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जलवायु परिवर्तन समारोह में भारत को अमेरिका का न्यौता

अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने व्हाइट हाउस संभालते ही क्लाइमेट को टॉप एजेंडा में लाने में देर नहीं लगायी। अपने कार्यकाल के पहले ही दिन बाइडेन ने डोनाल्ड ट्रम्प के कार्यकाल के दौरान लागू किये गये 100 से अधिक पर्यावरण नियमों को रद्द किया। बाइडेन अमेरिका को पेरिस डील से दोबारा जोड़ा। क्लाईमेट को लेकर अभी अमेरिका दोबारा संतर्क हुआ है। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के जलवायु दूत जॉन केरी भारत आए थे। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन 22-23 अप्रैल को क्लाईमेट चैंज पर एक वर्चुअल समारोह भी कर रहे है। जिसमें कई देश राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री वीडियो कान्फ्रेंसिग के माध्यम से जुड़ेंगे। जलवायु दूत जॉन भारत, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और बांग्लादेश के दौरे पर हैं। भारत को जलवायु परिवर्तन में समारोह में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित करने आए थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केरी के साथ हुई मीटिंग में कहा कि भारत अपने जलवायु परिवर्तन प्रतिज्ञाओं को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है। वहीं केरी ने कहा कि अमेरिका हरित प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने के लिए फाइनेसिंग सहायता भी करेगा। भारत यात्रा के दौरान कैरी यहां विदेश मंत्री एस जयशंकर के अलावा वित्त मंत्री, वन एवं पर्यावरण मंत्री, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री, ऊर्जा, नवीन एवं नवीकरणीय ऊजा मंत्री आदि से भी मुलाकात करेंगे। कैरी ने बताया कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जलवायु मुद्दे पर नेताओं की शिखर बैठक में हिस्सा लेने के लिये आमंत्रित किया जिसे डिजिटल माध्यम से आयोजित किया जा रहा है।

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ट्रम्प ने 2016 में व्हाइट हाउस में दाखिल होने के साथ ही पेरिस डील से किनारा कर लिया था। उनके मुताबिक ग्लोबल वॉर्मिंग या जलवायु परिवर्तन कुछ नहीं बस भारत और चीन जैसे देशों का खड़ा किया हौव्वा है और ऐसे देश विकसित देशों से क्लाइमेट के नाम पर पैसा लूटना चाहते हैं। जो बाइडेन ने चुनाव जीतने के बाद यह वादा किया कि अमेरिका फिर से डील का हिस्सा बनेगा। यह क्लाइमेट चेंज कार्यकर्ताओं और संगठनों के अलावा उन बीसियों विकासशील देशों के लिये भी एक हौसला बढ़ाने वाली ख़बर है जो जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभाव झेल रहे हैं क्योंकि अमेरिका जैसे बड़े और शक्तिशाली देश – जो कि आज चीन के बाद दुनिया में सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक है के पेरिस संधि में वापस आने से इस डील को मज़बूत करने में मदद मिल सकती है। खासतौर से तब जब डेमोक्रेट राष्ट्रपति व्हाइट हाउस में हो।

पिछले कई सालों से शोधकर्ता और क्लाइमेट साइंटिस्ट लगातार गर्म होती धरती के बारे में चेतावनी दे रहे हैं। आम धारणा है कि अगर कार्बन इमीशन को लेकर युद्धस्तर पर प्रयास किये गये तो ग्लोबल वॉर्मिंग का ग्राफ कभी भी नीचे लाया जा सकता है। जबकि सच इसके विपरीत बहुत क्रूर और कड़वा है। लगातार ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन से गर्म होती धरती उस दहलीज को पार कर चुकी है जहां वह हमारे प्रयासों के बावजूद गर्म होती रहेगी। ऐसी स्थिति को ‘बेक्ड-इन ग्लोबल वॉर्मिंग’ या ‘बेक्ड-इन क्लाइमेट चेंज’ कहा जाता है। साधारण भाषा में कहें तो अब धरती के तापमान में एक न्यूनतम बढ़ोतरी को रोकना नामुमकिन है चाहे सारे इमीशन रातों रात बन्द भी कर दिये जायें।

उधर चीन कहने को तो विकासशील देश है लेकिन उसकी अर्थव्यवस्था न केवल सबसे बड़ी है बल्कि दुनिया में सबसे तेज़ रफ्तार से बढ़ रही है। हैरत की बात नहीं है कि चीन कार्बन या कहें ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में नंबर वन है और अपने निकटतम प्रतिद्वंदी अमेरिकी से बहुत आगे है। चीन न केवल उत्सर्जन अंधाधुंध बढ़ा रहा है बल्कि वह दुनिया के कई ग़रीब विकासशील देशों में कोयले और दूसरे जीवाश्म ईंधन (तेल, गैस) को बढ़ावा दे रहा है।

क्लाइमेट चेंज से लड़ने में भारत की स्थिति तमाम घोषणाओं के बाद भी बहुत अच्छी नहीं है। वर्ल्ड रिस्क इंडेक्स (डब्ल्यूआरआई) 2020 रिपोर्ट के मुताबिक क्लाइमेट रियलिटी से निपटने के लिये भारत की तैयारी काफी कमज़ोर है। कुल 181 देशों की लिस्ट में भारत 89वें स्थान पर है यानी जलवायु परिवर्तन के ख़तरों से निपटने के लिये उसकी तैयारी बहुत कम है। दक्षिण एशिया में क्लाइमेट रिस्क की वरीयता में भारत बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बाद चौथे नंबर पर है। हाल यह है कि श्रीलंका, मालदीव और भूटान जैसे देशों की तैयारी हमसे बेहतर है।

भारत और डेनमार्क ने ग्रीन पॉलिसी के लिये एक साझा रणनीति बनाने का फैसला किया है। इसके तरह डेनमार्क भारत को साफ ऊर्जा के ज़रिये अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के तरीकों में मदद करेगा। दोनों देश अपने मंत्रालयों, संस्थानों और भागीदारों के ज़रिये आर्थिक रिश्तों को मज़बूत करने और क्लाइमेट लक्ष्य हासिल करने की कोशिश करेंगे। पर्यावरण और साफ ऊर्जा के साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग किया जायेगा। अपनी यूरोपियन ग्रीन डीलपॉलिसी के तहत ईयू ने पूरी दुनिया में कोयले और जीवाश्म ईंधन पर सब्सिडी खत्म करने की मांग की है। यूरोप के विदेश मंत्रियों ने गरीब देशों में सभी नये कोयला इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को वित्तीय बन्द करने की मांग की है। इस डील के तहत क्लाइमेट फाइनेंस भी बढ़ाने की मांग की गई खासतौर से अफ्रीकी देशों में। महत्वपूर्ण है कि यूरोप अभी भी काफी हद तक कोयले पर निर्भर है लेकिन उसका इरादा 2050 तक नेट ज़ीरो इमीशन का स्तर हासिल करने का है।

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