किसी भी देश में पत्रकारों को सबसे कमजोर तबके की आवाज और सरकार के काम पर पैनी नजर रखने वाले बाज की तरह देखा जाता रहा है। किसी देश में क्या हो रहा है और क्यों हो रहा है, इसका लेखा-जोखा एक पत्रकार के पास आपको मिल जाएगा। मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है। लेकिन अब लोकतंत्र का मंदिर कहे जाने वाले भारतीय संसद में पत्रकारों की एंट्री को सीमित कर दिया है। इस फैसले को लेकर पत्रकारों ने आक्रामक रूप अख्तियार कर लिया है।
दरअसल, भारत में पत्रकार “लॉटरी सिस्टम” के माध्यम से संसद के चल रहे शीतकालीन सत्र को कवर करने वाले पत्रकारों की संख्या को सीमित करने के सरकार के फैसले का विरोध कर रहे हैं। सरकार पर आरोप लगाए जा रहे हैं कि सरकार पत्रकारों को उनके अधिकार से वंचित करने का प्रयास कर रही है।
संसद में सीमित पत्रकारों की एंट्री के निर्णय के खिलाफ देश की राजधानी दिल्ली की सड़कों पर पत्रकारों का आक्रोश देखने मिला। देशभर के प्रिंट और टीवी मीडिया से लेकर फोटो पत्रकारों ने सरकार के खिलाफ संसद तक पैदल मार्च निकाला। इस मार्च में देशभर के कई नामचीन पत्रकार शामिल रहे। पत्रकारों ने कहा कि स्वतंत्र मीडिया के बिना लोकतंत्र संभव नहीं है और इसलिए संसद भवन में पत्रकारों की एंट्री सुनिश्चित की जाए।
संसद मार्च से पहले पत्रकारों ने प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के दफ्तर में बैठक बुलाया था। इस दौरान प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, प्रेस एसोसिएशन, इंडियन वोमेन्स प्रेस कोर, दिल्ली पत्रकार संघ और वर्किंग न्यूज़ कैमरामैन एसोसिएशन के पदाधिकारी शामिल हुए। बैठक के बाद सैंकड़ों की संख्या में मौजूद पत्रकारों ने हाथ में विभिन्न तख्तियां लेकर संसद भवन की ओर कूच किया। पत्रकारों ने बताया कि हम लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और राज्यसभा के सभापति वैंकेया नायडू को इस संबंध में ज्ञापण सौंपेंगे।
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मौजूदा मोदी सरकार में किस तरह स्वतंत्र मीडिया का पतन हो रहा है इसका सच्चाई खुद इंडेक्स वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2021 की रिपोर्ट बयां करती है।
रिपोर्ट में दुनिया भर में प्रेस की स्वतंत्रता और पत्रकारों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने ऐसे 37 राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों के नाम प्रकाशित किए हैं जो उसके मुताबिक ‘प्रेस की आज़ादी पर लगातार हमले कर रहे हैं।’
रिपोर्ट के मुताबिक रिपोर्ट को संस्था द्वारा ‘गैलरी ऑफ़ ग्रिम पोट्रेट’ नाम दिया गया है यानी निराशा बढ़ाने वाले चेहरों की गैलरी। गैलरी के 37 चेहरों में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा भी शामिल है। भारत में सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के नेता और मंत्री इस तरह की रिपोर्टों को ‘पक्षपातपूर्ण’ और ‘पूर्वाग्रह से प्रेरित’ बताते रहे हैं, उनका कहना है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है जहाँ प्रेस को आलोचना करने की पूरी आज़ादी है। लेकिन ये प्रीतिदिन घटती जा रही है और पत्रकारों पर पाबंदियां लगाई जा रही हैं। भारत वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में पिछले चार सालों से लगातार नीचे खिसकता जा रहा है, वह साल 2017 में 136वें, साल 2018 में 138वें, साल 2019 में 140वें और पिछले साल 142वें नंबर पर पहुँच गया।
क्यों पत्रकार उतरे सड़कों पर
दरअसल, केंद्र की मोदी सरकार ने कोविड नियमों का हवाला देते हुए पत्रकारों के संसद में प्रवेश पर रोक लगा रखी है। पत्रकारों का कहना है कि स्थायी पास धारकों को संसद कवर करने के लिए पत्रकार दीर्घा का पास पहले की तरह बनाया जाए। साथ ही संसद के सेंट्रल हॉल के पास इशू प्रक्रिया पर जो पाबंदी लगी है, उसे हटाकर पहले की तरह नए पास बनाए जाएं। इस प्रक्रिया में वरिष्ठ पत्रकारों की सेवाओं के आधार पर वरीयता दी जाए।
पत्रकार संगठनों की यह भी मांग है कि लंबे समय तक संसद कवर करनेवाले पत्रकारों के विशेष स्थायी पास फिर से दिया जाए। जो उनके पेशे की गरिमा और सम्मान के अनुरूप है। फिलहाल सरकार ने इस पर भी रोक लगा रखी है। साथ ही जिन पत्रकारों को सत्र की पूरी अवधि के लिए जो पास बनते थे, उनके लिए भी पहले की तरह पास बनाएं जाएं ताकि वे सदन की कार्यवाही कवर कर सकें। पत्रकारों का कहना है कि सरकार द्वारा प्रवेश पर रोक लगने से हमारी नौकरी और सेवा पर असर पड़ा है जिससे उन्हें छंटनी का भी सामना करना पड़ा है। पत्रकारों ने मांग की है कि संसद के दोनोंसदनों की प्रेस सलाहकार समितियों का नए सिरे से गठन किया जाए क्योंकि दो साल से उनका गठन नहीं हुआ है।
विपक्ष का समर्थन
विपक्षी दलों ने भी पत्रकार संगठनों की मांगों को जायज ठहराते हुए समर्थन दिया है। राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मालिकार्जुन खड़गे ने कल इस मुद्दे को उठाया था। कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने इस मामले पर आधिकारिक बयान जारी कर कहा है कि, ‘ केंद्र की भाजपा सरकार की तानाशाही सभी हदें पार कर गई हैं। यह देश की पहली ऐसी सरकार है जो ना तो सांसदों की बात सुनना चाहती, ना ही संसद की। देश के 75 साल के इतिहास में पहली बार अब पत्रकारों को भी संसद की कार्यवाही पत्रकार दीर्घा से देखने के लिए सड़कों पर आंदोलन करना पड़ रहा है।’ टीएमसी ने भी पत्रकारों से मिलकर इस मुद्दे पर अपना समर्थन दिया है।