इस वक्त भारत एक कठिन दौर से गुजर रहा है। देश में कोरोना की दूसरी लहर ने भयानक तबाही मचा रखी है। हर ओर चिताओं से शमशान अटे पड़े हैं।ऐसी दर्दनाक तस्वीरें आँखों के सामने आ रही हैं और भारत में जारी है फिर भी सियासत। ऐसे में देश के एक शहर में श्मशान में शव ले जाते परिजनों की तस्वीर दुनिया की प्रतिष्ठित टाइम मैगजीन ने अपने कवर पेज पर प्रकाशित की है।
भारत सरकार ने भले ही सच को दबाने का पूरा प्रयास किया हो लेकिन अंतरराष्ट्रीय मीडिया द्वारा इसे बेझिझक उजागर किया जा रहा है। ‘टाइम्स मैगज़ीन’ के कवर पेज से इसका अंदाज़ा भली-भांति लगाया जा सकता है कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया में मोदी सरकार की छवि किस तरह धूमिल हो चुकी है।
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देश इधर से उधर हो जाए लेकिन मोदी जी की इमेज को दाग का एक छींटा भी नहीं लगना चाहिए ये हमारा नहीं भारतीय मीडिया का कहना है। देश की जनता मर रही है तो क्या, मोदी की इमेज जीवंत रहनी चाहिए। हर तरफ मचे त्राहिमाम के बीच भले ही भारतीय मीडिया ऐसे तीखे सवाल करने से बचता हो लेकिन बीते कुछ दिनों से अंतरराष्ट्रीय मीडिया में मोदी की काफी किरकिरी हुई है।
जिसकी मोदी जी को तो आदत है नहीं लेकिन अफसोस आपदा में भी यही आदत उनको भारी पड़ गई और ख़ुद को सवालों से ऊपर समझने वाले मोदी जी की इमेज को अंतरराष्ट्रीय मीडिया में दाग दाग होने से कोई रोक नहीं पाया। सच्चाई को दिखाने के लिए भारतीय मीडिया पर चाहे दवाब हो लेकिन अंतरराष्ट्रीय मीडिया पर कोई दबाव नहीं है।
अभी पिछले महीने ही भारतीय विदेश मंत्रालय की ओर से ‘द ऑस्ट्रेलियन’ अख़बार के प्रधान संपादक को चिट्ठी भेज दी गई। कारण था अख़बार में मोदी पर अक्षमता पूर्ण निर्णय लेने से कुछ आरोप। विदेश मंत्री जयशंकर ने भारतीय राजदूतों और दुनिया भर के उच्चायुक्तों से कहा है कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया क्या छाप रहा है, इस काउंटर में मोदी की छवि बनाई जाए।
Urge @australian to publish the rejoinder to set the record straight on the covid management in India and also refrain from publishing such baseless articles in future. @cgisydney @CGIPerth @cgimelbourne @MEAIndia https://t.co/4Z3Mk6ru3W pic.twitter.com/4bgWYnKDlB
— India in Australia (@HCICanberra) April 26, 2021
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अंतरराष्ट्रीय मीडिया में हमारी थू-थू हो रही है और इसका कारण है खुद की छवि को बचाने के प्रयास में मोदी सरकार द्वारा सच को छुपाना। पिछले एक साल में सरकार ने स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर करने में ऊर्जा न लगाकर भारत की छवि को धूमिल कर लिया है।
जब कोरोना की पहली लहर थी तब विश्व के कई देशों लॉकडाउन करके पूरा ध्यान हेल्थ सिस्टम को मजबूत करने में लगा दिया। लेकिन भारत में तो मान लिया गया कि हमारे यहां दूसरी लहर ही नहीं आने वाली है। इसी सोच का नतीजा है कि आज हमारा देश कोरोना की दूसरी लहर की ऐसी चपेट में है कि कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है।
मोदी जी को कितनी जल्दी है अपनी छवि को फिर पाने की! जब लोग तेजी से जान गंवा रहे हैं तो देश के गृह मंत्री ऑक्सीजन की कमी को हवा हवाई बता रहे हैं। देश का पीएम भाषण देने में व्यस्त था क्योंकि लोगों की जान से ज्यादा चुनाव महत्वपूर्ण थे। एक अजब तमाशा हरिद्वार में लाखों लोगों की भीड़ जुटाने का चल रहा था। पिछले साल फ़रवरी में बने अस्थाई अस्पतालों को मोदी सरकार की ओर से पहले ही उखड़वा दिया गया था। क्योंकि उनके सामने कोरोना कुछ नहीं है। नतीजा सबके सामने है।
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हेल्थ विशेषज्ञ लगातार चेता रहे थे कि कोरोना की दूसरी लहर आएगी तैयार रहें। लेकिन मोदी जी को बंगाल जीतना था और भारतीय मीडिया को समर्थन का तमगा ! भारतीय मीडिया में इतनी भी हिम्मत नहीं बची है कि वह सीधे नाम लेकर आरोप लगा सके। इसका उदहारण है एक भारतीय हिंदी अख़बार जिसमें मोदी नाम न लिखकर सिस्टम का नाम लिया गया। एक क्यों लगभग सारा भारतीय मीडिया अब भी मोदी भक्ति में जुटा हुआ है।
एक समाचार पत्र ने एक दिन ख़बर छापी कि देश में मौत का आंकड़ा सरकारी आंकड़े से पांच गुना अधिक है। ये बात कहने के लिए अख़बार ने ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ का सहारा लिया। इस वक्त मौत की दर क्या है और दिखाया-छापा क्या जा रहा है ये भारतीय मीडिया और पत्रकार अच्छे से जानते हैं।
वाशिंगटन पोस्ट का यह लेख पढ़कर हर भारतीय को शर्मिंदगी महसूस होगी। क्योंकि इस लेख का शीर्षक ही कुछ ऐसा है:
Modi’s pandemic choice: Protect his image or protect India. He chose himself. जी हां, जो आपने पढ़ा वही सच है पर अफसोस की एक विदेशी अख़बार में छपा है। इस लेख को इंडियाना यूनिवर्सिटी में पोलिटिकल साइंस के प्रोफेसर हैं और जानेमाने लेखक सुमित गांगुली द्वारा लिखा गया है।
इस लेख के कुछ हिस्सों को मैंने ‘गूगल ट्रांसलेट’ की मदद से थोड़ा अनुवादित किया है। मुख्य धारा के मीडिया ने इसे भले ही न दिखाया हो लेकिन आप इसे वाशिंगटन पोस्ट पर भी पढ़ सकते हैं। आइये जानते हैं ‘वाशिंगटन पोस्ट’ की क्या राय है मोदी जी के बारे में …… ..
‘भारत के कोरोना वायरस से उत्पन्न हुए संकट को देखना आश्चर्यजनक है। उत्तरी भारत में, शवों का अंतिम संस्कार सार्वजनिक पार्कों में किया जा रहा है क्योंकि श्मशान में जगह खत्म हो चुकी है। नौबत ये आ चुकी है कि लोग घरों के पिछवाड़े में रिश्तेदारों को दफना रहे हैं जला रहे हैं। ’
दुनिया में टीकों का सबसे बड़ा उत्पादक होने के बाद भी भारत अपने 1.3 बिलियन लोगों में से 2 प्रतिशत से कम टीकाकरण कर पाया है। …… एंटीवायरल दवा रेमेडिसवीर की किल्ल्त है, इसलिए लोग सोशल मीडिया पर दोस्तों और रिश्तेदारों से मदद मांग रहे हैं। मरीज के लिए बेड मिलने की उम्मीद में परिवार के सदस्य कई अस्पतालो में ठोकरे खा रहे हैं।
‘मोदी की घृणित निर्णय लेने की शैली ने वर्षों में एक महामारी को जन्म दिया है। उनकी सरकार ने पहली बार में भारत की 80 प्रतिशत से अधिक मुद्रा और बहु-आवश्यक वस्तुओं और सेवा कर जीएसटी के समान रूप से गलत तरीके से रोल आउट किया।
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‘अब जब सार्वजनिक पार्क अस्थायी श्मशान बन रहे हैं, अस्पतालों और एम्बुलेंसों (जब उपलब्ध हो) के बाहर फुटपाथ पर पड़े रोगियों को ऑक्सीजन की कमी हो रही है, लेकिन मोदी के सहयोगी अभी भी अधिक कठोर, यद्यपि परिचित, रणनीति का सहारा लेते हैं। उनका तर्क है कि सरकार के आलोचक देशव्यापी कलह बोने का प्रयास कर रहे हैं। सरकार अब फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया आउटलेट्स पर दबाव बनाने लगी है कि उनकी आलोचना करने वालों का मुंह बंद करें ‘
महामारी के प्रबंधन में मोदी पूरी तरह से विफल साबित हुए हैं। अब कोरोना की विदाई 4 लाख मामलों के दैनिक आधार पर जारी है। वर्तमान दर यानी प्रति दिन 4000 मौतों की दर बनी रही या थोड़ी बढ़ी, फिर 2021 के अगस्त महीने तक 10 लाख लोग मारे जाएंगे। मामले बढ़ते जा रहे हैं। उत्तर भारत में ऑक्सीजन संकट और दवाओं की कमी का हल दूर-दूर तक नहीं दिख रहा है। अस्पतालों में बिस्तर उपलब्ध नहीं हैं, तो लोग एम्बुलेंस में मर रहे हैं। दाह संस्कार या दफनाने के लिए लंबी कतारें लगी हैं। रि-लॉकडाउन चरण जारी है। इसलिए आर्थिक संकट एक चुनौती बना हुआ है। लेकिन अभी तक कोई बड़ा राज्य चुनाव नहीं हुआ है। गोवा 2022 में चुनाव प्रक्रिया से गुजरेगा और 2023 में छत्तीसगढ़।
महामारी का प्रबंधन मोदी-शाह की गले की हड्डी बन गया है और इसमें कोई शक नहीं है कि महामारी ने मोदी की विरासत को बहुत बड़ा झटका दिया है।