अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद ( AICTE) ने इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट के साथ-साथ अन्य शैक्षणिक संस्थानों को अपने पाठ्यक्रम में भारतीय लेखकों द्वारा लिखे गए किताबों को प्रोमोट करने के निर्देश जारी किए हैं।
दरअसल वर्ष 2018 में AICTE ने परास्नातक एवं स्नातक दोनों के कोर्सस के लिए एक मॉडल पाठ्यक्रम को लांच किया था। जिसमें स्पष्ठ तौर से भारतीय लेखकों के किताबों को रिकमंड करने की बात कही गयी थी।
AICTE ने साथ ही कुछ ऐसे किताबों की भी लिस्ट वर्ष 2019 के शुरुआत में सभी संस्थानों में उपलब्ध भी करा दी थी जिसे AICTE की ओर से सलाह के तौर पर जारी किया गया था।
इस पाठ्यक्रम का हवाला देते हुए AICTE ने अपनी चिट्टी में यह भी लिखा था कि इससे उच्च गुणवत्ता और महंगी एवं प्रभावी किताबों की अपेक्षा में और बेहतर तरीके से पढ़ने और सीखने में मदद मिलेगी।
आगे यह भी कहा गया कि, ‘इस पाठ्यक्रम के मॉडल से यह भी उम्मीद है कि इससे आत्मनिर्भर भारत अभियान की ओर एक कदम और पढ़ेगा।’
‘कंटेंट के आधार पर होना चाहिए किताबों का चुनाव’
एक अख़बार को दिए गए बयान में AICTE के चैयरमैन अनिल सहस्त्रबुद्धे ने कहा है कि,’विदेशी लेखकों और पब्लिशर्स की किताबें बहुत महंगी होती हैं, भारतीय छात्रों के लिए उन्हें वहन करना मुश्किल हो जाता है।’
उन्होंने आगे कहा कि,’इसके विपरीत भारतीय लेखकों की किताबें सस्ती होती हैं, अगर वे विदेशी लेखकों के किताबों से बेहतर नहीं तो कम से कम उन्हीं के बराबर मानक के तो जरूर हैं।’ हालांकि अनिल सहस्त्रबुद्धे के इस बयान को लेकर कई शैक्षणिक संस्थानों ने अपना मत देते हुए इसका विरोध किया है।
इंद्रप्रस्थ इंस्टिट्यूट ऑफ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (IIT) दिल्ली के निदेशक , रंजन बोस ने कहा कि, ‘किताबों का चुनाव उनके कंटेंट के आधार पर होना चाहिए न कि उनकी राष्ट्रीयता के आधार पर ।’
एक दूसरे IIT के निदेशक ने इस मामले में कहा कि, ‘जब हम अपने विद्यर्थियों को कोई किताब रिकमेंड करते हैं तो यह नहीं देखते की यह भारतीय लेखक ने लिखी है या विदेशी लेखक ने। अच्छी किताबें तो अच्छी होती हैं चाहे भारतीय हो या विदेशी।’
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उन्होंने आगे कहा कि,’बिना किसी गुणवत्ता टेस्ट के अचानक से भारतीय लेखकों की ओर झुकाव , निश्चित तौर पर टेक्निकल एजुकेशन की गुणवत्ता को प्रभावित करेगा।’
‘इंजीनियरिंग विषयों पर भारतीय लेखकों की कुछ गिनी चुनी ही अच्छी किताबें हैं। अगर इंजीनियरिंग विषयों पर प्रकाशित किताबों की बात करें तो विदेशी लेखकों की किताबें ज्यादा हैं और भारतीय लेखकों की किताबें कम हैं। साथ ही रिसर्च की संख्या की बात करें तो पूरे विश्व में यहां अनुसंधानों की संख्या कम है बल्कि विदेशों में हुए रिसर्च की संख्या ज्यादा है।’
यही कारण हैं कि यूके, यूएस में हुए रिसर्च की गुणवत्ता पर आधारित किताब ज्यादा अच्छी हैं और बाहर के लेखकों द्वारा लिखी गयी किताबें उच्च स्तरीय मानकों पर भी ज्यादा खरा उतरती हैं।’
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‘इस बाबत ‘दि संडे पोस्ट’ ने दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं वरिष्ठ साहित्यकार सुधीश पचौरी से बातचीत की, उन्होंने कहा कि,’देखिये,हम क्यों मजबूर हैं विदेशी लेखकों के किताबों को पढ़ने के लिए, क्योंकि हम पर अंग्रेजी का अन्तिम अवशेष हावी है। बल्कि होना यह चाहिए कि हमें रेशनल होकर अपनी जरूरत के हिसाब से रिसर्च कर उन पर आधारित किताबों को रिकमेंड करना चाहिए। इसको इसे समझिये कि अमेरिका की सड़कें इसलिए चमकती रहती हैं क्योंकि वहां दो ही मौसम आते हैं हमारे यहां उसकी टेक्नोलॉजी के आधार पर सड़क नहीं बनाया जा सकता क्योंकि हमारे यहाँ छ तरह के मौसम आते हैं।’
उन्होंने आगे कहा कि, ‘कुल मिलाकर मेरा मानना यह है भारतीय लेखकों की किताबों को पाठ्क्रम में शामिल करना चाहिए लेकिन कड़े परीक्षाओं से गुजारने के बाद।’
‘यदि आप यह कहते हैं कि विदेश में रिसर्च ज्यादा होते हैं अपने देश में कम तो मैं इसपर यह कहूंगा कि जिन मशीनों से गुजर कर रिसर्च को पास किया जाता है, उस पर तो विदेशी साम्रज्य ही कायम है। तो क्या होगा, उन्हीं के मानकों पर उन्हीं के रिसर्च पेपर ज्यादा पास होंगे न।’
क्या है ‘AICTE’ ?
अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद की स्थापना नवम्बर 1945 में एक राष्ट्रीय-स्तर की सर्वोच्च सलाहकार संस्था के रूप में की गई थी, जो तकनीकी शिक्षा के लिए उपलब्ध सुविधाओं पर सर्वेक्षण करने और देश में समन्वित और एकीकृत तरीके से विकास को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई है ।