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गहरे संकट में इथोयोपिया, दो प्रांतो की लड़ाई में 100 की मौत, गृहयुद्ध के हालात

विश्व को शांति का संदेश देने वाला अफ्रीकी देश इथोयोपिया खुद भारी नस्लीय हिंसा का शिकार हो चुका है। यहां के प्रधानमंत्री 2018 में तब चर्चा में आए थे, जब उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया। लगातार नस्लीय हिंसा से ग्रस्त इथोयोपिया की अबी अहमद सरकार इस हिंसा को रोकने में बिल्कुल असफल साबित हो रहे है। जून में इथोयोपिया में राष्ट्रीय चुनाव होने है। लेकिन जातीय हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही। हाल ही में इथियोपिया के अफारा और सोमाली प्रातों में जातीय हिंसा को लेकर गोलबारी हुई। बंदूकधारियों ने 100 लोगों की हत्या कर दी। एक क्षेत्रिय अधिकारी ने इस बात की पुष्टी की है।

अफारा क्षेत्र के डिप्टी पुलिस कमिश्रर अहमद हमीद ने समाचार एजेंसी रायटर को बताया कि अब तक 100 लोगों की मौत हो चुकी है और कई घायल हो गए है। शुक्रवार को शुरु हुई हिंसा मंगलवार तक जारी रही। सोमाली और अफारा क्षेत्र में हो रही खूनी हिंसा प्रधानमंत्री अबी अहमद के समाने काफी बड़ी चुनौती है। सोमाली क्षेत्र के एक प्रवक्ता अली बेदेल ने कहा कि शुक्रवार को 25 लोग मारे गए थे और मंगलवार को इन्हीं बलों द्वारा किए गए बाद के हमले में एक अज्ञात नागरिकों की मौत हो गई थी। रायटर स्वतंत्र रूप से यह सत्यापित नहीं कर सका कि सोमाली अधिकारी द्वारा दावा की गई 25 मौतें 100 मौतों के अलावा थीं या उस आंकड़े में शामिल थीं।

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इस हिंसा से कुछ दिन पहले ओरोमिया क्षेत्र में अज्ञात बंदूकधारियों ने एक गांव में हमला करके 30 लोगों को मार डाला था। 50 वर्षीय किसान वोसन एंडेज ने बताया था कि उनके पड़ोसी ओरोमिया के वेस्ट वोलेगा जोन में मंगलवार को हुए हमले में मारे गए थे। मरने वालों की पहचान अम्हार जाती के रुप में हुई है। वोसन ने बताया कि हमने तीस लोगों की ब़ॉडी को कार में डाला और उन्हें दफनाया। उन्होंने कहा कि उन्होंने और उनके परिवार ने गोलियों की आवाज सुनी और पास के एक सरकारी कार्यालय में भाग गए थे।

अबी अहमद अली के शासन में जमीन और संसाधनों को लेकर जातीय हिंसा के मुद्दे लगातार सामने आते रहे हैं। अबी अप्रैल 2018 में इथोपिया के प्रधानमंत्री बने थे। नवंबर अंत में सरकारी बलों द्वारा क्षेत्रीय राजधानी मेकेल पर नियंत्रण हासिल करने के बाद टीपीएलएफ (टाइग्रे पीपल्स लिबनेशन फ्रंट) के खिलाफ उन्होंने जीत की घोषणा की थी। अबी को 2019 में नोबेल शांति पुरस्कार मिल चुका है। उन्हें यह पुरस्कार इरिट्रिया के साथ के सीमा विवाद को खत्म करने में पहल के लिए सम्मानित किया गया था। इन्हें इथियोपिया का नेल्सन मंडेला कहा जाता है। दिसंबर में इथोपिया में हुई एक जातीय हिंसा के दौरान कथित तौर पर हुए नरसंहार में कम से कम 102 सामान्य नागरिक मार दिए गए थे। यह हमला प्रधानमंत्री की वहां यात्रा के एक दिन बाद हुआ था। जिन्होंने विद्रोहियों से निपटने के लिए सेना को कार्रवाई करने की अनुमति दे दी थी। लेकिन अब सेना और विद्रोही ग्रुप आपस में हर रोज भिड़ रहे है। इथोयपियो के टिग्रे क्षेत्र में सेना और विद्रोहियों के बीच लड़ाई पिछले काफी समय से चल रही है। पिछले तीन दशको से इथोयोपिया पर टीपीएलएफ राज कर रही थी। लेकिन 2018 में अबी अहमद के प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने टीपीएलएफ के कई बड़े चेहरों को सरकारी पदों से हटा दिया था। अबी ने सभी क्षेत्रिय पार्टियों को राष्ट्रीय पार्टियां बना दिया था। लेकिन टीपीएलएफ ने इस मीटिंग में हिस्सा नहीं लिया था।

टीपीएलएफ और इथियोपिया की सरकार में मतभेद तब ज्याद हिंसक हो गया, जब टिग्रे क्षेत्र में चुनाव हुए। हालांकि कोरोना महामारी के कारण चुनावों पर रोक लगा दी गई थी, और प्रधानमंत्री ने इन्हें गैरकानूनी करार दिया था। जिसके बाद लड़ाई और ज्यादा बढ़ गई। अहमद अली ने टीपीएलएफ पर सैन्य टिकानों पर हमले और हथियार चोरी का आरोप लगाया। प्रधानमंत्री अबू ने अपने एक बयान में कहा कि उन्हें टिग्रे क्षेत्र के लोगों से कोई समस्या नहीं, उन्हें केवल वहां के राजनीतिक नेताओं से समस्या है। उनका मकसद केवल धर्म और जाति के नाम पर हिंसा फैलाना है, जिसमें देश में अराजकता फैल जाए। वहीं टीपीएलएफ के नेता ने जवाब में कहा था कि टिग्रे उनके दुश्मनों के लिए नर्क है। टिग्रे के लोग कभी भी घुटने नहीं टेकेंगे।

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