रूस-यूक्रेन में भयंकर युद्ध जारी है, लोग अब भी भारी संख्या में यूक्रेन से पलायन कर दूसरे देशों में शरण ले रहे हैं। वॉर के बीच भारतीय अपने पालतू कुत्तें- बिल्लियों के साथ अपने देश लौट रहे थे लेकिन एक भारतीय डॉक्टर द्वारा अपने पालतू तेंदुए और एक ब्लैक पैंथर के साथ यूक्रेन में ही रहने का फैसला लिया गया था ।
युद्ध के चलते गिरिकुमार को काफी नुकसान हुआ है। वो जिस कस्बे में रहते थे, वह युद्ध में तहस नहस हो चुका है। जिस हॉस्पिटल में काम करते थे, वह युद्ध शुरू होते ही बंद कर दिया गया था और कुछ हफ्ते बाद ही हॉस्पिटल भी मलबे का ढेर बन गया। भयंकर बमबारी के बाद भी गिरिकुमार ने यूक्रेन में रहते हुए अपने जगुआर और ब्लैक पैंथर की देखभाल करते रहे। युद्ध के बाद से पाटिल के कस्बे में सुपर मार्किट और इंटरनेट बंद है। इसलिए खाना जुटाना बहुत ही मुश्किल काम है। युद्ध से पहले दोनों जानवरों के खाने और देखभाल पर रोजाना 100 से 150 डॉलर (8-12 हजार रुपए) खर्च हुआ करते थे।
लेकिन युद्ध के बाद चीजें खरीदना मुश्किल होता गया। अब उनकी देखभाल पर रोजाना 300 डॉलर से ज्यादा खर्च हो रहे हैं। दोनों पालतू जानवरों के लिए डॉ. गिरिकुमार पाटिल ने अपना सब कुछ बेच डाला। अपनी जमीन का एक हिस्सा, दो घर, दो कारें, टीवी टेबल और यहां तक कि कैमरा और साइकिल भी उन्होंने बेच दी और अब उनके पास पैसे खत्म हो चुके हैं ऐसे में उन्होंने सैलरी पर एक केयर टेकर को रखा और न चाहते हुए भी अपने दोनों पालतू जानवरों को छोड़कर खुद काम की तलाश में यूक्रेन चले आए।
यह भी पढ़ें : यूक्रेन : तेंदुए और पैंथर के बिना वतन वापसी नहीं चाहते डॉ गिरी कुमार पटेल
उनके केयरटेकर ने उन्हें बताया है कि जगुआर और ब्लैक पैंथर दोनों उनके बिना बहुत उदास हैं और खाना भी ढंग से नहीं खा रहे हैं। उन्हें घर छोड़े 20 से ज्यादा दिन हो चुके हैं।
आंध्र प्रदेश के मूल निवासी डॉक्टर गिरिकुमार पाटिल ने भारत के प्रधान मंत्री मोदी से भी अपील की है कि वो उनके ब्लैक पैंथर और जगुआर को बचा लें।
उनके पास जो जगुआर है वह दुनिया की सबसे दुर्लभ प्रजाति है और दुनिया में ऐसे केवल 21 हैं और कुमार के पास उनमें से एक है। साथ ही एक ब्लैक पैंथर है इस प्रजाति को बाघों और शेरों जैसी बड़ी बिल्लियों के बीच खतरे वाली नस्लों में से एक माना जाता है। कुमार ने अपने पालतू नर जगुआर का नाम ‘यगवार’ रखा हुआ है।