[gtranslate]
world

खतरे की जद में दुनिया

आज पूरे विश्व की नजर रूस-यूक्रेन युद्ध पर टिकी हुई है। इस युद्ध ने जहां एक जीते-जागते संपन्न देश यूक्रेन को मलबे के ढेर में तब्दील कर दिया तो वहीं रूस भी दुनिया से अलग-थलग पड़ गया है। इस युद्ध ने जहां वैश्विक अर्थव्यवस्था को हिला कर रख दिया है तो वहीं पर्यावरण पर भी आने वाले समय में इसका घातक प्रभाव पड़ने वाला है। इस युद्ध ने भले ही पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा हो लेकिन वर्तमान में विश्व के समक्ष जलवायु परिवर्तन के साथ ही ऐसी अनेक चुनौतियां पैदा हो गई हैं जो आने वाले समय में जीवधारियों को बुरी तरह प्रभावित करने वाला है। अंतरराष्ट्रीय स्तर की अनेक संस्थाओं की तमाम शोध रिपोर्ट बताती हैं कि आने वाले समय में दुनिया काफी संकट के दौर से गुजरने वाली है

 

संयुक्त राष्ट्र संघ की पर्यावरण पर आधारित एक रिपोर्ट के अनुसार प्रदूषण से एक साल के भीतर कम से कम 90 लाख असमय मौत हुई हैं। रिपोर्ट के अनुसार कीटनाशकों, प्लास्टिक और इलेक्ट्रॉनिक कचरे से पैदा होने वाले प्रदूषण का व्यापक असर अकाल मृत्यु के रूप में सामने आ रहा है। इस प्रदूषण का सबसे ज्यादा असर गर्भाशय में पल रहे भू्रण और छोटे बच्चों पर भी पड़ रहा है वे विकलांगता व अकाल मृत्यु के शिकार हो रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण और मानवाधिकर मामलों के विशेष दूत डेविड बायड की रिपोर्ट के अनुसार कई प्रकार के हानिकारक रसायनों पर प्रतिबंध के बावजूद वर्ष 2000 से 2007 के बीच इन रसायनों का उत्पादन दोगुना बढ़ गया। वर्ष 2030 तक यह दुगना हो जाएगा। पृथ्वी में तेजी से इस विष को फैलाने के पीछे मुख्य अपराधी ‘व्यवसाय’ है। बायड का यह भी कहना है कि प्रदूषित जगहों में रहने वाले लोग खुद को शोषित व कलंकित मानते हैं। यह उनके स्वच्छ व स्वस्थ रहने के अधिकार को छीनता है जो मानवाधिकरों का सबसे बड़ा उल्लघंन है। जर्नल ऑफ क्लाइमेट चेंज एंड हेल्थ पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार हीट डोम और जलवायु परिवर्तन का सीधे असर मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। मौसम में आया परिवर्तन लोगों की चिंता के स्तर पर बढ़ा देता है। वहीं यूसीएल और यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के शोधकर्ताओं ने पाया कि ग्लोबल वार्मिंग से मृत्यु दर में बढ़ोत्तरी हो जाएगी।

एनवायरमेंटल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित इस शोध रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़े तापमान से सीधे तौर पर जुड़ी ये मौतें तापमान संबंधी मृत्यु दर कहलाती हैं। शोध लेखिका डॉ ़ कैटी हुआंग के अनुसार मौजूदा वार्मिंग स्तर में मृत्यु दर में वृद्धि मुख्य रूप से लू के दौरान देखी गई हैं लेकिन गर्मी बढ़ने व लू के दौरान इसमें बढ़ोत्तरी होगी। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार भारत में पीएम 2.5 प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों में 2.5 गुणा वृद्धि हुई है। हाल ही में केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव ने यह रिपोर्ट जारी की। जिसमें कहा गया है कि 2019 में वायु प्रदूषण से हर 4 में से 1 मौत भारत में हुई है। दुनिया में प्रदूषण के कारण 66.7 लाख लोग मरे। भारत में 16.7 लाख मौतें हुई। यूनियन फॉर इंटरनेशनल कैंसर कंट्रोल (यूआईसीसी) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार कैंसर से 70 प्रतिशत मौतें कम व मध्यम आय वाले देशों में होती हैं। दुनिया भर में होने वाली मौतों का दूसरा सबसे बड़ा कारण कैंसर है। यूआईसीसी की विश्व कैंसर दिवस पर जारी रिपोर्ट के अनुसार विश्व में 5 में से 1 पुरुष और 6 में से 1 महिला को कैंसर की शिकायत होती है। रिपोर्ट के अनुसार 8 में से 1 पुरुष व 11 में से 1 महिला की मौत कैंसर के कारण होती है।

इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में लगभग 50 प्रतिशत मानव आबादी उन इलाकों में रहती है जो बाढ़, लू और चक्रवात जैसे जोखिम की चपेट में हैं। रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक तापमान में 1 .5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने से गंभीर क्षति हो सकती है और तटीय शहर जलमग्न हो जाएंगे साथ ही समुद्र के 0.8 डिग्री गर्म हो जाने से चक्रवातों की आवृत्ति बढ़ जाएगी वे उग्र होकर बार-बार आएंगें। जानलेवा गर्मी व कड़ाके की ठंड पड़ेगी। ऑस्ट्रेलिया के उत्तर-पूर्वी हिस्से में इन दिनों भीषण बाढ़ की वजह से तबाही मची है। वहां के प्रधानमंत्री इसकी वजह जलवायु परिवर्तन को मान रहे हैं। सिमोन फ्रेसर यूनिवर्सिटी की एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार मानव जनित जलवायु परिवर्तन मौसम संबंधी घटनाओं के अनुमानों में तेजी से बदलाव ला रहा है। पिछले 20 वर्षों में आपदाओं में अचानक वृद्धि होने से काफी व्यक्तिगत और आर्थिक नुकसान हुए हैं। नेचर कम्युनिकेशंस नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार मानव निर्मित जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान के परिणाम स्वरूप एलर्जी के मौसम लंबे और अधिक तीव्र होने की संभावना है। तापमान और कार्बन डाइआक्साइड का स्तर बढ़ने से पराग कणों के उत्सर्जन की मात्रा भी हर साल 200 प्रतिशत बढ़ सकती है। रिपोर्ट कहती है कि पराग से प्रेरित श्वसन एलर्जी जलवायु परिवर्तन के साथ खराब हो रही है। इसकी वजह पराग पैदा करने वाली घास व खरपतवार का जलवायु परिवर्तन से प्रभावित होना है।

एजीयू जर्नल जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2080 तक दुनियाभर के सभी समुद्रों में 70 प्रतिशत ऑक्सीजन कम हो जाएगी। समुद्रों के बीच वाले इलाके में लगातार ऑक्सीजन कम हो रही हैं यह ऑक्सीजन अप्राकृतिक दर से कम हो रही है। अगर यह जारी रहा तो जमीन, पानी व वायुमंडल पर बुरा असर पड़ेगा। इससे मछलियों की प्रजातियां सर्वाधिक प्रभावित होगीं। व्यावसायिक मछलियों के खत्म होने से दुनियाभर की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होगी। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में वन्यजीवों व वनस्पतियों की 8400 प्रजातियां खतरे में हैं। आने वाले समय में 30 हजार प्रजातियों पर और खतरा पैदा होगा। 10 लाख से अधिक प्रजातियां विलुप्त के कगार में होंगे। ओशनोग्राफिक इंस्टीट्यूशन के शोधकर्ताओं का कहना है कि शिपिंग और निर्माण जैसी गतिविधिय से समुद्र में ध्वनि प्रदूषण बढ़ रहा है। जिससे जलीय जीवों के सुनने की क्षमता प्रभावित हो रही है। समुद्र में बढ़ते इंसानी दखल से समुद्री जीवों के जीवन पर व्यापक असर पड़ा है। टै्रफिक इंडिया की एक सर्वे के अनुसार दुनिया में शार्क व रे मछलियों की आबादी में 71 प्रतिशत कमी आई है। रिपोर्ट कहती है कि दुनिया की सबसे बड़ी मछलियों में शुमार शार्क, मंटा रे और डेविड रे आदि की आबादी वर्ष 1970 से लगातार घटती जा रही है। इसकी मुख्य वजह इनका अंधाधुंध शिकार रहा है। हाल में आई अंतराष्ट्रीय विशेषज्ञों की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की तमाम तटरेखाओं में से केवल 16 प्रतिशत ही अच्छी स्थिति में हैं। कई तटीय रेखाएं इतने खराब हो चुके हैं कि उन्हें मूल स्थिति में नहीं लाया जा सकता। रिपोर्ट कहती है कि मानवता दुनिया के लगभग आधे तटीय क्षेत्रों पर भारी दबाव डाल रही है। समुद्री प्रजातियां, जैव विविधता और पारिस्थितिकी प्रणालियों पर महासागरों में प्लास्टिक प्रदूषण नामक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार 11 प्रतिशत समुद्री जीवों के शरीर में प्लास्टिक कचरा पाया गया। इसने समुद्री जीवों के स्वास्थ्य पर बुरा असर डाला है। वैज्ञानिक लंबे समय से समुद्र में बढ़ते प्लास्टिक कचरे को लेकर चेतावनी देते रहे हैं।

इन सबके बीच दुनिया तेजी से भुखमरी की तरफ बढ़ रही है। जिसने दुनिया भर में कुपोषितों की संख्या में बढ़ोत्तरी कर दी है। विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार विश्व में अभी 85 करोड़ लोग कुपोषित हैं। यह संख्या वर्ष 2023 तक 1 .3 करोड़ होने का अनुमान है। एफ .ए .ओ .के अनुसार रूस व यूक्रेन के बीच युद्ध के चलते हालत और खराब होंगे। इससे वैश्विक स्तर पर खाद्यान्नों की आपूर्ति लड़खड़ाएगी तो खाद्य कीमतों में भी 22 प्रतिशत तक बढ़ोत्तरी होगी, जिससे गरीब देशों के लोगों के लिए खाद्यान्न खरीदना आसान नहीं होगा। वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा वर्ष 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व में 14 .9 करोड़ बच्चों की लंबाई कुपोषण के कारण उम्र से कम थी। 4 .5 करोड़ बच्चे ऐसे हैं जो अपनी लंबाई के अनुसार पतले हैं। यूक्रेन के साथ ही यमन, सीरिया, सोमालिया, दक्षिणी सूडान और अफगानिस्तान भयावह खाद्यान्न संकट से जूझ रहे हैं। पश्चिमी देश इस समय विकराल सूखे की स्थिति का सामना कर रहे हैं। नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2000 से 2021 की अवधि पिछले बारह सौ सालों में सबसे शुष्क अवधि रही है। ऐसे संकेत हैं कि सूखे की यह चरम स्थिति 2022 तक जारी रहेगी। यही नहीं संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की मानव सुरक्षा रिपोर्ट कहती है कि दुनिया के 86 प्रतिशत लोगों में असुरक्षा की भावना पैदा हो रही है। विकास व प्रगति लोगों की सुरक्षा की भावना को बढ़ाने में सफल नहीं हो पाई है। भले ही लोग लंबा व स्वस्थ जीवन जी रहे हों लेकिन कोविड महामारी, डिजिटल प्रौद्योगिकी व जलवायु परिवर्तन के खतरे 7 में से 6 लोगों को असुरक्षित बना रहे हैं। लेकिन यह तमाम मुद्दों पर न तो मीडिया न ही सरकार गंभीर दिखाई देती है।

You may also like

MERA DDDD DDD DD