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चुनावी राज्यों में कई विधायकों के टिकट काट सत्ता विरोधी लहर को कम करना चाहती है भाजपा 

कुछ ही महीनों के भीतर पांच राज्यों  में  विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में अब  जैसे – जैसे आगामी  विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, वैसे – वैसे  राज्यों के साथ – साथ देश की  राजनीति भी गरमाने लगी है। भले ही इन राज्यों के विधानसभा चुनाव होने में अभी करीब चार – पांच महीनों का समय बचा हो , लेकिन राजनीतिक दलों ने अपनी सक्रियता से  सियासी  सरगर्मी  को बढ़ा दिया है। इस सरगर्मी के बीच पांच राज्यों के चुनावी समर में कूदने जा रही भारतीय जनता पार्टी  तैयारी में जुट गई है। इसके लिए हाल ही में गुजरात और उत्तराखण्ड में मुख्यमंत्रियों बदलने के बाद अब उन राज्यों में अपने विधायकों के टिकट काटने की योजना बना रही है, जहां कुछ ही महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं।

 

 


मिशन -2022 की तैयारियों में जुटी राजनीतिक पार्टियां

 

 

दरअसल, ऐसा करके पार्टी सत्ता विरोधी लहर यानी एंटी इनकंबेंसी को कम करना चाहती है। पिछले विधानसभा चुनावों में भी पार्टी ने अपने 15 से 20 प्रतिशत विधायकों का टिकट काटा था। राजनीतिक पंडित का मानना है कि इस बार यह आंकड़ा काफी ज्यादा हो सकता है। इसका मुख्य कारण है सरकार के प्रति जनता में आक्रोश। उल्लेखनीय है कि अगले साल 2022 में पंजाब, उत्तर प्रदेश ,उत्तराखण्ड , मणिपुर , गोवा ,गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। इस दौरान भाजपा ने राज्यों में जमीनी स्तर पर सर्वे कराए हैं ताकि जनता का मूड भांप सके। विधायकों से भी कहा गया है कि वे बीते पांच सालों में किए अपने कामों का रिपोर्ट कार्ड सौंपे, जिसे पार्टी की अपनी तैयार की गई रिपोर्ट से मिलाकर भी देखा जाएगा। जिन विधायकों का प्रदर्शन अच्छा नहीं होगा, उन्हें इस बार टिकट नहीं दिया जाएगा।

विधायकों का मूल्यांकन कुछ तय मानकों पर किया जाएगा, जैसें उन्होंने लोकल डेवलेपमेंट फंड का कितना इस्तेमाल किया, गरीबों के उत्थान के लिए कितनी परियोजनाएं चलाईं और महामारी के दौरान पार्टी की ओर से शरू की गई योजना ‘सेवा ही संगठन’ में कितना सहयोग किया। पार्टी ने सभी चुनावी क्षेत्रों में सर्वेक्षण कराए हैं, जहां लोगों से सरकार की परफॉर्मेंस को लेकर फीडबैक लिया गया है।

 

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पार्टी सूत्रों के मुताबिक कोरोना महामारी एक बड़ी चुनौती लेकरआई । सरकार ने स्वास्थ्य सेवाएं सुधारने, टीकाकरण और दवाओं की आपूर्ति बढ़ाने की कोशिश की लेकिन पार्टी ने कुछ राहत एवं बचाव कार्य भी किए। पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने सभी राज्य इकाइयों से कहा था कि जरूरतमंदों को खाना खिलाने के लिए अभियान शुरू करें, नौकरी खोने वालों की मदद करें और अपने बूथ में 100 फीसदी टीकाकरण सुनिश्चित करें। विधायकों द्वारा सेवा ही संगठन कैंपेन के तहत किए कामों की भी गिनती होगी।

फिलहाल बीजेपी के लिए सत्ता विरोधी लहर को काटना ही सबसे बड़ी चुनौतीबनी हुई है। पार्टी ने इसी वजह सेगुजरात में  विजय रुपाणी को हटाकर भूपेंद्र पटेल को नया मुख्यमंत्री बनाया। इसके अलावा पूरे नए मंत्रिमंडल ने भी शपथ ली ताकि 2022 के अंत में होने वाले चुनावों से पहले पार्टी कैडर को पुनर्जीवित किया जा सके।

राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि अलग-अलग कारणों से मौजूदा विधायकों की टिकट काटना पार्टी के लिए कोई नई बात नहीं है। इससे पहले पार्टी  राजस्थान में ऐसा कर चुकी है। दरअसल , वर्ष  2018 में पार्टी ने राजस्थान में 43 विधायकों के टिकट काटे थे, जिनमें 4 मंत्री थे। झारखंड में भी पार्टी ने दर्जनभर से ज्यादा विधायकों के टिकट काटे ताकि युवाओं के साथ ही महिलाओं और एससी/एसटी समुदाय के लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले चेहरों को शामिल किया जा सके।यही नहीं टिकट बंटवारे के लिए परफॉर्मेंस ही एकमात्र फैक्टर नहीं है। पार्टी को ऐसे चेहरे भी ढूंढने होंगे जो स्थानीय जाति-समुदाय में पकड़ रखते हों और चुनाव में अच्छे परिणाम लाने में सक्षम हों।

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