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महाराष्ट्र में कुछ भी असंभव नहीं 

महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पद को लेकर सियासी संग्राम मचा हुआ है।  शिवसेना और बीजेपी अपने-अपने जिद पर कायम है, इसी का नतीजा है कि अभी तक सरकार गठन नहीं हो सका है। महाराष्ट्र में जो इस समय हो रहा है वो शायद भारत में पहले कभी नहीं हुआ. बहुमत नहीं होने पर राजनैतिक दल किसी तरह दूसरे दलों से जोड़तोड़ करके सरकार बनाने की कोशिश करते हैं भले ही वो विचारधारा के स्तर में एक दूसरे से कितने भी अलग हों एक दूसरे के कितने भी बड़े विरोधी रहे हों लेकिन यहां तो सहयोगी ही आपस में भिड़े हुए हैं. महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए 9 नवंबर तक की डेडलाइन है।

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने सोमवार को अमित शाह से मुलाकात की वहीं एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की जबकि शिवसेना नेता संजय राउत ने राज्यपाल से भेंट की। लेकिन इसके बाद भी राज्य में नयी सरकार के गठन को लेकर कोई स्पष्ट स्थिति बनती नहीं दिखी हालांकि विधानसभा चुनाव के परिणाम घोषित हुए मंगलवार को 12 दिन हो चुके हैं।

दिल्ली में सोनिया गांधी के साथ मुलाकात के बाद पवार ने राज्य का मुख्यमंत्री बनने की किसी भी संभावना से इनकार कर दिया। यह पूछे जाने पर कि क्या राकांपा शिवसेना को समर्थन देने पर विचार कर रही है, पवार ने कहा, ”शिवसेना की ओर से किसी ने भी मुझसे इस बारे में संपर्क नहीं किया है। हमें (राकांपा को) विपक्ष में बैठने का जनादेश मिला है। इस होड़ में शामिल होने के लिए हमारे पास पर्याप्त संख्या नहीं है।’

उधर, फडणवीस ने राज्य में बेमौसम बारिश से प्रभावित किसानों के लिए केंद्रीय राहत मांगने की खातिर राष्ट्रीय राजधानी में केंद्रीय गृह मंत्री और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात की। उन्होंने कहा कि नयी सरकार जल्द बनेगी, लेकिन यह उल्लेख नहीं किया कि शिवसेना नयी सरकार का हिस्सा होगी या नहीं। इस बीच राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मुलाकात के बाद राउत ने कहा कि शिवसेना राज्य में सरकार बनाने में कोई बाधा नहीं डाल रही है। उन्होंने कहा कि जिसके पास भी बहुमत है उसे सरकार बनाने की अनुमति दी जानी चाहिए।  राउत सत्ता के समान बंटवारे और मुख्यमंत्री पद साझा करने की शिवसेना की मांग को प्रमुखता से उठाने में मुखर रहे हैं। उन्होंने कहा, ”हमने राज्यपाल को बताया कि नयी सरकार के गठन को लेकर राज्य में मौजूदा राजनीतिक हालात के लिए शिवसेना जिम्मेदार नहीं है।

राज्यपाल से महाराष्ट्र में सरकार बनाने का दावा करेगी शिवसेना

शिवसेना प्रमुख रहे बालासाहेब ठाकरे अपने कार्टूनों में इंदिरा गांधी को खूब निशाना बनाया करते थे। इसके बाद भी शिवसेना ने कांग्रेस से हाथ मिलाया था। वर्ष 1975 में बालासाहेब ने इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल का सपोर्ट करके सबको चौंका दिया था। अब शिवसेना और कांग्रेस के साथ आने के कयास लगाए जा रहे हैं। कांग्रेस-एनसीपी मौके की सियासी नजाकत को भांपने में जुटे हैं और अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं।  इसके बावजूद शिवसेना शरद पवार की एनसीपी और कांग्रेस के दम पर सरकार बनाने का दम दिखा रही है।  ऐसे में वैचारिक रूप से एक दूसरे के विरोधी कांग्रेस और शिवसेना साथ आते हैं तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए, क्योंकि कभी बालसाहेब ठाकरे ने इंदिरा गांधी को समर्थन दिया था. हालांकि अब गेंद कांग्रेस के पाले में  है।

वर्ष 1977 के चुनाव में भी बालासाहेब ठाकरे ने कांग्रेस को समर्थन किया था, लेकिन शिवसेना को ये सपोर्ट काफी भारी पड़ाथा।  1978 के विधानसभा चुनाव और बीएमसी चुनाव में शिवसेना को मुंह की खानी पड़ी. शिवसेना को इतना बड़ा धक्का लगा कि बालासाहेब ने शिवाजी पार्क की एक रैली में अपना इस्तीफा तक ऑफर कर दिया था।  हांलाकि शिवसैनिकों के विरोध के बाद ये इस्तीफा उन्होंने वापस ले लिया था। 1975 में आपातकाल लगने के बाद विपक्षी नेताओं को जेल भेजा जा रहा था. कहा ये जाता है कि महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री शंकरराव चव्हाण ने बालासाहेब के सामने दो विकल्प रखे या तो दूसरे विपक्षी नेताओं की तरह गिरफ्तार हो जाएं या फिर आपातकाल के समर्थन का ऐलान कर दें. बाला साहेब ने जेल जाना मुनासिब नहीं समझा और आपातकाल के पक्ष में हो गए थे।

इससे पहले भी 1971 में बालासाहेब ने कांग्रेस के दूसरे धड़े के साथ मिलाया था। 1969 में कांग्रेस का बंटवारा हो गया था. पीएम पद पर बैठीं इंदिरा गांधी को कांग्रेस के पुराने नेताओं ने पार्टी से निकाल दिया।  इंदिरा गांधी के खिलाफ खड़े इन नेताओं के वर्ग को ‘कांग्रेस के सिंडिकेट’ के नाम से जाना जाता था। 1971 में बालासाहेब ने कांग्रेस से हाथ मिलाया लोकसभा चुनाव के लिए तीन उम्मीदवार खड़े किए थे. हालांकि ये तीनों ही हार गए। वैसे कहा ये जाता है कि कांग्रेस ने ही कम्युनिस्टों के खिलाफ लड़ने के लिए शिवसेना को खड़ा करने में मदद की थी. शुरुआती दिनों में उस समय के मुख्यमंत्री वसंतराव नाइक के नाम पर शिवसेना को विरोधी, वसंत सेना कहते थे. 1980 में शिवसेना ने कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में समर्थन किया था. बालासाहेब ने कांग्रेस के खिलाफ शिवसेना के प्रत्याशी  नहीं उतारे थे. इसकी बड़ी वजह बताई गई तत्कालीन मुख्यमंत्री एआर अंतुले के साथ बालासाहेब के निजी रिश्ते। यही नहीं बालासाहेब ने प्रतिभा पाटिल और प्रणव मुखर्जी दो कांग्रेसी उम्मीदवारों का राष्ट्रपति चुनाव के लिए समर्थन किया था। 1984 के चुनाव में बालासाहेब ने अपनी पार्टी के दो उम्मीदवार बीजेपी के चुनाव निशान पर खड़े किए थे।

 1989 में बीजेपी-शिवसेना ने अपना गठबंधन फाइनल किया इसमें प्रमोद महाजन का बड़ा योगदान था. इस गठबंधन में शिवसेना हमेशा बड़े भाई की भूमिका में रही। 1990 के चुनाव में शिवसेना 288 में से 183 सीटों पर लड़ी. छोटे सहयोगियों को शिवसेना ने अपने कोटे से सीट दीं थी. 1995 में भी यही फॉर्मूला कायम रहा, जब बीजेपी-शिवसेना सत्ता में आए. इस फॉमूर्ले में थोड़ा बदलाव 1999 और 2004 में किया गया. वजह सुनने में आई बालासाहेब का लकी नंबर 9 है. शिवसेना171 और बीजेपी 117 सीटों पर चुनाव लड़ी. इस नंबर में एक मामूली बदलाव 2009 के विधानसभा चुनाव में हुआ,  जिसके बाद शिवसेना 169 और बीजेपी 119 सीट पर लड़ी. लेकिन महाराष्ट्र की सत्ता 15 साल कांग्रेस-एनसीपी के हाथों में रही।

नरेंद्र मोदी और अमित शाह के बीजेपी में उभार के बाद भगवा दलों का समीकरण बदल गया. 2014 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना और बीजेपी का गठबंधन टूट गया, दोनों अलग अलग चुनाव लड़े. शिवसेना को सिर्फ 63 और बीजेपी को 122 सीटें मिलीं. हालांकि चुनाव के बाद शिवसेना और बीजेपी ने मिलकर सरकार बनाई।

2019 में बीजेपी 164 और शिवसेना 124 सीटों पर चुनाव लड़ी. इस दौरान कहा गया कि सत्ता के समान बंटवारे के लिए एक फॉर्मूला तय हुआ है. पर ये सीक्रेट फॉर्मूला है क्या, ना तो बीजेपी और ना ही शिवसेना ने इसका खुलासा किया. अब शिवसेना कह रही है कि मुख्यमंत्री पद के ढाई-ढाई साल के बंटवारे की बात हुई है जबकि बीजेपी इससे इनकार कर रही है।

इस बीच महाराष्ट्र में भाजपा को समर्थन देने वाले निर्दलीय विधायक रवि राणा ने दावा किया कि शिवसेना के ”करीब 25 विधायक अगली सरकार के गठन के लिए उनके संपर्क में हैं। उन्होंने शिवसेना को ”बहुत अभिमानी करार दिया और दावा किया कि उद्धव ठाकरे नीत पार्टी टूट जाएगी और  यदि फड़णवीस इस सहयोगी दल के बिना अगली सरकार बनाते हैं तो लगभग दो दर्जन विधायक भाजपा में शामिल हो जाएंगे।

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