[gtranslate]
Country

सुर्खियों में ‘मैरिटल रेप’ का मुद्दा

देश में इन दिनों एक ओर जहां चुनावी मौसम से राजनीतिक पारा चरम पर है , वहीं दूसरी तरफ ‘मैरिटल रेप’ का मुद्दा सोशल मीडिया से लेकर टीवी चैनलों और अखबारों की सुर्खियां बना हुआ है। दरअसल, दो दिन पहले ‘मैरिटल रेप’ से जुड़ी एक याचिका का विरोध करते हुए केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट में कहा कि भारत को इस मामले में सावधानी से आगे बढ़ने की जरूरत है। हमें आंख बंद करके इस मामले में पश्चिमी देशों का अनुसरण नहीं करना चाहिए। वहां पर वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में रखा गया है, लेकिन भारत की अपनी समस्याएं हैं। केंद्र सरकार ने कहा कि भारत में साक्षरता, आर्थिक कमजोरी, महिला सशक्तिकरण की कमी, गरीबी जैसे इसके कई कारण हैं। इसलिए भारत को इस मामले में बहुत ही सावधानी से आगे बढ़ना चाहिए।

इस बीच सोशल मीडिया पर देश में वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण को लेकर दिल्ली उच्च न्यायालय की वर्तमान कार्यवाही चर्चा का विषय बनी हुई है। देश का हर पुरुष इस चिंता में है कि अगर ये अपराध की श्रेणी में आता है तो इसका गलत इस्तेमाल किया जाएगा। डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर हो रही बहस में पुरुषों और महिलाओं के विचारों में विभाजन भी देखा जा सकता है।

सोशल मीडिया पर इस बहस के जोर पकड़ते ही ट्विटर पर हैशटैग #MarriageStrike ट्रेंड करने लगा, जिसमें कई नेटिज़न्स की राय सामने आई, इसमें अधिकतर पुरुष थे, वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण से झूठे आरोप लगाए जा सकते हैं, और अंततः पुरुषों को गलत तरीके से दोषी ठहराया जा सकता है।

इस तर्क का विरोध करते हुए, कई लोग इस बारे में बात करते हुए आगे भी आए कि कैसे भारत में वैवाहिक बलात्कार का अपराधीकरण नहीं करने का कोई औचित्य नहीं है, और यहां तक कि #MarriageStrike कार्यकर्ताओं के पक्ष में “संभावित बलात्कारी” के रूप में करार दिया। “विवाह हड़ताल” के समर्थकों का तर्क है कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में लाना विवाह को एक खतरनाक संस्था बना देगा। इसका नतीजा ये होगा कि उनके खिलाफ आधारहीन आपराधिक आरोप लगेंगे।

पाकिस्तान में रेपिस्ट को मिलेगी भयानक सजा, कानून को संसद ने दी मंजूरी

वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में शामिल किए जाने के खिलाफ पैरवी करने के लिए भारतीय पुरुषों के एक समूह ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का सहारा लिया है। भारतीय पुरुषों ने यह कदम तब उठाया जब दिल्ली हाईकोर्ट ने वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की।

देश में पिछले एक दशक में बलात्कार के खिलाफ सख्त कानून बनाए गए हैं। इसके बावजूद भारत इस मामले में खुद को वैश्विक स्तर पर काफी नीचे पाता है। दुनिया में 30 से अधिक ऐसे देश हैं जहां पति पर अपनी पत्नी के साथ बलात्कार के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। भारत भी इनमें से एक है। वहीं 100 से अधिक देशों में वैवाहिक बलात्कार को अपराध का दर्जा दिया जा चुका है।

मौजूदा क्रिमिनल कोड के तहत अगर कोई व्यक्ति किसी महिला के साथ उसकी सहमति के बिना या उसकी इच्छा के विरुद्ध यौन संबंध बनाता है, तो उसे बलात्कार माना जाता है। अगर कोई व्यक्ति किसी नाबालिग के साथ यौन संबंध बनाता है, तो उसे भी बलात्कार माना जाता है। इसमें कुछ अपवाद भी हैं। जैसे अगर कोई पुरुष अपनी बालिक पत्नी के साथ उसकी इच्छा के खिलाफ संबंध बनाता है, तो उसे बलात्कार नहीं माना जाता।

हालांकि, वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण की मांग करने वाले याचिकाकर्ता रीट फाउंडेशन और ऑल इंडिया डेमोक्रैटिक वुमन एसोसिएशन (एआईडीडब्ल्यूए) की वकील करुणा नंदी सर्वोच्च न्यायालय के पहले के फैसले का हवाला देती हैं। वह कहती हैं, “एक बलात्कारी, बलात्कारी ही रहता है। पीड़िता के साथ उसकी शादी होने से उसका अपराध कम नहीं होता। ”

शादी का बहिष्कार

अदालत ने दिल्ली स्थित गैर-लाभकारी संगठन एआईडीडब्ल्यूए और दो व्यक्तियों की ओर से दायर याचिकाओं पर सुनवाई की। इन याचिकाओं में कहा गया है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के तहत वैवाहिक बलात्कार को अपवाद की श्रेणी में रखना किसी महिला की गरिमा, निजी और यौन स्वतंत्रता के अधिकार और आत्म अभिव्यक्ति के अधिकार का उल्लंघन है।

इसके बाद कई पुरुष ट्विटर पर इस मामले को उछालने लगे। उन्होंने कहा कि अगर वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में शामिल किया जाता है, तो वे शादी का बहिष्कार करेंगे। ‘विवाह हड़ताल’ के समर्थकों ने वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में शामिल करने का विरोध जताने के लिए ट्विटर पर हैशटैग #marriagestrike ट्रेंड कराया। उन्होंने कहा कि अगर ऐसा होता है, तो पुरुषों को आधारहीन आरोपों का खामियाजा भुगतना पड़ेगा। उन्होंने तर्क दिया कि इससे विवाह पुरुषों के लिए एक खतरनाक संस्था बन जाएगी क्योंकि उनके मुताबिक पहले से ही मौजूद दुर्व्यवहार और दहेज से जुड़े कानूनों की वजह से पुरुषों को झूठे मामलों का सामना करना पड़ रहा है।

देश के राष्ट्रीय पर्व 26 जनवरी को जब पूरा देश गणतंत्र दिवस मना रहा था, तब सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन सहित कई पुरुष अधिकार संगठनों ने ट्विटर पर हैशटैग #NoRepublicDay4Men ट्रेंड कराया। उन्होंने कहा कि भारत पुरुषों के रहने लायक देश नहीं है। यहां उनके साथ ‘दोयम दर्जे के नागरिकों’ की तरह व्यवहार होता है। इन लोगों ने दावा किया कि ‘भारत में महिला सशक्तिकरण के नाम पर नागरिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों का बड़े पैमाने पर उल्लंघन हुआ है।’ इन संगठनों ने पुरुषों के अधिकारों की रक्षा के लिए अपने मिशन को दोहराया।

कानूनी इतिहास में वैवाहिक बलात्कार

भारत की आपराधिक संहिता को औपचारिक रूप से भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के रूप में जाना जाता है. यह ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के तहत 1860 में पारित किया गया था। उस समय इंग्लैंड ने ‘डॉक्ट्रिन ऑफ कॉन्वेंचर’ को लागू किया था। इसके तहत शादी के बाद एक महिला के कानूनी अधिकार और दायित्व पति के नियंत्रण में आ जाते थे. पति और पत्नी को एक इकाई के रूप में चिन्हित किया गया था और पत्नी के सभी अधिकार उसके पति के अधिकार के अंदर ही समाहित कर दिए गए थे।

इसका यह भी अर्थ हुआ कि महिलाएं अपने पति की इच्छा के विरुद्ध न तो कोई संपत्ति खरीद सकती थीं और न ही किसी तरह का अनुबंध कर सकती थी। पत्नी को अपने पति पर निर्भर माना जाता था। साथ ही तत्कालीन कानून के मुताबिक शादी के समय ही सुरक्षा और जिम्मेदारी के बदले में एक महिला हमेशा के लिए अपने पति को यौन संबंध बनाने की सहमति दे देती थी।

विशेषज्ञों के अनुसार, वैवाहिक बलात्कार की छूट उस पुराने कानून का हिस्सा है जिसकी जड़ें औपनिवेशिक शासन से जुड़ी हैं। इस मामले में अदालत में महिलाओं का पक्ष रख रही वरिष्ठ वकील रेबेका जॉन ने पीठ से कहा कि शादी में यौन संबंधों की उम्मीद से पति अपनी पत्नी के साथ जबरन संबंध नहीं बना सकता है।

‘अनलॉक’ के बाद दिल्ली में बढ़े रेप के मामले

2016 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार का आधिकारिक रुख था कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में शामिल करना “विवाह की संस्था को अस्थिर कर देगा और पतियों के उत्पीड़न का हथियार बन जाएगा।”

हालांकि, याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि 2015-16 में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार, यौन हिंसा की शिकार 83 फीसदी से अधिक (15-49 वर्ष की आयु के बीच) महिलाओं ने कहा कि उनके पति ने उनके साथ हिंसा की। वहीं, 9 फीसदी से अधिक ने कहा कि उनके पूर्व पति ने उनके साथ हिंसा की।

एक ओर जहां अदालत बदलती हुई परिस्थितियों में नई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, वहीं केंद्र सरकार ने नया हलफनामा दायर कर कहा है कि वह इस मुद्दे पर ‘रचनात्मक दृष्टिकोण’ अपना रही है और विशेषज्ञों से परामर्श ले रही है।

वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में लाने का विरोध कर रहे लोगों की मुख्य चिंता यह है कि इससे नया अपराध शुरू हो जाएगा। अदालत वैवाहिक बलात्कार के मामले की सुनवाई कर रही है और भारत सरकार की आधिकारिक प्रतिक्रिया का इंतजार कर रही है। इसे देखते हुए कई महिलाओं को उम्मीद की एक नई किरण दिख रही है।

यह भी पढ़ें : कमजोर होती भाजपा

You may also like

MERA DDDD DDD DD