‘वन नेशन – वन इलेक्शन’ का नारा देने वाली केंद्र की मोदी सरकार के राज में कोरोना महामारी का एक सच सामने आया है। जिसमे कोरोना बिमारी को कंट्रोल करने में सहायक बन रही सीरम कंपनी की वैक्सीन कोवीसील्ड को देश में तीन – तीन कीमतों में बेचा जा रहा है। ऐसे में सवाल उठ रहे है कि आखिर महामारी के इस दौर में केंद्र सरकार अपने वादे पर अमल क्यों नहीं कर पा रही है जिसमे वह सबको निशुल्क वैक्सीन देने की बात कहती है। अगर सभी को वैक्सीन निशुल्क दी जानी संभव नहीं है तो कम से कम पुरे देश में यह वैक्सीन एक कीमत पर तो दी जा सकती है। लेकिन ऐसा क्यों नहीं ?चर्चा यह भी है कि कही निशुल्क वेक्सिनेशन का यह पांच राज्यों को जीतने का चुनावी शिगूफा तो नहीं था ?
गौरतलब है कि अभी तक सरकारी अस्पतालों में कोरोना की यह वैक्सीन निशुल्क लगती थी। जिसकी आपूर्ति केंद्र सरकार राज्यों को निशुल्क कर रही थी। जबकि निजी अस्पतालों में 250 रुपए लिए जाते थे। वह इसलिए कि सरकार उन्हें 150 रुपए में वैक्सीन दे रही थी। दो दिन पहले जब से घोषणा की गई है कि एक मई से 18 साल से ज्यादा उम्र के युवाओ को वैक्सीन लगेगी तब से सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने वैक्सीन की कीमतें दोगुनी से ज़्यादा कर दी हैं। कंपनी के अनुसार केंद्र सरकार को वैक्सीन 150 में मिलती रहेगी, लेकिन राज्य सरकारों को कोवीशील्ड के एक डोज के लिए अब 400 रुपए और निजी अस्पतालों को 600 रुपए चुकाने होंगे।
1 मई से 18 साल से ऊपर के लोगों को भी वैक्सीन लगने वाली है, इसलिए सीरम 50 प्रतिशत वैक्सीन सीधे केंद्र सरकार को जबकि बाकी 50 प्रतिशत राज्य सरकारों और प्राइवेट अस्पतालों को सीधे बेच सकेगी। सीरम नई व्यवस्था में भी केंद्र को 150 रुपए प्रति डोज में वैक्सीन देगी। लेकिन राज्य सरकारों से 400 रुपए और निजी अस्पतालों से 600 रुपए लेगी।
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ऐसे में सवाल उठ रहे है कि सीरम जब केंद्र सरकार को 150 रुपए में वैक्सीन दे सकती है तो फिर राज्य सरकारों से 400 रुपए और निजी अस्पतालों से 600 रुपए क्यों लिए जा रहे हैं? अधिकतर लोगो की आवाज है कि अगर केंद्र सरकार को बड़ी आबादी को वैक्सीनेट करना है और सरकार चाहती भी है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को वैक्सीन लगे तो राज्य और निजी अस्पतालों के लिए भी कीमतें वही होनी चाहिए जो केंद्र सरकार के लिए है।