के प्रकाश की प्रचुर उपलब्धता के बावजूद सौर ऊर्जा का बहुत कम उपयोग होता है। लेकिन मध्य प्रदेश के बाचा गांव में बिजली से लेकर भोजन तक का सारा काम सौर ऊर्जा से हो रहा है। यही कारण है कि बाचा सौर ऊर्जा का पूरी तरह से उपयोग करने वाला देश का पहला गांव बन गया है।
देश के कई हिस्सों में बिजली की आपूर्ति अनियमित है। इस वजह से हर कोई लोड शेडिंग से जूझ रहा है। कुछ साल पहले मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के बाचा गांव में भी ऐसी ही समस्या थी। बंचा गांव के ग्रामीणों ने बिजली की नियमित आपूर्ति के लिए गांव में सौर ऊर्जा का उपयोग करने का निर्णय लिया। केंद्र सरकार और मुंबई आईआईटी के संयुक्त सोलर प्रोजेक्ट के जरिए गांव के 74 घरों के पास सोलर पैनल लगाए गए। लोगों को यह भी समझाया गया कि इन सौर पैनलों का उपयोग कैसे किया जाता है। फिर दिसंबर 2018 में पूरे गांव में सौर ऊर्जा परियोजना लागू की गई।
इस परियोजना से अब गांव सौर ऊर्जा से बिजली पैदा करता है। इस गांव में इंडक्शन पर खाना बनाने से लेकर घर में बिजली तक सब कुछ अब सौर ऊर्जा से होता है। इसलिए, यह देश का पहला सौर ऊर्जा संचालित गांव होने की उम्मीद है।
आईआईटी मुंबई के छात्रों ने इस गांव में प्रोजेक्ट का मॉडल तैयार किया है। IIT के प्रत्येक छात्र ने सौर ऊर्जा से चलने वाले बिजली के स्टोव पर 80,000 रुपये खर्च किए। लेकिन उसके बाद कई लोगों ने गांव में बिजली का चूल्हा लगाने का फैसला किया। प्रोजेक्ट मैनेजर पवन कुमार ने कहा, इसलिए अब प्रत्येक स्टोव पर केवल 35,000 रुपये से 40,000 रुपये खर्च किए जाते हैं। उन्होंने कहा कि इस चूल्हे से पांच लोगों के लिए तीन वक्त का खाना, चाय और नाश्ता बनाया जा सकता है।
इस गांव की महिलाओं का कहना है कि गांव में सौर ऊर्जा परियोजनाओं के क्रियान्वयन से ग्रामीणों को काफी लाभ हुआ है और अब गांव में किसी को भी चूल्हे के लिए लकड़ी इकट्ठा करने की जरूरत नहीं है। नतीजतन, जंगल में लोगों की हत्या बंद हो गई है। सोलर कुकर के कारण बर्तन काले नहीं होते हैं। साथ ही चूल्हे से निकलने वाला धुआं आंखों में चला जाता है। इससे आंखों में दर्द होता है। हालांकि, सोलर कुकर से किसी तरह का धुंआ नहीं निकलता है। इसलिए, आंखों का स्वास्थ्य अच्छा रहता है।