म्यांमार में तख्तापलट के बाद से सेना और जनता के बीच जंग जारी है। सेना देश पर शासन चाहती है, तो जनता सैनिक शासन को बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है। लोग लोकतंत्र की बहाली के लिए सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं, मगर सेना उनकी आवाज दबाने में जुटी हुई है। म्यांमार का कोई शहर ऐसा नहीं जहां पुलिस और सेना आंदोलनकारी जनता पर बर्बरता न कर रही हो।
लेकिन जनता का मनोबल वैसे का वैसा है। जनता का मनोबल बढ़ता देख सेना भी अब नरसंहार पर उतर आई है। जनता का मनोबल सेना के सामने अब चुनौती बनता जा रहा है। नतीजा यह है कि जनता का मनोबल तोड़ने के लिए सेना अब किसी को नहीं बख्श रही है। लेकिन अब सेना से निपटने के लिए छात्रों और युवाओं के हाथों में भी हथियार आ चुके हैं। इस स्थिति के बाद अब देश में हर जगह गुरिल्ला युद्ध के नज़ारे देखे जा रहे हैं। अब तक देश में 557 प्रदर्शनकारियों की मौत हो चुकी है। सेना की कार्रवाई में मारे जाने वाले प्रदर्शनकारियों में ज्यादातर छात्र हैं। इस दौरान एक सात साल की छोटी बच्ची भी सेना की गोली की निशाना बनी थी।
अब तक देश में सेना द्वारा रोजाना निहत्थे नागरिकों को मार दिया जाता है जिसके चलते लोग आतंकित हैं। इस वजह से अब कुछ प्रदर्शनकारियों का कहना है कि सेना के साथ अपनी शर्तों पर लड़ने के सिवाय कोई विकल्प नहीं है। इसलिए छात्र, पार्टी कार्यकर्ता और कर्मचारी समूह बना कर हथियारों के साथ एक प्रकार के छापामार युद्ध में लग गए हैं।
शहरों में प्रदर्शनकारियों ने बैरिकेड्स का निर्माण किया और उन्हें सैन्य छापे से बचाने के लिए मार्च किया। नागरिक सेनानियों के सैनिकों को जंगलों में युद्ध तकनीकों में प्रशिक्षण दिया जाता है और सेना प्रणालियों को ध्वस्त किया जाता है। सीमावर्ती लड़ाके सैंडबैग को कवर के रूप में उपयोग कर रहे हैं, बांस की बैरिकेड्स लगाई जा रही हैं ताकि सेना आसानी से न आ सके।
वहीं दुनिया तक अपनी आवाज पहुँचाने के लिए देश की जनता कई अनोखे तरीकों को अपनाकर सेना का विरोध जाता रही है। प्रदर्शनकारियों द्वारा सारोंग क्रांति से लेकर गार्बेज स्ट्राइक तक की गई और अब ईस्टर के मौके पर भी देश में अंडो पर संदेश लिखकर विरोध जताया गया। 1 फरवरी के तख्तापलट के विरोध में प्रतीक के रूप में कई अंडों को ‘तीन उंगलियों की सलामी’ के साथ चित्रित किया गया था। प्रदर्शन को ‘ईस्टर एग स्ट्राइक’ नाम दिया गया था।