भारत में लिंग के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जा सकता इस कथन को पंजाब हाई कोर्ट द्वारा सत्यापित करता मामला सामने आया है। जिसपर पंजाब हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि यदि किसी दुर्घटना के कारण किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो मृत व्यक्ति की विवाहित बेटी भी बीमा के मुआवजे की मांग कर सकती है।
दरअसल हाल ही में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के सामने एक मामला सामने आया जिसमें लुधियाना के एक व्यक्ति की सड़क दुर्घटना मौत हो गई जिसके बाद उसकी दो विवहित बेटियों ने मुआवजे की मांग करते हुए ‘मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल’ का दरवाजा खटखटाया था। ट्रिब्यूनल ने दोनों बहनों को 25 – 25 हजार रुपये देने का आदेश दिया जिसका दोनों लड़कियों द्वारा विरोध किया गया क्योंकि यह रकम बहुत कम है। जिसके बाद उन्होंने मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील दायर करते हुए न्याय की मांग करी।
मामले की सुनवाई के वक़्त कम्पनी ने दलील दी की इस मामले में विवाहित बेटियां पिता के साथ नहीं रह रही थीं और कोई ऐसा सबूत नहीं है कि विवाहित बेटियां मृतक पर आश्रित थीं।
कोर्ट ने कम्पनी की इस दलील को ख़ारिज किया और लड़कियों के पक्ष में फैसला सुनते हुए कहा कि आश्रित शब्द का अलग-अलग अर्थों में एक अलग अर्थ है। कुछ पैसे के मामले में आश्रित हो सकते हैं और अन्य सेवा के मामले में आश्रित हो सकते हैं। आश्रित में शारीरिक निर्भरता, भावनात्मक निर्भरता, मनोवैज्ञानिक निर्भरता आदि शामिल हैं, जिन्हें पैसे के मामले में कभी भी बराबर नहीं किया जा सकता है।
कर्नाटक मामला
पिछले महीने ऐसा ही एक मामला कर्नाटक हाई कोर्ट के सामने आया था जिसमें सड़क दुर्घटना में मौत का शिकार हुए एक व्यक्ति की 2 बेटियां और पत्नी मुआवजे की मांग कर रही थी लेकिन कम्पनी उनकी मांग को स्वीकार नहीं किया । आखिर में हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुनते हुए कहा था कि ”यह न्यायालय भी विवाहित बेटों और बेटियों में कोई भेदभाव नहीं कर सकता। लिहाजा इस तर्क को स्वीकार नहीं किया जा सकता कि मृतक की विवाहित बेटियां मुआवजे की हकदार नहीं हैं। ”
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