भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा खाद्य उत्पादक देश है। यंहा दूध और दालों की उत्पादक सबसे ज्यादा होती है जबकि चावल, गेहूं, गन्ना, मूंगफली, सब्जियां, फल और मछली उत्पादन के मामले में नंबर दो पर है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि आजादी के बाद से खाद्यान्न के उत्पादन में जनसंख्या वृद्धि की तुलना में लगातार बढ़ोतरी वृद्धि हुई है। देश वर्तमान में प्रमुख फसलों के खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर भी है। दुनिया के सबसे बड़े खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम भी चला रहा है, जैसे वर्ष 1975 में शुरू की गई एकीकृत बाल विकास सेवा योजना इस योजना की शुरुआत 0-6 वर्ष की आयु के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं की देखभाल के लिए की गई।
इसके अलावा पोषण अभियान शुरुआत वर्ष 2018 में की गई है इसमें स्टंटिंग, एनीमिया के समय जन्मे बच्चों को सही पोषण के उद्देश्य से शुरू किया गया था, लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली की शुरुआत वर्ष 1997 में गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) रहने वाली आबादी को अत्यधिक रियायती दर पर खाद्यान्न उपलब्ध कराने के उद्देश्य से की गई थी। स्कूलों में बच्चों को भोजन उपलब्ध कराने और कोविड के समय गरीबों की सहायता के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना की शुरुआत हुई। यही नहीं राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, (एनएफएसए) 2013 का अधिनियम कानूनी रूप से 75 प्रतिशत ग्रामीण आबादी और 50 प्रतिशत शहरी आबादी को टीपीडीएस के तहत रियायती खाद्यान्न प्राप्त करने का अधिकार देता है। देश में भूख से लड़ने के लिए गैर-सरकारी संगठन भी विभिन्न तरीकों से समर्थन करते रहे हैं। वर्तमान में हमारा खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम एक जीवन-चक्र दृष्टिकोण के आधार पर काम कर रहा है जिसमें गर्भवती महिलाओं , स्तनपान कराने वालीमहिलाओं , जन्म से शुरू होने वाले बच्चों और जरूरतमंद वयस्कों को शामिल किया जाता है जो भूख से लड़ने के लिए एक अच्छा कदम है। भारत में कृषि उत्पादन में इस आत्मनिर्भरता और बड़े पैमाने पर खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम के साथ, भारत में गंभीर भूख की वर्तमान स्थिति को देखना अप्रत्याशित है, हालांकि इन सब सुधारों के वजदूद देश की एक बड़ी आबादी कुपोषण का शिकार है।
दरअसल,संयुक्त राष्ट्र की ‘द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड 2022 की रिपोर्ट के अनुसार,वर्ष 2019 के कोरोनाकाल के बाद भारत लोगों का भूख से संघर्ष तेजी से बढ़ा है। वर्ष 2021 में दुनिया के 76.8 करोड़ लोग कुपोषण का शिकार पाए गए है। इनमें 22.4 करोड़ यानि 29 फीसदी भारतीय थे। यह दुनियाभर में कुल कुपोषितों की संख्या के एक चौथाई से भी अधिक है। कई अन्य रिपोर्ट ने कुपोषण को लेकर पहले भी दवा किया है। लोकतांत्रिक देश भारत के लिए कुपोषण एक गम्भीर समस्या है। फिर भी इस समस्या पर काम ध्यान दिया जाता है। देश में आज भी सबसे अधिक अविकसित और कमजोर बच्चे महजूद है। एक रिपोर्ट के मुताबिक,भारतमे अविकसित बच्चे की संख्या लगभग 4. 66 करोड़ है, तो वंही कमजोर बच्चे की संख्या लगभग 2. 55 करोड़ है। इस वजह से देश में बीमारियों का भी बोझ बढ़ा है हलाकि, राष्ट्रीय पारिवारिकस्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के आंकड़े बताते है कि भारत में कुपोषण की दर घटी है लेकिन न्यूनतम आमदनी वर्ग वाले परिवारों में आज भी आधे से ज्यादा बच्चे कुपोषण के शिकार है।
भारत सरकार के आकड़े खुद दिखते है, देश में कुपोषण का संकट बढ़ा है। इन आकड़ो के मुताबिक,देश में इस समाया लगभग 33 लाख से अधिक कुपोषित बच्चे है। इसमें से लगभग 17. 7 लाख बच्चे तो गंभीर रूप से कुपोषित है। यह सबसे बड़ी चिंता की बात है। राष्ट्रिय राजधानी दिल्ली में भी लगभग एक लाख से ज्यादा बच्चे कुपोषित है।
क्या है इस रिपोर्ट में?
संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन की तरफ से 6 जुलाई को दि स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन दि वर्ल्ड 2022 रीपरपॉजिंग फूड एंड एग्रीकल्चर पॉलिसीज टू मेक हेल्दी डाइट मोर अफोर्डेबल’ नाम की रिपोर्ट पेश की गई है। इस रिपोर्ट अनुसार,देश में 97 करोड़ से ज्यादा लो पौष्टिक खाना का खर्च उठाने में असमर्थ है। वंही भारत में हेल्दी डाइट पर प्रति व्यक्ति रोजाना अनुमानित 2.97 डॉलर खर्च किया जाता है। क्रय शक्ति समता के संदर्भ में इसका मतलब है कि 4 सदस्यीय परिवार के लिए हर महीने 7,600 रुपये खाने पर खर्च किए जाते हैं। क्रय शक्ति समता अंतरराष्ट्रीय विनिमय का एक सिद्धांत है जिसका अर्थ किन्हीं दो देशों के बीच वस्तु या सेवा की कीमत में मौजूद अंतर से लिया जाता है।
यह रिपोर्ट बताती है कि 70.5 फीसदी भारतीय स्वस्थ आहार लेने में असमर्थ थे, जबकि चीन में 12 फीसदी , ब्राजील में 19 फीसदी और श्रीलंका में 49 फीसदी के लिए यह फीसदी कम था। नेपाल में 84 फीसदी और पाकिस्तान 83.5 फीसदी की स्थिति भारत की तुलना में कमतर थी। फीसदी रिपोर्ट के अनुसार भारत में भूख से जंग के मोर्चे पर धीमी रफ्तार में ही सही, कुछ सफलता जरूर मिली है। लेकिन, दूसरी ओर मोटापे की समस्या बढ़ रही है। 15 से 49 साल की उम्र वाले व्यक्ति 3.4 करोड़ है। ये सब ‘ओवरवेट’ कैटेगरी में आ गए हैं। जबकि, 4 साल पहले यह संख्या लगभग 2.5 करोड़ थी।
खाद्य असुरक्षा में लैंगिक अंतर भी बढ़ा है। 27.6 प्रतिशत पुरुषों की तुलना में दुनिया में 31.9 प्रतिशत महिलाएं मध्यम या गंभीर रूप से खाद्य असुरक्षा के घेरे में हैं। इसी तरह महिलाओं में खून की कमी (एनीमिया) की समस्या बढ़ी है। 2021 में कुल 18.7 करोड़ भारतीय महिलाएं एनिमिक पाई गईं। 2019 में यह संख्या 17.2 करोड़ के करीब थी। यानी 2 साल में एनीमिया से पीड़ित महिलाओं की संख्या डेढ़ करोड़ बढ़ गई है।
इस रिपोर्ट की मानें तो लगभग 80 करोड़ यानी लगभग 60 प्रतिशत भारतीय, सरकार की ओर से दी जाने वाले सब्सिडी वाले राशन पर निर्भर हैं। लाभार्थियों को प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत मुफ्त पांच किलोग्राम अनाज की विशेष महामारी सहायता के अलावा, प्रति व्यक्ति हर महीने सिर्फ 2-3 रुपये प्रति किलो के हिसाब से पांच किलो अनाज दिया जाता है। खाद्य सब्सिडी कार्यक्रम की अक्सर भारी अनाज के रूप में आलोचना की जाती रही है यानी इस योजना में पर्याप्त कैलोरी की आपूर्ति तो की जाती है लेकिन पर्याप्त पोषण का ध्यान नहीं रखा जाता।
गौरतलब है कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स पर भी भारत का स्थान और नीचे गिरा है। 116 देशों में जहां 2020 में भारत 94वें स्थान पर था, वहीं 2021 में वह गिर कर 101वें स्थान पर पहुंच गया है। भारत अब अपने पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल से भी पीछे हो गया है। यह बेहद चिंताजनक है। कोरोना के संकट के दौरान अमीर और अमीर हो गए, वहीं आम भारतीय की औसत संपत्ति 7 फीसदी तक घट गई। कई लोगों के रोज़गार छिन गए तो कईकों के कमाने वाल हाथ चले गए। ऐसे में जाहिर है सरकार की नीतियां और विकास के दावे जमीनी सच्चाई से कोसों दूर नज़र आते हैं।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे से पता चलता है कि केंद्र की भाजपा की सरकार के कार्यकाल में पिछले 5 साल में बच्चों के पोषण के मामले में कोई खास प्रगति नहीं हुई है। लॉकडाउन में यह हालत और ख़राब ही हुई है। हंगर-वॉच के सर्वे भी बताते हैं कि लगभग 60 फीसदी से अधिक लोग अब कम खा रहे हैं। लॉकडाउन में उनकी हालत ख़राब हुई है। इसके बावजूद देश की मौजूदा सरकार मिड-डे मील और आइसीडीएस जैसी योजनाओं की बजट में लगातार अनदेखी कर रही है। जबकि ये योजनाएं देश में कुपोषण की लड़ाई में मदतगार साबित होगी।