दिनेश पंत
आज विश्व के समक्ष एक बड़ा सवाल यह भी उठ खड़ा हुआ है कि धरती व पर्यावरण को रसायनों से कैसे मुक्त किया जाए? ऐसे उत्पादों को कैसे बढ़ाया जाए जो ज्यादा समय चले। अपशिष्ट पदार्थों की रोकथाम कैसे हो? ऐसी विधियों का निर्माण कैसे हो जिससे मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर प्रभाव न पड़े?
हरित ऊर्जा, हरित विज्ञान, हरित प्रौद्योगिकी, हरित अर्थव्यवस्था, हरित मीडिया, हरित पाठ्यक्रम अब महज शब्द भर नहीं रहे। इसी के हिसाब से दुनिया को अब अपनी नीतियां बनाना जरूरी हो गया है। आज जब पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन की मार के साथ ही ऊर्जा संबंधी कमी को झेल रही है। ऐसे में दुनिया के कई देशों ने हरित विज्ञान एवं हरित प्रौद्योगिकी की तरफ कदम बढ़ाने शुरू कर दिए हैं, विशेषकर हरित ऊर्जा क्षेत्र की तरफ। इसका एक बड़ा कारण ऊर्जा स्रोतों के सिमटने और दूसरा कार्बन उत्सर्जन को कम करना भी रहा है। धीरे -धीरे ही सही भारत ने भी अब हरित प्रौद्योगिकी की तरफ बढ़ना शुरू कर दिया है।
पिछले दिनों गुजरात के मेहसाणा जिले के मोढेरा गांव को चौबीस घंटे सौर ऊर्जा से संचालित होने वाले गांव में तब्दील करना इसकी ही एक कड़ी मानी जा रही है। इस गांव के आवासीय व सरकारी छतों पर 1300 से अधिक सौर प्रणालियां लगाई गई हैं। इसके लोकार्पण अवसर पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने माना कि 21वीं सदी में अगर भारत को आत्मनिर्भर बनाना है तो यह सुनिश्चित करना होगा कि नवीकरणीय ऊर्जा से हमारी ऊर्जा की जरूरतें पूरी हों। साथ ही इस बात पर भी बल दिया कि प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक संसाधनों का लाभ उठाकर और नवीकरणीय ऊर्जा पहलों को बढ़ावा देकर हमें दुनिया को ऊर्जा प्रदाता बनने का लक्ष्य रखना चाहिए। इन सबको ध्यान में रखते हुए भारत सरकार जैव ईंधन, ग्रीन हाइड्रोज के क्षेत्र में अमेरिका सहित कई देशों के साथ सहयोग की संभावनाओं पर भी काम कर रही है।
आज देश ग्रीन हाइड्रोजन, जैव ईंधन सम्मिश्रण और वैकिल्पक स्रोतों से जैव ईंधन की खोज और उत्पादन पर जोर दे रहा है। इसके लिए 2021 में अमेरिकी राष्ट्रपति और भारतीय प्रधानमंत्री के बीच हस्ताक्षरित रणनीतिक हरित ऊर्जा साझेदारी के तहत चार एमओयू पर हस्ताक्षर भी किए गए हैं। हरित ऊर्जा आज के समय की बड़ी आवश्यकता बन चुकी है। यही वजह है कि दुनिया भर में रिन्यूबल एनर्जी यानी हरित उत्पादन में वृद्धि को लेकर काम हो रहा है। इसे जीवाष्म ईंधन को रोकने के विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है। एनर्जी थिंक टैंक ने वर्ष 2022 की अपनी पहली छमाही रिपोर्ट में माना कि पवन व सौर ऊर्जा में वृद्धि ने जीवाष्म ईधन बिजली उत्पादन में 4 प्रतिशत की वृद्धि को रोका है। इससे ईंधन लागत में 40 अरब अमेरिकी डॉलर के बराबर वृद्वि हुई एवं 230 मीट्रिक टन कार्बन उत्सर्जन रूका। ऊर्जा की जरूरतों की पूर्ति एवं प्रदूषण से निपटने के लिए स्वच्छ ऊर्जा विकल्पों का निर्माण अब बेहद जरूरी हो गया है। नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों जैसे सौर ऊर्जा, बायोमास, पवन ऊर्जा, पनबिजली ऊर्जा, ज्वार-भाटा ऊर्जा कार्बन उत्सर्जन को कम करने में भी अहम भूमिका निभा सकते हैं, इसके बाद भी लंबे समय तक इसकी उपेक्षा होती रही। आज देखा जा रहा है कि विश्व में तेल की आपूर्ति व उसकी कीमतों में परिवर्तन आने से ऊर्जा का भयंकर संकट पैदा हो रहा है। कोयले के भंडार कम हो रहे हैं।
भारत जैसे विकासशील देश का अधिकतर राजस्व तेल आयात पर खर्च हो रहा है। अब यह माना जा रहा है कि अगर हरित ऊर्जा का अधिक उत्पादन होता है तो इससे बिजली के दामों में भी कमी आ जाएगी। अगर कोयले से बिजली उत्पादन की निर्भरता को कम किया जाए तो यह जलवायु खतरों से निपटने में भी मददगार होगा। एक शोध रिपोर्ट के अनुसार यदि भारत 2050 तक अपने बिजली क्षेत्र को कोयले से हरित ऊर्जा में रूपांतरण करने की दिशा में बढ़ता है तो इससे बिजली लागत में 46 प्रतिशत कमी आ जाएगी। यदि सौर ऊर्जा की रफ्तार बढ़ाई जाय तो वर्ष 2030 तक यह गैस की तुलना में 50 प्रतिशत सस्ती हो सकती है।
दूसरी तरफ जलवायु में आ रहे परिवर्तन को प्रदूषण का बड़ा कारण माना जा रहा है जिसका विकल्प हरित रसायन को बताया जा रहा है। अभी बीते मानसून सीजन में आधा भारत सूखे तो आधे में सामान्य से अधिक
बारिश यानी बाढ़ की हालत रही। वहीं अमेरिका के कैलिर्फोनिया से लेकर यूरोप एवं चीन तक सूखे की चपेट में रहे तो पाकिस्तान में जल प्रलय के चलते हाहाकार मचा हुआ है। अकेले भारत में ही 10 प्रतिशत खाद्यान्न उत्पादन में कमी का अनुमान है।
अक्टूबर माह में बेमौसमी बारिश ने खड़ी फसलों को बर्बाद कर दिया। इसने खाद्य संकट को पैदा कर दिया है। भारत के संदर्भ में देखें तो विश्व की 2.4 प्रतिशत कृषि भूमि यहां है जबकि आबादी 17.7 प्रतिशत है। ऐसे में जलवायु परिवर्तन के चलते कृषि क्षेत्र को हो रहे नुकसान से समझा जा सकता है कि देश किस कदर खाद्य संकट के मुहाने पर खड़ा है। वहीं मौसम विज्ञानी मानते हैं कि किसानों की आमदनी बढ़ाने व जलवायु का पैटर्न बदलने के लिए खेती का पैटर्न बदलने की जरूरत है लेकिन इस तरफ काम बहुत कम हो पा रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ का कहना है कि वर्ष 2000 के बाद दुनिया भर के सूखे में 29 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। सूखे के चलते जहां बिजली उत्पादन में कमी, कृषि उत्पादन में कमी, मैन्युफैक्चरिंग में कमी, फूड सप्लाई चैन प्रभावित होना, खाने- पीने की वस्तुओं के बढ़ते दाम, वैश्विक व्यापार प्रणाली का लड़खड़ा जाना, प्राकृतिक गैस की आपूर्ति में कमी, परमाणु रिएक्टरों में कम उत्पादन जैसी समस्याओं ने खाद्य व ऊर्जा का संकट पैदा कर दिया है।
ऐसे में माना जा रहा है कि हरित प्रौद्योगिकी विश्वव्यापी आर्थिक विकास की नई राह बन सकती है। यह विकास को बढ़ावा दे सकती है तो जीवन को गुणवत्तापूर्ण भी बना सकती है। इसके जरिए प्रदूषण को रोककर गैर नवीकरणीय संसाधनों और तकनीकी दृष्टिकोण की खपत को कम किया जा सकता है। वहीं हरित रसायन मनुष्यों, जानवरों, पौधों एवं पर्यावरण के लिए खतरनाक पदार्थों के अपशिष्ट को कम कर सकता है। यह कचरे के निपटान की लागत को भी कम कर सकता है। यूरोप एवं अमेरिका ने वर्ष 1990 से ही इस तरफ ध्यान देना शुरू कर दिया था लेकिन भारत इस मामले में दशकों तक उदासीन बना रहा। आज विश्व के समक्ष एक बड़ा सवाल यह भी उठ खड़ा हुआ है कि धरती व पर्यावरण को रसायनों से कैसे मुक्त किया जाए? ऐसे उत्पादों को कैसे बढ़ाया जाए जो ज्यादा समय चले। अपशिष्ट पदार्थोर्ं की रोकथाम कैसे हो? ऐसी विधियों का निर्माण कैसे हो जिससे मानव स्वास्थ्य व पर्यावरण पर प्रभाव न पड़े? ऐसे सुरक्षित पदार्थों का निर्माण कैसे हो जिसमें विशाक्तता कम हो? इन सब सवालों का जबाव ग्रीन केमिस्ट्री की उपयोगिता में छिपा है। अब यह माना जा रहा है कि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को रोकने के लिए हरित तकनीक का प्रयोग बेहद लाभकारक साबित हो सकता है। यही वजह है कि सरकारें अब हरित तकनीक के निवेश पर बल दे रही हैं। आज 70 हजार से अधिक रसायन उपयोग में लाए जा रहे हैं।
कीटनाशकों के चलते ही लोग जहरीला पानी पीने को मजबूर हो रहे हैं। पशुओं के दूध में कीटनाशकों के अवशेश मिल रहे हैं जो चारे के रूप में उनके शरीर में जा रहे हैं। आज दुनिया भर में कीटनाशकों के फायदे व नुकसान को लेकर बहस छिड़ी है। एक अनुमान के अनुसार विश्वभर में कीटनाशकों के चलते हर वर्ष करीब 30 लाख लोग बीमार हो जाते हैं। 2 लाख लोग अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं। कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से शत्रु कीटों के साथ-साथ मित्र कीटों का भी सफाया होने लगा है। इससे पारिस्थिकी तंत्र बिगड़ने लगा है। हरित की थीम ही यह है कि धरती व पर्यावरण को रसायनों से मुक्त कर ऐसे उत्पादों को बनाया जाय जो ज्यादा समय चले। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईटीआई), भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र सहित कई विश्वविद्यालयों व संस्थानों में इस पर शोध हो रहा है।
आज भारत में दुनिया की सबसे बड़ी हरित रेलवे पर तेजी से काम हो रहा है। रेलवे ने 2030 तक कार्बन उत्सर्जन शून्य करने का लक्ष्य रखा है। रेलवे को विद्युतीकृत किया जा रहा है। जलवायु परिवर्तन के चलते सूखा, भूजल भंडार, जल के अम्लीकरण, बाढ़, भूजल की कमी, तमाम तरह के रोग, बीमारियां, प्रजातियों का लुप्त होना आम बात है। ऐसे में हमें हरित प्रौद्योगिकी एक नई आशा दिखा रही है। जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि भारत 2070 तक नेट जीरो का लक्ष्य हासिल कर लेगा। हाल में हुए संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन समझौते में भी यह तय हो गया कि अब समय हरित ऊर्जा विकास का है। भारत ही नहीं अमेरिका भी हरित ऊर्जा के क्षेत्र में दो ट्रिलियन डॉलर खर्च कर रहा है। अगर समय रहते हरित प्रौद्योगिकी की तरफ दुनिया तेजी से आगे बढ़ती है तो कई समस्याओं से पार पाने में सक्षम हो सकती है।
भारत शून्य कार्बन उत्सर्जन की अवधारणा से जुड़ा है। देश की ऊर्जा कार्यनीति दुनिया के लोगों के लिए हरित ऊर्जा की उपलब्धता, उसकी सामर्थ्य, सुरक्षा सुनिश्चित करने के संकल्प के प्रति सजग करती है। भारत ने हाइड्रोजन और जैव ईंधन को बढ़ावा देने सहित कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं। भारत हरित परिवर्तन के प्रति अपनी वचनबद्धताओं को कतई कमजोर नहीं होने देगा। हरित व सतत ऊर्जा हमारी ऊर्जा जरूरतों का निर्धारण करेगी।
हरदीप सिंह पुरी, केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री, भारत सरकार