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किंगमेकर बनने की उम्मीद में बसपा

उत्तराखण्ड की राजनीति में कभी किंग मेकर की भूमिका में रही बहुजन समाज पार्टी पिछले विधानसभा चुनाव में जीरो पर आउट हो गई थी। तब कहा गया कि मोदी लहर के चलते हाथी रेंगने लगा था। लेकिन इस बार हुए उत्तराखण्ड के विधानसभा चुनाव में हाथी फिर से खड़ा होता प्रतीत हो रहा है। खासकर हरिद्वार जिले की 4 विधानसभा सीटों पर

हरिद्वार की 4 विधानसभा में चुनाव बाद जो रुझान आ रहे हैं उसमें बहुजन समाज पार्टी भाजपा और कांग्रेस पर भारी पड़ती हुई दिखाई दे रही है। राजनीतिक पंडित अब गुणा-भाग करने में जुट गए हैं कि अगर हरिद्वार से हाथी मजबूत होता है तो वह हाथ का सहारा बनेगा या सूंड में कमल खिलाएगा?

हरिद्वार जिले में 11 विधानसभा सीटें हैं। जिनमें बहुजन समाज पार्टी के नेताओं की मानें तो उन्हें 7 सीटों पर बढ़त हासिल हो रही है। लेकिन जनता का रुझान देखे तो प्रतीत हो रहा है कि हरिद्वार जिले की चार विधानसभा क्षेत्रों में बहुजन समाज पार्टी ने मजबूती से चुनाव लड़ा है । कहीं वह कांग्रेस से तो कहीं भाजपा से मजबूती से चुनाव लड़ती दिखाई दे रही है। 1 विधानसभा क्षेत्र में बसपा का सीधा मुकाबला निर्दलीय प्रत्याशी से है। हरिद्वार जिले में सबसे ज्यादा चर्चित सीट लक्सर बन चुकी है। इसका कारण यहां के भाजपा विधायक रहे संजय गुप्ता द्वारा पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और हरिद्वार के विधायक मदन कौशिक पर आरोप लगाना है। गुप्ता ने मदन कौशिक को पार्टी प्रत्याशी को हराने के गंभीर आरोप लगाए। हालांकि, बाद में पार्टी डैमेज कंट्रोल में जुट गई। तब से कहा जा रहा है कि लक्सर में पार्टी प्रत्याशी को हराने का कोई काम नहीं किया गया।

लेकिन जिस तरह से यहां बसपा प्रत्याशी मोहम्मद शहजाद मजबूती से उभर कर सामने आए है, उससे भाजपा चिंतित है। मोहम्मद शहजाद भाजपा के नेताओं के करीबी रहे हैं। कहा जाता है कि पार्टी के एक विधायक तो मोहम्मद शहजाद को बकायदा निर्माण कार्यों के ठेके दिलवाते थे। भाजपा संग अपनी नजदीकी के चलते पिछले 4 सालों के दौरान मोहम्मद शहजाद तीन बार बसपा से निष्कासित किए जा चुके थे। बसपा ने एक बार मोहम्मद शहजाद को इस वजह से पार्टी से निष्कासित किया था कि उन्होंने अपने पुत्र की शादी में पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को बुलाया था। तब तत्कालीन विधायक संजय गुप्ता ने अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री और नेताओं को शहजाद का करीबी बताकर विवाद को जन्म दे दिया था। इस बार यहां से कांग्रेस ने डॉक्टर अंतरिक्ष सैनी को टिकट दिया। लेकिन वह चुनावी मुकाबले में पिछड़ते गए प्रतीत हो रहे हैं। फिलहाल, लक्सर में भाजपा और बसपा में कांटे की टक्कर है। इसमें बसपा प्रत्याशी मोहम्मद शहजाद को भाजपा अंदर भितरघात का फायदा भी मिलता दिखाई दे रहा है।

खानपुर विधानसभा सीट में इस बार दिलचस्प मुकाबला दिख रहा है। निर्दलीय प्रत्याशी पत्रकार उमेश कुमार ने यहां मजबूती से चुनाव लड़ कर भाजपा उम्मीदवार कुंवरानी देवयानी के लिए मुश्किलें पैदा कर दी। इससे बसपा प्रत्याशी रविंद्र पनियाला को फायदा मिलता दिख रहा है। हालांकि जिस तरह से उमेश कुमार ने नान गुर्जर वोटों में सेंध लगाई है उससे परिणाम चौंकाने वाले भी आ सकते हैं। यहां तीन गुर्जर कैंडिडेट चुनाव लड़ रहे थे। जिनमें भाजपा से पूर्व विधायक कुंवर प्रणव चैंपियन की पत्नी कुंवरानी देवयानी तो कांग्रेस से सुभाष चौधरी और बसपा से रविंद्र पनियाला है। बताया जा रहा है कि गुर्जर मतदाता इन तीनों प्रत्याशियों में बट गया। जबकि नान गुर्जर मतदाता जिनमें चौहान और सैनी प्रमुख रूप से शामिल रहे उमेश कुमार की तरफ आकर्षित होता हुआ दिखाई दिया। चौहान और सैनी मतदाता यहां 10 हजार से अधिक है। नॉन गुर्जर की बात करें तो वह यहां 38 हजार है। जबकि खानपुर विधानसभा क्षेत्र में 112000 लोगों ने मतदान किया। इसमें 30,000 मुस्लिम 12000 गुर्जर और 12000 बाल्मीकि वोटों में सबसे ज्यादा बसपा प्रत्याशी रविंद्र पनियाला का असर देखा गया। जबकि भा जपा प्रत्याशी पार्टी कैडर वोटों के पर ही निर्भर होकर रह गई। इस तरह से जो चुनावी रूझान सामने आ रहा है उससे भाजपा प्रत्याशी मुख्य मुकाबले से बिछड़ गई। यहां मुख्य मुकाबला बसपा प्रत्याशी रविंद्र पनियाला और निर्दलीय उमेश कुमार के बीच बताया जा रहा है।

भगवानपुर में भी बसपा मजबूती से उभर कर सामने आई है। जिसमें देवर और भाभी में मुख्य मुकाबला हुआ है। यहां पूर्व में कांग्रेस की मंत्री रही ममता राकेश फिर से चुनावी मैदान में है। जबकि उनके सामने उनके देवर सुबोध राकेश बसपा से चुनाव लड़ रहे हैं। सुबोध राकेश पूर्व में भाजपा में थे। लेकिन चुनाव होने से पहले ही वह भाजपा छोड़ बसपा में आ गए थे। तब बसपा ने उन्हें अपना प्रत्याशी बनाया। इसके साथ ही भाजपा से यहां मास्टर सत्यपाल चुनाव लड़े। बताया जा रहा है कि देवर-भाभी की लड़ाई में मास्टर पीछे रह गए। मंगलोर विधानसभा चुनाव में इस बार बसपा प्रत्याशी हाजी सरबत करीम कांग्रेस के उम्मीदवार काजी निजामुद्दीन को कड़ी टक्कर देते हुए नजर आए। भाजपा ने यहां से दिनेश पवार को मैदान में उतारा है जो मुख्य मुकाबले में पिछड़ते हुए बताए जा रहे हैं। कारण यह कि दिनेश पवार जनता के बीच नहीं गए। दिनेश पवार तेजपाल पवार के पुत्र हैं जब उत्तराखण्ड उत्तर प्रदेश का हिस्सा हुआ करता था उस दौरान तेजपाल पवार यहां से दो बार विधायक रह चुके हैं। उस समय हरिद्वार में सिर्फ तीन विधानसभा सीट होती थी। लक्सर, भगवानपुर, खानपुर, मंगलौर के साथ ही बसपा हरिद्वार में झबरेड़ा और रानीपुर विधानसभा चुनाव में भी मजबूती से चुनाव लड़ी है।

गौरतलब है कि राज्य में जब 2002 में पहले विधानसभा चुनाव हुए तो तब सबसे ज्यादा सीटें कांग्रेस को मिली थी। जिसमें कांग्रेस को 36 तो भाजपा को 19 तथा बहुजन समाज पार्टी को सात सीटें मिली थीं। बसपा को तब हरिद्वार जिले की 9 में से 5 सीटों पर विजय मिली थी। जिनमें लालढ़ाग, बहादराबाद, इकबालपुर, मंगलौर व लंढौरा आदि थी। इसके अलावा ऊधमसिंह नगर जिले की 7 में से 2 सीटों सितारगंज, पंतनगर-गदरपुर पर जीत मिली थी। इस तरह राज्य बनने के बाद पहले ही चुनाव में बसपा को कुल 7 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। इनमें पंतनगर के अलावा सभी 6 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटें थीं। प्रदेश में जब 2007 में दूसरे विधानसभा चुनाव हुए तो बसपा ने न केवल अपना पुराना प्रदर्शन दोहराया, बल्कि पहले से एक सीट की ज्यादा बढ़त हासिल की। तब भी बसपा हरिद्वार जिले में 6 सीटें लालढ़ाग, बहादराबाद, भगवानपुर, इकबालपुर, मंगलौर व लंढौरा (अनुसूचित जाति आरक्षित) के अलावा ऊधमसिंह नगर जिले में 2 सीटें सितारगंज (अनुसूचित जाति आरक्षित) और पंतनगर-गदरपुर सहित कुल 8 सीटें जीतने में कामयाब रही थी।

प्रदेश में 2008 का परिसीमन हुआ। इसके बाद 2012 में तीसरा विधानसभा चुनाव हुआ तो बसपा की राजनीतिक ताकत काफी घटने लगी। इस परिसीमन में ऊधमसिंह नगर जिले में 2 सीटें बढ़ गई थी। उसके बाद यहां कुल सीटों की संख्या 9 हो गई। जिसमें बसपा को एक भी सीट नहीं मिली। इसी तरह हरिद्वार जनपद में भी नए परिसीमन के बाद 2 विधानसभा सीटें बढ़ीं। जिनमें कुल विधानसभा सीटें 11 हो गईं। लेकिन यहां बसपा को केवल 3 सीटों भगवानपुर (आरक्षित), झबरेड़ा और मंगलौर सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। इनमें भी भगवानपुर सीट पर बाद में हुए उपचुनाव में यह सीट कांग्रेस ने बसपा से झटक ली। उसके बाद बसपा के पास महज 2 सीटें ही रह गईं।

मत प्रतिशत के हिसाब से देखा जाए तो अलग राज्य बनने के बाद उत्तराखण्ड में बसपा का मजबूत जनाधार रहा है। राज्य गठन के बाद पहली बार वर्ष 2002 में हुए विधानसभा चुनाव में बसपा ने 10 .93 मत प्रतिशत लेकर सात सीट पर कब्जा जमाया था और तीसरी ताकत के रूप में सामने आई थी। 2007 में हुए दूसरे विधानसभा चुनाव में बसपा को 11 .76 प्रतिशत मत प्राप्त हुए। मत प्रतिशत में बढ़त के साथ ही पहले के मुकाबले बसपा की एक सीट बढ़ी। इसके साथ ही बसपा ने उत्तराखण्ड में तीसरे सबसे बड़े दल के रूप में अपनी पकड़ को और अधिक मजबूत कर लिया था। यह बसपा का अब तक का सबसे सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा था। वर्ष 2012 में हुए तीसरे विधानसभा चुनाव में बसपा का मत प्रतिशत तो बढ़ कर 12 .19 प्रतिशत तक पहुंच गया था। लेकिन सीटों की संख्या आठ से घट कर तीन पर पहुंच गई थी। राज्य के चौथे 2017 के विधानसभा चुनावों में बसपा के जनाधार में भारी गिरावट देखने को मिली। तब बसपा का मत प्रतिशत गिरकर 6 .98 ही रह गया था। इसी के साथ 2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा का निराशाजनक प्रदर्शन देखने को मिला और उसकी झोली खाली रही। इस विधानसभा चुनाव में हाथी जीरो से आगे नही बढ़ सका।

हम तो मूलतः बसपा के ही कार्यकर्ता रहे हैं, कई बार पार्टी से बाहर भी किए गए हैं। लेकिन डेढ़ साल पहले ही पार्टी ने वापस बुलाकर पार्टी ज्वाइन कराई और चुनाव लड़ने की तैयारी करने को कहा। बहन जी की कृपा और जनता
के स्नेह से हम मजबूत स्थिति में हैं।
मोहम्मद शहजाद, बसपा प्रत्याशी लक्सर

इस बार जनता ने हो-हल्ला मचाने वालों को आईना दिखा दिया। जनता ने अपने बीच के आदमी को मजबूती दी है। एक पार्टी ने बाहरी प्रत्याशी को टिकट दिया जो मेरे लिए फायदेमेंद रहा। बसपा से टिकट मिलने पर हमारी जीत की राह आसान हो गई है।
रविन्द्र पनियाला, बसपा प्रत्याशी खानपुर

भगवानपुर ही नहीं बल्कि हरिद्वार की जनता बहन जी और बसपा में आज भी विश्वास जताती है। यह चुनाव में सिद्ध भी हुआ है। हरिद्वार में हाथी एक बार फिर आ रहा है।
सुबोध राकेश, प्रत्याशी बसपा भगवानपुर

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