पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पंजाब, गोवा और मणिपुर विधानसभा चुनाव के नतीजे विपक्ष से कहीं ज्यादा भाजपा के लिए जीवन-मरण का कारण बनते नजर आ रहे हैं। 2014 के बाद से ही विपक्षी दल लगातार कमजोर होते चले गए हैं। चैतरफा प्रधानमंत्री मोदी का जलवा है। भाजपा पूरी तरह मोदी के इस करिश्मे पर निर्भर हो चली है। मोदी का मैजिक लेकिन अब उतार की तरफ जाता दिखाई देने लगा है। गत् वर्ष पश्चिम बंगाल के चुनाव में ममता बनर्जी को हराने के लिए भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। स्वयं पीएम ने बंगाल में एक के बाद एक जनसभाएं कर चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना डाला था। लेकिन नतीजे भाजपा के लिए निराशाजनक रहे। ममता की जीत ने विपक्ष में जान फूंकने का काम किया तो भाजपा भीतर घबराहट का माहौल बनने लगा। 19 नवंबर के दिन इस घबराहट का सार्वजनिक प्रदर्शन बतौर तीन कृषि कानूनों की वापसी के रूप में सामने आया। किसी भी कीमत पर इन कानूनों को वापस न लेने की हठधर्मिता को आखिरकार झुकना पड़ा तो केवल इसलिए क्योंकि भाजपा की समझ में आ गया कि अब मोदी मैजिक समाप्ति की तरफ है। पंजाब में प्रधानमंत्री का जाना, वहां आयोजित सभा स्थल का विरान होना, पीएम का अपनी सुरक्षा को लेकर मुख्यमंत्री पर तंज कसना और इस तंज को एक भारी विवाद में बदल जाना इस मैजिक के कमतर होने तरफ स्पष्ट इशारा कर रहे हैं। इन पांचों राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम 2022 में ऐसे नए राजनेताओं के उदय का कारण बन सकते हैं जो 2024 में प्रधानमंत्री मोदी के बरस्क विपक्षी दलों की अगुवाई करने वालों में शामिल होंगे। भाजपा इस खतरे को भांप रही है। उसकी कमजोरी का सबसे बड़ा और ताजातरीन उदाहरण पंजाब में हुई प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक के बाद भाजपा द्वारा बनाया गया माहौल है।
भाजपा के सभी मुख्यमंत्री इस मुद्दे पर मुखर हैं। पीएम के लिए महामृत्युंजय जाप कराए जा रहे हैं। पंजाब की सरकार को बर्खास्त करने की मांग उठाई गई। यह सब भाजपा के भय को सामने लाते हैं। तीन कृषि कानूनों की वापसी का एलान कर प्रधानमंत्री ने विपक्ष के हाथों से एक महत्वपूर्ण मुद्दा छीनने का जो कदम उठाया वह कारगर साबित होता नहीं नजर आ रहा है। बुरी तरह बिखरा, कमजोर और हताश विपक्ष उल्टे इस फैसले के बाद ताकतवर हो चुका है। ऐसा तब जबकि विपक्ष के पास न तो भाजपा समान आर्थिक संसाधन हैं, न ही मुख्यधारा का मीडिया उसका साथ दे रहा है। भाजपा के पास आर्थिक ताकत बेशुमार है। मीडिया भी पूरी तरह उसके कब्जे में है। इसके बावजूद भाजपा से बड़ी तादाद में पलायन होने लगा है। उत्तर प्रदेश में ओबीसी नेता और योगी सरकार में मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य समेत तीन कैबिनेट मंत्री, कई विधायक सपा में जा चुके हैं। उत्तराखण्ड में कद्दावर दलित नेता यशपाल आर्य धामी सरकार से इस्तीफा देकर अपने विधायक पुत्र संग कांग्रेस की शरण पहले ही ले चुके हैं। पंजाब में भाजपा का नाम लेवा कोई बचा नहीं। कैप्टन अमरिंदर सिंह के सहारे भाजपा पंजाब में कुछ हासिल कर पाएगी ऐसा होता दिख नहीं रहा है। कुल मिलाकर इन पांच राज्यों के चुनाव विपक्ष से कहीं ज्यादा भाजपा के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। यदि उत्तर प्रदेश में भाजपा की हार होती है, उत्तराखण्ड में कांग्रेस सत्ता में वापसी करती है, गोवा और पंजाब में आम आदमी पार्टी के साथ मिलकर विपक्ष दलों की सरकार बनती है तो इसका भारी प्रभाव मोदी के प्रभामंडल पर पड़ना तय है। न केवल भाजपा भीतर मोदी-शाह की पकड़ कमजोर होगी, बल्कि जुलाई में प्रस्तावित राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति के चुनाव भी इससे प्रभावित होंगे।