पिछले कुछ सालों से चरमपंथी संगठन तालिबान अफगानिस्तान मेंएक बहुत बड़ा खतरा बनकर उभरा है। तालिबान से न सिर्फ अफगानिस्तान बल्कि पकिस्तान को भी खतरा है जहां उत्तर -पूर्व के इलाकों में तालिबान का दबदबा है। तालिबान लगातार अफगानिस्तान पर कहर बरपा रहा है, लेकिन इसके बावजूद वहां अफगानिस्तान से अमेरिका के साथ-साथ नाटो देशों की सेनाओं की वापसी का सिलसिला जारी है। अफगान से ज्यादातर विदेशी सेनाएं वापस जा चुकी हैं और जो बचे हैं उनके इस महीने के आखिर तक वापस हो जाने की संभावना है। अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की वापसी के ऐलान के बाद से तालिबान और ज्यादा हावी होने लगा है। उसने देश के 100 से ज्यादा जिलों पर अपना कब्जा कर लिया है। तालिबान के आतंक का आलम यह है कि करीब 1500 से सैनिक अपना देश छोड़कर पडोसी देश ताजिकिस्तान की शरण में चले गए हैं।
ऐसे में अफगानी सैनिकों की मदद करने के बजाय अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ऐलान किया है कि अमेरिका अफगानिस्तान में अपना सैन्य अभियान 31 अगस्त तक बंद कर देगा। इससे पहले अफगानिस्तान को छोड़कर जाने की समय सीमा 11 सितंबर थी। अब बाइडेन तय समय सीमा से पहले अमेरिकी सैनिकों को वापस बुला रहे हैं। उन्होंने कहा कि अब और अमेरिकी सैनिकों की जान नहीं जाएगी। इस दौरान दुनिया के सबसे महाशक्तिशाली देश के राष्ट्रपति ने यह भी माना कि अमेरिका को पिछले 20 साल तक चली इस जंग में ऐसी सफलता नहीं मिली जिसको लेकर जश्न मनाया जा सके।
तालिबान भरोसा करने लायक नहीं: बाइडन
बाइडन ने यह भी माना कि तालिबान भरोसा करने लायक नहीं है और अमेरिका के जाने के बाद अफगान सरकार पूरे देश पर नियंत्रण कर सकेगी यह जरूरी नहीं है। उन्होंने तालिबान और अफगान सरकार से अपील की कि वे एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर करें। ‘हम अफगानिस्तान का निर्माण करने के लिए वहां नहीं गए थे। अफगान नेताओं को साथ आकर भविष्य का निर्माण करना होगा।’ बाइडन ने कहा कि यह एक ऐसी जंग है जिसे जीता नहीं जा सकता है और इसका कोई सैन्य हल नहीं है।
अमेरिकी राष्ट्रपति ने अमेरिकी सैन्य अभियान को अभी और जारी रखने की मांग पर कहा कि अभी कितने और अमेरिकी बच्चों की जान को आप खतरे में डालना चाहते हैं? मैं अमेरिका की एक और पीढ़ी को अफगानिस्तान में जंग के लिए नहीं भेजूंगा। वह भी तब जब इसका कोई तार्किक परिणाम नहीं आ रहा है। इस बीच अफगानिस्तान से लगभग 90 फीसदी अमेरिकी सैनिक वापस लौट गए हैं। अफगान सरकार को भरोसा था कि अभी कुछ अमेरिकी सैनिक वहां रुकेंगे लेकिन अब ऐसा होता नहीं दिख रहा है।
छोड़कर भाग जाने पर शर्मिंदगी झेल रहा अमेरिका
अफगानिस्तान में अपने किले बगराम एयरबेस पर करीब 20 साल तक राज करने के बाद अमेरिकी सैनिक रात के अंधेरे में उसे वीरान छोड़कर वापस चले गए। आलम यह रहा कि उन्होंने अफगान सुरक्षा बलों को इसके बारे में नहीं बताया जिसकी वजह से स्थानीय लोगों ने उसे लूट लिया। अब अमेरिका को खुद पर संदेह, शर्मिंदगी का सामना करना पड़ रहा है। यही नहीं उसे अब डर सता रहा है कि अफगानिस्तान एक बार फिर से गृहयुद्ध की ओर बढ़ रहा है। तालिबान के सामने अफगान सुरक्षा बलों के बिना लड़े ही घुटने टेक देने की तस्वीरें और बगराम एयरपोर्ट पर अव्यस्था जैसे हालात को देखकर अमेरिकी सांसद सुरक्षा विश्लेषक टेंशन में आ गए हैं। उन्हें अब अफगानिस्तान में गृहयुद्ध और आतंकवाद की वापसी के आसार दिखाई दे रहे हैं।
उधर दशकों से जंग का सामना कर रही अफगान जनता ने खुद को गृहयुद्ध की वापसी के लिए तैयार कर लिया है। रिपब्लिकन पार्टी के सांसद माइकल मैककौल ने खुलासा किया कि अफगान राष्ट्रपति अशरफ घनी की टीम ने उन्हें चेतावनी दी है कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी को ‘जिहाद के साल’ के रूप में याद किया जाएगा। उन्होंने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन को अफगानिस्तान में लोगों की हत्या , महिलाओं के दमन और मानवीय संकट की जिम्मेदारी लेनी होगी।
यह भी पढ़ें : ‘तालिबान रिट्रनर्स’ की आशंका से सहमा अफगानिस्तान
गौरतलब है कि अमेरिका पर 11 सितंबर के हमलों के बाद 2001 में ब्रिटिश सेना को पहली बार अफगानिस्तान में तैनात किया गया था और उन्होंने 2014 तक युद्ध अभियानों में एक प्रमुख भूमिका निभाई। देश में कुल 457 ब्रिटिश सैनिक मारे गए हैं। ब्रिटेन जो कि नाटो देशों के समूह का एक सदस्य है, उसने अप्रैल के महीने में कहा था कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के फैसले के अनुसार अमेरिकी सैनिकों के साथ ही ब्रिटिश सैनिक भी पीछे हटने की प्रक्रिया शुरू कर देंगे। विदेशी सेना की वापसी के ऐलान के साथ ही अफगानिस्तान में हिंसा भड़कनी शुरू हो गई थी, तालिबान लगातार वहां वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश कर रहा है।
अमेरिका ने पिछले हफ्ते अपने मुख्य सैन्य बेस बगराम हवाई अड्डे को खाली कर दिया था। ये बेस अफगान अभियानों के दौरान अमेरिकी सेना के लिए लंबे समय तक संचालन का मैदान था, जिसने अमेरिका के सबसे लंबे युद्ध को प्रभावी ढंग से समाप्त किया। पेंटागन के मुताबिक अब तक 90 फीसद अमेरिकी सेना वापस अपने देश पहुंच चुकी है।