Country

तेलंगाना चुनाव के मद्देनजर प्रिवेंटिव अरेस्ट एक्ट लागू करने की क्या है वजह

तेलंगाना

तेलंगाना में आगामी विधानसभा चुनाव जीतने के लिए सभी राजनीतिक दलों ने कमर कस ली है। प्रचार अभियान भी जोरों से चल रहा है। विपक्षी दल राज्य के कई मुद्दों को जनता के सामने रख रहे हैं। लेकिन एक मुद्दा ऐसा है जिस पर किसी का ध्यान नहीं है। दरअसल राज्य सरकार राज्य में कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए जो रवैया अपना रही है, उस पर सुप्रीम कोर्ट पहले ही टिप्पणी कर चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे ‘सत्ता का क्रूर इस्तेमाल’ बताया है। राज्य सरकार ने सख्त निवारक निरोध कानून (प्रीवेंटिव डिटेंशन लॉ) लागू किया है। साथ ही इस कानून के तहत गिरफ्तार लोगों को जमानत देने से भी इनकार कर रही है।

इस कानून (पीडी एक्ट) में 2017 में संशोधन कर 13 नए अपराध जोड़े गए, जिनका इस्तेमाल राज्य भर में बड़े पैमाने पर नागरिकों के खिलाफ किया गया है। इन कानूनों का इस्तेमाल विपक्षी विधायक से लेकर कथित तौर पर सांप्रदायिक तनाव भड़काने के आरोपियों, नकली बीज बेचने और यहां तक कि मोटरसाइकिल चोरी के आरोपियों तक सभी को निशाना बनाने के लिए किया गया है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के 2021 जेल आंकड़ों के अनुसार, जेल में कैदियों की संख्या के मामले में सभी राज्यों में तमिलनाडु के बाद तेलंगाना दूसरे स्थान पर है। 2021 के अंत में तेलंगाना में इस विशेष कानून के तहत 396 कैदी थे।

पिछले साल नवंबर में भड़काऊ भाषण के लिए पीडी अधिनियम के तहत हिरासत में लिए गए लोगों में भाजपा विधायक टी राजा सिंह भी शामिल थे। जब उच्च न्यायालय ने तकनीकी आधार पर हिरासत के आदेश को रद्द कर दिया तो उन्हें तीन महीने के भीतर रिहा कर दिया गया क्योंकि हिरासत के आधार की प्रति उन्हें प्रदान नहीं की गई थी। प्रीवेंटिव डिटेंशन लॉ पुलिस को सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने की शक्ति देता है।

 

हिरासत के आदेशों की जांच एक सलाहकार बोर्ड द्वारा की जाती है, जिसका गठन भी राज्य द्वारा किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट और तेलंगाना उच्च न्यायालय दोनों ने हिरासत के आदेशों को रद्द करते हुए रेखांकित किया है कि जमानत देने से बचने के लिए निवारक हिरासत नहीं लगाई जा सकती है। जब किसी आरोपी को समान अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया हो तो राज्य उसे हिरासत में नहीं ले सकता है। जमानत पर रिहा होने की संभावना है।

कर्णम के अध्ययन के अनुसार, 2015-2019 तक हैदराबाद में हिरासत में लिए गए 403 व्यक्तियों में से 99% हिरासत आदेश पुलिस द्वारा जारी किए गए थे और केवल 1% जिला मजिस्ट्रेट द्वारा जारी किए गए थे। अध्ययन में यह भी कहा गया है कि सलाहकार पैनल ने पर्याप्त कारण के अभाव में 403 हिरासत आदेशों में से केवल 43 को रद्द कर दिया, जिसका अर्थ है कि राज्य ने अपने स्वयं के 90% आदेशों को बरकरार रखा।

यह भी पढ़ें : एनसीईआरटी को ‘डीम्ड विश्वविद्यालय ‘ के दर्जे की मांग हुई तेज

You may also like

MERA DDDD DDD DD