उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री का गंगोत्री विधासभा सीट से उपचुनाव लड़ना लगभग तय हो चुका है। भाजपा विधायक गोपाल सिंह रावत के निधन चलते खाली हुई इस सीट सहारे तीरथ विधायक बनने का प्रयास करेंगे। जानकारों की माने तो मुख्यमंत्री की इच्छा श्रीनगर अथवा गढ़वाल विधनसभा से चुनाव लड़ने की है लेकिन दोनों ही सीटों पर काबिज भाजपा के विधायक इस सीट से त्यागपत्रा देने को राजी नहीं है।

 

श्रीनगर से धनसिंह रावत तो गढ़वाल से सतपाल महाराज विधायक हैं। सूत्रों यह भी दावा है कि सीएम रावत पूर्व सीएम त्रिवेंद्र रावत की डोईवाला विधान सभा से भी चुनाव लड़ने के इच्छुक थे। उनका प्रस्ताव था कि त्रिवेंद्र उनके स्थान पर गढ़वाल लोकसभा सीट से चुनाव लड़ दिल्ली पहुंच जाएं और वे डोईवाला से विधायक बन जाएं। यह प्रस्ताव भाजपा आलाकमान को रास नहीं गया। नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हद्येश के निधन से खाली हुई हल्द्वानी सीट से भी मुख्यमंत्री को लड़ाने की चर्चा इन दिनों चल रही है। संकट यह कि हल्द्वानी सीट पर स्व. इंदिरा हृद्येश का भारी प्रभाव था। यदि कांगे्रस उनके पुत्र सुमित हृद्येश को इस सीट से टिकट देती है तो सहानुभूति लहर का फायदा सुमित को मिलना तय है। ऐसे में भाजपा कोई रिस्क नहीं उठाना चाहती। इसलिए ले-देकर तीरथ रावत के पास गंगोत्री विधानसभा से उपचुनाव लड़ने सिवा कोई विकल्प बचा नहीं है। जानकारों का कहना है कि यूं तो गंगोत्री से तीरथ रावत की जीत पक्की है लेकिन भीतरघात का खतरा सीएम की चिंता बढ़ा रहा है। पूर्व में 2012 के विधानसभा चुनावों में तीरथ के राजनीतिक गुरू जनरल खन्डुडी इसी भीतरघात चलते सीट से चुनाव हार गए थे।

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