मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों का किसान जबरदस्त तरीके से विरोध कर रहे हैं। ये प्रदर्शन सोशल मीडिया पर भी खूब चर्चा में है। इसी बीच कई किसान संगठनों की ओर से कल यानी 8 दिसंबर को भारत बंद की घोषणा की गई है।
भारत बंद को लेकर अब किसान संगठनों के बीच ही फूट पड़ती दिख रही है। आरएसएस से जुड़े भारतीय किसान संघ की ओर से किसानों द्वारा भारत बंद पर किनारा कर लिया गया है। इसका कारण बताते हुए भारतीय किसान संघ की ओर से कहा गया है कि 9 दिसंबर को जब दोनों पक्ष पुनः वार्ता करने के लिए सहमत हुए हैं तो फिर 8 दिसंबर को भारत बंद की घोषणा करना सही नहीं है।
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भारतीय किसान संघ द्वारा अपने बयान में कहा गया है कि अभी तक किसान आंदोलन अनुशासित तरीके से चला है, लेकिन मौजूदा घटनाक्रम इस ओर संकेत कर रहे हैं कि विदेशी ताकतें, राष्ट्रद्रोही तत्व और कुछ राजनीतिक दल इस आंदोलन को अराजकता की ओर ले जानेे का प्रयास केे कर रहे हैं।
भारतीय किसान संघ की ओर से अंदेशा जताते हुए हुए कहा गया कि हमें डर है कि किसानों के इस आंदोलन को उपद्रवी लोग 2017 की मंदसौर वाली घटना में न बदल दें, जहां छह किसानों की गोलियों से मौत हुई थी। जिन लोगों द्वारा किसानों को हिंसक आंदोलनों में शामिल किया वहीं नेता तो विधायक और मंत्री बन गए, परंतु जो जले-मरे किसानों के परिवार, आज भी बर्बादी को झेल रहे हैं। ऐसे आंदोलन से नुकसान तो देश का और किसानों का ही होता है। इसलिए भारतीय किसान संघ ने भारत बंद से अलग रहने का फैसला किया है।
भारतीय किसान संघ तीनों कानूनों की वापसी नहीं, बल्कि संशोधन के समर्थन में है। एमएसपी से नीचे खरीद न हो, व्यापारियों से किसानों को धनराशि की गारंटी मिले, कृषि न्यायालयों की अलग से स्थापना होनी चाहिए।
भारतीय किसान संघ ने कहा कि देश की जनता को यह पता लग चुका है कि पंजाब राज्य सरकार की ओर से पारित वैकल्पिक बिलों में केंद्रीय कानूनों को निरस्त कर पांच जून से पूर्व की स्थिति बहाल करने का प्रावधान किया जा चुका है, इसके बावजूद पंजाब के किसान नेता तीनों बिलों को वापस लिए जाने पर क्यों प्रदर्शन पर बैठे हुए हैं?