प्लान – ए और प्लान – बी। राजनीति के पंडित इसको बखूबी जानते हैं। लेकिन आम आदमी इससे परिचित नहीं है। आइए आपको बताते हैं क्या है प्लान ए और प्लान बी। चुनाव संपन्न हो जाने के बाद और चुनाव परिणाम आने तक यह प्लान बनाए जाते हैं। जिसमें प्लान ए वह पार्टी बनाती है जो बहुत अंतर से जीत रही होती है। यानी कि जिस की लहर जबरदस्त होती है । प्लान बी वह पार्टी बनाती है जो जीत तो नहीं रही होती है लेकिन जीत के करीब होती है । ऐसा ही आजकल उत्तराखंड में देखने को मिल रहा है। उत्तराखंड में पूर्ण बहुमत में कांग्रेस आएगी या भाजपा यह तो 10 मार्च के बाद परिणामों में ही पता चलेगा। लेकिन फिलहाल दोनों ही पार्टी पूर्ण बहुमत को लेकर बेचैन दिखाई दे रही है। जिसके चलते ही प्लान बी पर रणनीति बनाई जा रही है ।

यह रणनीति भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियां बना रही है। जिसमें भाजपा की ओर से प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक और खुद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सक्रिय हो चुके हैं। दोनों ही दिल्ली जाकर हाईकमान से मिल कर आए हैं। जबकि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी तो पार्टी के हाईकमान जे पी नडडा से मिलने वाराणसी तक पहुंचे हैं। उधर, दूसरी तरफ कांग्रेस की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत प्लान बी को लेकर सजग और सक्रिय है। वह दिल्ली दौरे पर जाने के साथ ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से सलाह मशविरा कर रहे हैं। अब आइए आपको बताते हैं कि उत्तराखंड में प्लान बी की नौबत कैसे आन पड़ी है। बताया जा रहा है कि प्रदेश में 5 से 7 सीट तक निर्दलीय जीतने के कगार पर है। जबकि 4 से 5 सीट बसपा की मजबूत स्थिति में बताई जा रही है। इसके अलावा उत्तराखंड क्रांति दल की भी 2 सीट ऐसी है जहां वह जीतने की ओर है।
ऐसे में उत्तराखंड में 10 से 12 विधानसभा सीट ऐसी है जिन पर ना तो भाजपा और ना ही कांग्रेस जीत का दावा पुख्ता करते हुए नजर आती है। मतलब यह है कि इन सीटों पर भाजपा और कांग्रेस जीतने की स्थिति में नहीं है। ऐसे में कहा जाने लगा है कि उत्तराखंड में त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति भी आ सकती है। ऐसे में हो सकता है कि सरकार बनाने के लिए भाजपा या कांग्रेस को निर्दलीय, बसपा और यूकेडी का समर्थन लेना पड़ सकता है। इसके चलते दोनों ही पार्टियां जीत के कगार पर निर्दलीय, बसपा और यूकेडी के उम्मीदवारों से संपर्क साध रहे हैं। हालांकि, इस दौरान यह भी सुनने में आ रहा है कि जीत हासिल करने वाले विधायकों की खरीद फरोख्त भी हो सकती है। खरीद-फरोख्त को रोकने के लिए ही कांग्रेस जहां अपनी पार्टी के उम्मीदवारों से साफ निर्देश दे चुकी है कि वह सभी एक दिन पहले ही पार्टी के देहरादून कार्यालय में मौजूद रहेंगे।
वहीं दूसरी तरफ भाजपा ने भी अपने चुनाव में प्रत्याशी रहे नेताओं को साफ तौर पर कह दिया है कि वह उनके संपर्क में रहेंगे। भाजपा और कांग्रेस दोनों को ही अंदर खाने डर सता रहा है कि कोई भी राजनीतिक गेम खेला जा सकता है। वर्ष 2015 में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत इस खेल के चलते अपनी सरकार गवा चुके थे । हालांकि बाद में फिर वह पूर्ण समर्थन हासिल कर उत्तराखंड की सत्ता पर काबिज हो गए थे। प्लान बी के लिए भाजपा और कांग्रेस की सूची में निर्दलीयों की करीब 5 से 7 सीट है। जिनमें केदारनाथ पहले नंबर पर है। केदारनाथ पर निर्दलीय प्रत्याशी कुलदीप रावत भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टी के प्रत्याशियों से मजबूती से चुनाव लड़ कर सामने आए हैं। फिलहाल, कांग्रेस के मनोज रावत भाजपा की शैलारानी रावत की बजाए निर्दलीय कुलदीप रावत के जीतने के ज्यादा आसार बताए जा रहे हैं।
इसी के साथ ही टिहरी विधानसभा सीट पर भी निर्दलीय मजबूत स्थिति में है। यहां कांग्रेस के धन सिंह नेगी और भाजपा के किशोर उपाध्याय निर्दलीय दिनेश धनै से पिछड़ते हुए दिखाई दे रहे हैं । बहरहाल, दिनेश धनै पर दोनों ही पार्टियों का ध्यान
केंद्रित है। यमुनोत्री विधानसभा सीट से कांग्रेस ने दीपक बिलजवाल को प्रत्याशी बनाया था। इसके अलावा भाजपा ने यहां से केदार सिंह रावत को टिकट दिया । लेकिन दोनों पर कांग्रेस के बागी उम्मीदवार संजय डोभाल भारी पड़ते नजर आ रहे हैं। संजय डोभाल 2017 में भी कांग्रेस के प्रत्याशी थे। लेकिन उन्हें तब भी टिकट नहीं मिला और इस बार पार्टी ने उनका टिकट काटकर जिला पंचायत अध्यक्ष दीपक बिलजवाल को दे दिया। जिससे संजय डोभाल निर्दलीय ही मैदान में उतर आए। फिलहाल वह मजबूत बताए जा रहे हैं।

देवप्रयाग विधानसभा सीट पर इस बार यूकेडी के प्रत्याशी दिवाकर भट्ट भाजपा और कांग्रेस के नेताओं को पीछे छोड़ते नजर आ रहे हैं। भाजपा ने यहां से विनोद कंडारी तो कांग्रेस ने यहां से मंत्री प्रसाद नैथानी को टिकट दिया। लेकिन दोनों पर यूकेडी के प्रत्याशी और पूर्व में कैबिनेट मंत्री रह चुके दिवाकर भट्ट भारी पड़ते नजर आ रहे हैं। यूकेडी में दिवाकर भट्ट के साथ ही द्वाराहाट के प्रत्याशी पुष्पेश त्रिपाठी भी मजबूत उभर कर सामने आए हैं। यहां कांग्रेस ने पूर्व विधायक मदन बिष्ट को तो भाजपा ने अनिल साही को टिकट दिया। भाजपा प्रत्याशी यहां मुख्य मुकाबले में पिछड़ते दिखाई दे रहे। मुख्य मुकाबला यूकेडी और कांग्रेस के बीच रहा। बताया जा रहा है कि द्वाराहाट विधानसभा क्षेत्र में जिस तरह पुष्पेश त्रिपाठी मतदाताओं के बीच लोकप्रिय हुए उससे यूकेडी इस सीट को जीत के खाते में मान रही है।

निर्दलीय और यूकेडी के साथ ही उत्तराखंड में बसपा एक बार फिर से आती हुई प्रतीत हो रही है। 2017 में बसपा का खाता तक नहीं खुला था। जबकि इससे पहले एक बार वह 2012 के विधानसभा चुनाव मे किंग मेकर की भूमिका में रही थी। हरिद्वार की 11 विधानसभा सीटों में से 7 पर बसपा मजबूती से चुनाव लड़ी है। लेकिन इस बार वह हरिद्वार की 4 विधानसभा सीटों पर मजबूत स्थिति में है। जिनमें भगवानपुर ,खानपुर , लक्सर और मंगलौर मुख्य रूप से हैं। इन सीटों पर बसपा के प्रत्याशी भाजपा और कांग्रेस से अव्वल नजर आ रहे हैं।