[gtranslate]
Country

भारत के लिए कूटनीतिक चुनौती बना अफगानिस्तान 

पडोसी देश अफगानिस्तान (afghanistan) से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद से ही तालिबान ने यहां के बड़े हिस्से पर कब्जे का दावा किया है। देश के कई हिस्सों में तालिबान की हिंसा जारी है। जिसमें पाकिस्तानी आतंकियों का भी साथ मिल रहा है। यह स्थिति भारत के लिए भी अच्छी नहीं कही जाएगी। हिंसक हालत ने  भारत के सामने भी एक बड़ी कूटनीतिक चुनौती पैदा कर दी है।

 

अफगानिस्तान के हालात भारत के लिए भी कूटनीतिक चुनौती बन गए हैं। लिहाजा इस दिशा में सोच – समझकर कदम उठाना होगा 

 

अफगानिस्तान 

अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी और पीएम मोदी

मौजूदा अफगानिस्तान सरकार और भारत के बीच संबंध बेहद मजबूत और मधुर हैं। अफगानिस्तान के कई शीर्ष नेता समय-समय पर भारत के दौरे पर आते रहे हैं। इससे दोनों देशों के बीच संबंधों में गर्मजोशी का पता चलता है। इतना ही नहीं, भारत-अफगानिस्तान में अरबों डॉलर लागत वाले कई मेगा प्रोजेक्ट्स पूरे कर चुका है और कुछ पर काम चल रहा है। दूसरी ओर  अफगानिस्तान सरकार पाकिस्तान पर अपने यहां आतंकवाद को प्रायोजित करने का आरोपलगाती रही  है। अलबत्ता पाकिस्तान और तालिबान के संबंध काफी मधुर हैं। अमेरिकी सैनिकों की वापसी के समय अफगानिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता का दौर शुरू हो गया है। अफगानिस्तान में तालिबान का प्रभाव बढ़ रहा है। तालिबान के बढ़ते प्रभुत्व के कारण पाक अंदर से गदगद है, लेकिन भारत की चिंताएं बढ़ गई हैं।

 

1980 के दशक में दोनों देशों के संबंधों को एक नई पहचान मिली

 

अफगानिस्तान दक्षिण एशिया में भारत का अहम सहयोगी और मित्र है। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंध पारंपरिक रूप से मजबूत और दोस्ताना रहे हैं। दरअसल, 1980 के दशक में दोनों देशों के संबंधों को एक नई पहचान मिली, लेकिन 1990 के अफगान-गृहयुद्ध और वहां तालिबान के सत्ता में आने के बाद से भारत और अफगानिस्तान के संबंध कमजोर होते चले गए। दोनों देशों के संबंधों को एक बार फिर तब मजबूती मिली, जब 2001 में तालिबान सत्ता से बाहर हो गया। इसके बाद अफगानिस्तान के लिए भारत मानवीय और पुनर्निर्माण सहायता का सबसे बड़ा क्षेत्रीय प्रदाता बन गया है।

 

अफगानिस्तान में सबसे अधिक लोकप्रिय देश भारत

 

मौजूदा समय में अफगानिस्तान में सबसे अधिक लोकप्रिय देश भारत है। इसकी बड़ी वजह है कि अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में भारत का बड़ा योगदान है। अफगानिस्तान की विभिन्न निर्माण परियोजनाओं में भारत ने निवेश कर रखा है। भारत ने अब तक अफगानिस्तान को लगभग तीन अरब डॉलर की सहायता दी है। इसके तहत अफगानिस्तान में संसद भवन, सड़कों और बांध आदि का निर्माण हुआ है। कई मानवीय व विकासशील परियोजनाओं पर अभी भी काम कर रहा है। दोनों देश इस बात पर राजी हैं कि अफगानिस्तान में शांति और स्थायित्व को प्रोत्साहित करने और हिंसक घटनाओं पर तत्काल लगाम लगाने के लिए ठोस और सार्थक कदम उठाए जाने चाहिए।

 

अफगानिस्तान 

 

अफगानिस्तान के विकास के लिए भारत ने उठाए कदम

 

दरअसल, दोनों देश 116 सामुदायिक विकास परियोजनाओं पर काम करने के लिए राजी हुए हैं, जिन्हें अफगानिस्तान के 31 प्रांतों में क्रियान्वित किया जाएगा। इनमें शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, सिंचाई, पेयजल, नवीकरणीय ऊर्जा, खेल अवसंरचना और प्रशासनिक अवसंरचना के क्षेत्र शामिल हैं। इसके तहत काबुल के लिए शहतूत बांध और पेयजल परियोजना पर काम शुरू किया जाएगा। इसके अलावा अफगान शरणार्थियों के पुनर्वास को प्रोत्साहित करने के लिए नानगरहर प्रांत में कम लागत पर घरों का निर्माण किया जाना प्रस्तावित है। बामयान प्रांत में बंद-ए-अमीर तक सड़क संपर्क के निर्माण में भारत मदद कर रहा है। चारिकार शहर के लिये जलापूर्ति नेटवर्क और मजार-ए-शरीफ में पॉलीटेक्नीक के निर्माण में भी भारत सहयोग दे रहा है। कंधार में अफगान राष्ट्रीय कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए भी भारत ने सहयोग का भरोसा दिलाया है।

 

भारत की एक बड़ी कूटनीतिक चुनौती

 

विकास के मोर्चे पर भारत अफगानिस्तान की लगातार मदद कर रहा है, लेकिन सुरक्षा के मोर्चे पर भारत ने अभी तक कोई कदम नहीं उठाया है। अमेरिकी सेना का अफगानिस्तान में रहना वहां की सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा है। अमेरिकी सेना यदि अफगानिस्तान से चली जाती है तो अफगान में तालिबानियों का प्रभुत्व कायम हो जाने की आशंका है। ऐसे में भारत को अपने द्वारा वित्तपोषित विकास परियोजनाओं की भी चिंता होना स्वाभाविक है। अगर अफगानिस्तान की सेना कमजोर पड़ती है और तालिबान प्रभावी हो जाता है तो अफगानिस्तान में भारत की सारी मेहनत बेकार हो सकती है। इन हालात से निपटना भारत की एक बड़ी कूटनीतिक चुनौती है।

 


पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और सी जिनपिंग

 

भारत की कूटनीतिक पहल से चिंतित हुए पाक -चीन

 

क्षेत्रीय सहयोग के लिए अफगानिस्तान में शांति कायम होना बेहद जरूरी है। एक पड़ोसी के रूप में भारत को अफगानिस्तान का साथ मिलता रहे, इसके लिए अफगानिस्तान में विकास कार्यों के अलावा भारत को अफगानिस्तान सहित अन्य पड़ोसी देशों के साथ भी क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने की जरूरत है। इसके लिए भारत ने अपने कूटनीतिक प्रयास को तेज किया है। भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर की ईरान और रूस यात्रा इस बात की ओर संकेत करती है कि भारत ने इस दिशा में काम शुरू कर दिया है। अफगानिस्तान को लेकर भारत को तुर्की के साथ भी संवाद तेज करना चाहिए।  अमेरिकी सेना की वापसी के बाद अफगानिस्तान में तुर्की की बड़ी भूमिका हो।

भारत चाहे तो तालिबान के साथ बातचीत की प्रक्रिया को आगे भी बढ़ा सकता है। नवंबर, 2018 में भारत की तरफ से दो रिटायर्ड राजनयिकों का तालिबान से बातचीत के लिए मास्को जाना इसी का एक पहलू है। इससे अफगानिस्तान की स्थाई सरकार में तालिबान की भूमिका तय की जा सकती है। लेकिन इस मुद्दे पर भारत को कोई भी कदम बेहद सोच-समझ कर उठाना होगा।

अफगानिस्तान में भारत की भूमिका को सीमित करने की नीति पर पाकिस्तान लंबे समय से काम कर रहा है। भारत पाकिस्तान को अलग-थलग करने के लिए सार्क के बजाय अन्य क्षेत्रीय समूहों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने के लिये भारत को इसी तरह कूटनीतिक स्तर पर अपनी सक्रियता बनाए रखनी होगी।

जिस प्रकार अफगानिस्तान में पाकिस्तान का स्थायी एजेंडा वहां अपनी सामरिक पहुंच को बनाना है, ठीक उसी प्रकार भारत का स्थाई लक्ष्य भी साफ है। भारत का प्रयास रहना चाहिए कि अफगानिस्तान के विकास में लगे करोड़ों डॉलर व्यर्थ न जाने पाएं। इसके अलावा काबुल में मित्र सरकार बनी रहे। ईरान-अफगान सीमा तक निर्बाध पहुंच बरकरार रहे। अफगानिस्तान में सभी वाणिज्य दूतावास बराबर काम करते रहें। इस एजेंडे की सुरक्षा के लिए भारत को अपनी कूटनीति में कुछ बदलाव करने भी पड़ें तो उसे पीछे नहीं हटना चाहिए।

 


13 -14 जुलाई को शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक

 

इस बीच 13 -14 जुलाई को शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक में भारत ने बिना नाम लिए पाकिस्तान और चीन पर निशाना साधा। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि शंघाई सहयोग संगठन का मुख्य मकसद आतंकवाद और कट्टरपंथ से मुकाबला करना है। ऐसे में आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने की जरूरत है। आतंकवाद, युद्ध और नशीले पदार्थों से मुक्त अफगानिस्तान के लिए समर्थन का वादा करते हुए, एससीओ में विदेश मंत्रियों ने बुधवार को एक संयुक्त बयान में देश में चल रही हिंसा और आतंकी हमलों की निंदा की।

 


विदेश मंत्री एस जयशंकर

अफगानिस्तान के लिए भारत ने पेश किया रोडमैप

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि आतंकवाद और उग्रवाद का मुकाबला करना शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का प्रमुख उद्देश्य है और इसलिए आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकना चाहिए। वहीं अफगानिस्तान के मुद्दे पर एस जयशंकर ने कहा कि अफगानिस्तान का भविष्य उसका अतीत नहीं हो सकता। भारत ने संघर्षग्रस्त देश के लिए तीन सूत्री रोडमैप पेश किया, जिसमें हिंसा और आतंकवादी हमलों की समाप्ति, राजनीतिक बातचीत के माध्यम से संघर्ष का समाधान और पड़ोसी देशों को सुनिश्चित करने के लिए कदम शामिल है।

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने देश के बड़े हिस्से पर तालिबान लड़ाकों के नियंत्रण पर बढ़ती वैश्विक चिंताओं के बीच दुशांबे में अफगानिस्तान पर एससीओ विदेश मंत्रियों के संपर्क समूह की बैठक में रोडमैप पेश किया। जयशंकर ने कहा कि विश्व के दूसरे देशों के साथ ही अफगान लोग भी एक स्वतंत्र, तटस्थ, एकीकृत, शांतिपूर्ण, लोकतांत्रिक और समृद्ध राष्ट्र चाहते हैं। अफगानिस्तान का भविष्य उसका अतीत नहीं हो सकता। एक पूरी नई पीढ़ी की अलग-अलग उम्मीदें होती हैं। हमें उन्हें निराश नहीं करना चाहिए।

यह भी पढ़ें :  गृहयुद्ध की ओर बढ़ता अफगानिस्तान , तालिबान बना बड़ा खतरा 

You may also like

MERA DDDD DDD DD