NCERT की किताब रिमझिम-1 की एक कविता सोशल मीडिया पर ट्रेंड हो रही है।कक्षा 1 में पढ़ाई जाने वाली इस कविता का शीर्षक ‘आम की टोकरी’ है। वैसे तो कविता के शीर्षक में कोई समस्या नहीं है। लेकिन कविता की भाषा को पढ़कर कुछ लोगों का कहना है कि यह डबल मीनिंग दे रही है, इसलिए इसे पाठ्यक्रम से हटा देना चाहिए।
सोशल मीडिया पर एक तबका जहाँ इस कविता का विरोध कर रहा है। वहीं दूसरा तबका ऐसा है जो इसमें संशोधन की गुंजाइश बता रहा है और तीसरा तबका है जो कह रहा है कि उन्हें इसमें कोई बुराई नहीं लग रही। अगर कोई इसमें अलग मतलब निकाल रहा है तो ये उसकी समस्या है।
आम की टोकरी
आम की टोकरी कविता रामकृष्ण शर्मा खद्दर ने लिखी है। कक्षा 1 के पाठ्यक्रम में इसे 2006 से लगातार पढ़ाया जा रहा है। इस कविता को लेकर सबसे पहले छत्तीसगढ़ कैडर के IAS ने ट्विटर पर आपत्ति जताई थी। इसके बाद कई यूजर्स भी कविता के शब्दों में गंदगी खोजकर इसे हटाने की माँग करने लगे।
क्या है कविता?
छह साल की छोकरी,
भरकर लाई टोकरी।
टोकरी में आम हैं,
नहीं बताती दाम है।
दिखा-दिखाकर टोकरी,
हमें बुलाती छोकरी।
हम को देती आम है,
नहीं बुलाती नाम है।
नाम नहीं अब पूछना,
हमें आम है चूसना।
इस कविता में क्या अश्लील है ? : मैत्रेयी पुष्पा
साहित्यकार मैत्रेयी पुष्पा कहती हैं कि, “इस कविता में क्या अश्लील है ? कई स्त्रियों के चेतन अवचेतन में अश्लीलता की विषैली हवा घुमड़ती रहती है जिसके असर में वे बूढ़ी से लेकर बच्ची तक को घसीट लेती हैं ।छ: साल की बच्ची का भी फ़ेसबुकिया तमाशा बनाने से बाज नहीं आईं ।वह मान्यता सही ही है कि पुरुषों से पहले स्त्रियाँ ऐसे फ़ालतू ज़िक्रों को उठा कर वितंडा खड़ा कर देती हैं । हमें पूछना है कि क्या इस कविता को लड़के ही पढ़ेंगे ? लड़कियाँ नहीं पढ़ेंगी ? क्या ये छोटे से लड़के लड़कियाँ आपके उस ग़लीज़ सोच तक पहुँच सकते हैं ? कहाँ से कहाँ तक के कुलाबे जोड़ने में माहिर होती हैं कुछ औरतें …बे सिर पैर की बातें ! स्त्रीविमर्श का गम्भीर रोग लगा हुआ है इन स्त्रियों को ।”
साहित्यकार अशोक कुमार पाण्डेय कहते हैं कि, ‘इस देश में बाल श्रम अपराध है और छः साल की बच्ची का सर पर आम की टोकरी (असल में खाँची) लादे फ़ोटो किसी को व्यथित नहीं करता! लोग अर्थ में उलझ गए लेकिन यह नहीं सोच सके कि इस ज़रा सी बच्ची को इस रूप में चित्रित कर बच्चों के ज़ेहन तक पहुँचाना कैसे बाल श्रम को normalise कर रहा है? ‘
किसी ने कहा कि, “ये किस ‘सड़क छाप’ कवि की रचना है ?? कृपया इस पाठ को पाठ्यपुस्तक से बाहर करें।” तो किसी ने कहा, “हम अपने बच्चों को साहित्यिक शिक्षा दे रहे हैं या उन्हें उर्दूछाप लिरिक्स की ट्रेनिंग दे रहे रहे हैं।”
ट्वीट्स पर एक यूजर अभिनव प्रकाश ने इस कविता पर सरकार को लानत दी। उन्होंने कहा कि 7 सालों के बावजूद एनसीईआरटी किताब से एक सिंगल लाइन भी नहीं हटी। शर्म आनी चाहिए।
पत्रकार अनुराग मुस्कान ने इस कविता पर सवाल उठाते हुए अपना वर्जन दिया है।
NCERT दिया कविता ‘आम की टोकरी’ को लेकर स्पष्टीकरण
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने पहली कक्षा की हिंदी की किताब में छपी कविता ‘आम की टोकरी’ को लेकर स्पष्टीकरण दिया है। इस कविता में आए ‘छोकरी’ शब्द को लेकर सोशल मीडिया पर विवाद खड़ा हो गया था और इसे पाठ्यक्रम से बाहर करने की मांग की जा रही थी।
जिसके बाद एनसीईआरटी ने इसे लेकर सफाई देते हुए कहा है कि ये कविता स्थानीय भाषाओं की शब्दावली को बच्चों तक पहुंचाने के उद्देश्य से शामिल की गई है। एनसीईआरटी का कहना है ‘एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तक में दी गई कविताओं के संदर्भ में एन.सी.एफ-2005 के परिप्रेक्ष्य में स्थानीय भाषाओं की शब्दावली को बच्चों तक पहुंचाने के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए ये कविताएं शामिल की गई हैं ताकि सीखना रुचिपूर्ण हो सके।
वहीं, आगे एनसीईआरटी ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के परिप्रेक्ष्य में नई राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा के निर्माण की प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है। इसी पाठ्यचर्या की रूपरेखा के आधार पर भविष्य में पाठ्यपुस्तकों का निर्माण किया जाएगा। एनसीईआरटी ने इस कविता को लेकर सफाई ट्विटर के जरिए दी है।