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दिल्ली हाई कोर्ट ने पहली बार 28 हफ्ते का गर्भ गिराने की दी अनुमति

दिल्ली हाई कोर्ट ने पहली बार 28 हफ़्तों के गर्भ को गिराने का फैसला सुनाया है। नियम के अनुसार गर्भधारण के 25 हफ़्तों तक गर्भपात कराया जा सकता था लेकिन इस मामले में 16 वर्षीय रेप पीड़िता की परिस्थितियों को देखते हुए हाई कोर्ट ने ये बड़ा फैसला सुनाया है।

दुष्कर्म का शिकार हुई नाबालिग के परिजनों ने न्यायलय से 28 हफ़्तों का गर्भपात करने की अनुमति मांगी थी। क्योंकि अगर गर्भावस्था 24 सप्ताह से अधिक हो जाती है, तो मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 के प्रावधानों के तहत गर्भावस्था के चिकित्सीय समापन की अनुमति नहीं होती है। लेकिन न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा पीड़ित की मानसिक वेदना को ध्यान में रखकर एम्स के डॉक्टरों की निगरानी में उसकी जान की सुरक्षा का ध्यान रखते हुए रिस्क को कम करके गर्भपात कराने का फैसला दिया है।

इससे पहले भी जुलाई के माह में 25 वर्षीय अविवाहित गर्भवती महिला ने अपना गर्भपात करने की अनुमति मांगी थी। महिला ने बताया था की वह अपने माता -पिता की सबसे बड़ी संतान है और मणिपुर की है। वह दिल्ली लिव इन रेलशनशिप में रहती थी । रेलशनशिप के दौरान अपनी सहमति से संबंध बनाये लेकिन महिला के गर्भवती हो जाने के बाद लड़के ने शादी करने से इंकार कर दिया लेकिन हाई कोर्ट ने इसपर अपना फैसला सुनाते कहा कि अविवाहित महिला का गर्भपात मेडिकल गर्भपात नियम 2003 के तहत नहीं आता है और महिला की मांग को ख़ारिज कर दिया था। जिसके बाद महिला अपनी मांग लेकर सुप्रीम कोर्ट गई जहाँ उसे गर्भपात की अनुमति मिल गई है ।

 

भारत में गर्भपात के लिए क्या है कानून

गर्भपात के लिए एक कानून ‘मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट’ देश में पहले से ही लागू है। जिसे वर्ष 1971 के में लागू किया गया। जिसके अनुसार विवाहित महिलाएं 20 सप्ताह के गर्भ तक का ही गर्भपात करा सकती हैं लेकिन इसकी कोई ठोस वजह होनी चाहिए। इस प्रकार के केस में केवल एक डॉक्टर की सलाह की आवश्यकता जरूरी थी । लेकिन अगर गर्भपात कराने में 20 सप्ताह से देरी हो जाती है तो गर्भपात के लिए महिला को क़ानूनी रूप से मंजूरी प्राप्त करनी होगी। वर्ष 2021 में इस कानून में संसोधन किया गया जिसके तहत विवाहित महिलाओं को 24 सप्ताह तक दो डॉक्टरों की सलाह व जांच के बाद गर्भपात करने की मंजूरी दे दी गई थी । लेकिन यह कानून केवल उन्हीं महिलाओं के लिए है जिनके साथ बलात्कार हुआ हो, या कोई अन्य पारिवारिक समस्या हो तभी वह अपना अनचाहा गर्भ गिरा सकती हैं। यह कानून पहले अविवाहित लड़कियों के लिए नहीं था उनके लिए किसी भी प्रकार से गर्भपात का कानून नहीं बनाया गया था जिसे अब लागू कर दिया गया है। हालांकि इस कानून में संसोधन के बाद भी गर्भपात का अंतिम फैसला डॉक्टरों के हवाले छोड़ दिया गया है।

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