एक ओर जहां संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 2015 में सतत् विकास लक्ष्य (एसडीजी) के तहत 2030 तक भूख से मुक्त विश्व बनाना है, वहीं दूसरी तरफ पिछले कुछ समय से महामारी, जलवायु परिवर्तन, रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक खाद्य व्यवस्था की खामियां और कमजोरियां बढ़ती जा रही हैं। इससे खाद्यान्न का उत्पादन, वितरण और खपत प्रभावित हो रही है। जिसके कारण दुनिया के सामने खाद्य संकट गहराने लगा है
मनुष्य जीवन के लिए सबसे जरूरी चीज है भोजन। दुनिया इस समय इसके अभूतपूर्व संकट से गुजर रही है। भारत में तो खाद्यान्नों का अभाव नहीं, लेकिन अनेक देशों में स्थिति गंभीर हो चली है। वर्ल्ड फूड प्रोग्राम के अनुसार कोरोना महामारी से पहले 2019 में दुनिया में 13.5 करोड़ लोग भीषण खाद्य संकट से जूझ रहे थे। इस साल की शुरुआत में इनकी संख्या 28.2 करोड़ हो गई, और अब पिछले एक साल से जारी रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते दुनियाभर में 34.5 करोड़ लोग भीषण खाद्य संकट का सामना कर रहे हैं। खाने-पीने की चीजों की कमी के संकट से गरीब देश आमतौर पर जूझते हैं। जैसे कुछ दिनों पहले श्रीलंका में ऐसा संकट उत्पन्न हुआ था और अब पाकिस्तान, ब्रिटेन ,चीन जैसे कई संपन्न देश खाद्य संकट से जूझ रहे हैं। अगर ब्रिटेन जैसे विकसित देशों में ऐसी स्थिति देखने को मिले, तो इसे सामान्य नहीं कहा जा सकता है।
आंकड़ों के अनुसार ब्रिटेन में ग्रासरी की महंगाई दर 15.9 फीसदी रही। वहीं जरूरी चीजों की कीमतों में जनवरी में 21.6 फीसदी की तेजी देखने को मिली है। ब्रांडेड सामान जनवरी में साल भर पहले की तुलना में 13 से 20 फीसदी तक महंगे रहे। टमाटर, खीरा, ब्रोकली, लेट्यूस, मिर्च, फूलगोभी, रैस्पबेरी आदि लोगों को मिल नहीं पा रहे हैं। इसके चलते टेस्को, अस्दा, अल्दी और मॉरिसंस जैसे सुपरमार्केट्स ने सामानों की राशनिंग कर दी गई है।
इसका मतलब हुआ कि हर इंसान के लिए खरीदने की एक अधिकतम सीमा तय कर दी गई है। महंगाई का आलम यह है कि देश के सबसे बड़े सुपरमार्केट में लोग 2 से ज्यादा आलू या टमाटर नहीं खरीद सकते हैं। सुपरमार्केट के फूड सेल्फ खाली नजर आ रहे हैं। यह केवल एक सुपरमार्केट का नहीं, लगभग सभी सुपरमार्केट का यही हाल है। आम लोग तो इससे चिंता में हैं ही, साथ ही टीचर्स, स्वास्थ्यकर्मी और पेंशनधारी भी अपने खाने का खर्च नहीं उठा पा रहे हैं। ब्रिटेन में मौजूदा समय में करीब 154 संस्थाएं फूड बैंक का संचालन करती हैं, जो लोगों को मुफ्त भोजन वितरित करती हैं। फूड बैंक संचालित करने वाली 85 संस्थाओं का कहना है कि जब भोजन की मांग करने वाले लोगों की तादाद बढ़ने लगी तो उन्होंने कई बार भोजन में कटौती की। कई बार तो भोजन लेने आए लोगों को वापस लौटा दिया गया। सबसे ज्यादा फूड बैंक ‘द ट्रसेल ट्रस्ट’ नाम की संस्था द्वारा चलाया जा रहा है। इस संस्था के 1300 से अधिक फ़ूड बैंक मौजूद हैं।
ब्रिटेन के सामने आई इस स्थिति के लिए कई वजह बताई जा रही है। इनमें जलवायु परिवर्तन, ईंधन, बिजली की कीमतें, सप्लाईचेन की दिक्कतें, ब्रेक्जिट और राजनीतिक अस्थिरता भी शामिल है। ब्रिटिश रिटेल कंसोर्टियम के अनुसार, ब्रिटेन ठंड के महीनों में 90 फीसदी लेट्यूस और 95 फीसदी टमाटर का आयात करता है। इन्हें स्पेन और मोरक्को जैसे देशों से मंगाया जाता है। स्पेन में इस बार असामान्य ठंडी बढ़ी, जबकि मोरक्को में बाढ़ के चलते फसल बर्बाद हो गए। अन्य जगहों पर किसानों ने बिजली की अधिक कीमतों के चलते खेती करना कम कर दिया है। इसी तरह कई देश गंभीर हालातों का सामना कर रहे हैं तो कई देश हालातों के सामने घुटने टेक चुके हैं। उन्हीं देशों में पाकिस्तान भी शामिल है। जहां इस समय लोग भोजन के लिए तरस रहे हैं। भूख और आर्थिक संकट से घिरे ये लोग सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं। लोगों के घरों में खाने-पीने की वस्तुएं न के बराबर हैं। पाकिस्तान में आटा, दाल, चावल और चीनी तक लोगों की पहुंच से दूर हो चुकी है। हालात ये हैं कि यहां आटा भी 200 रुपये प्रति किलो बिक रहा है। जिसके कारण पाकिस्तानी आवाम भूख से तड़प रही है।
भुखमरी की कगार पर पाकिस्तान
पाकिस्तान इस समय अपने इतिहास की सबसे बड़ी महंगाई और आर्थिक चुनौतियों से घिर चुका है। जिन चीजों का मूल्य सामान्य होता है, लोगों को उनकी भी भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। लोगों की थाली से भोजन तो दूर हो ही रहा है अब शुद्ध पीने का पानी तक उन्हें नसीब नहीं हो रहा है। फिलहाल प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने ख़राब आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए मंत्रियों और सलाहकारों से वेतन, लग्जरी कारों को छोड़ इकॉनमी क्लास में उड़ान भरने को कहा है। ताकि देश के रुपए को प्रति वर्ष 200 बिलियन बचाया जा सके।
धान की भूसी खाने को मजबूर चीनी नागरिक
चावल की भूसी को मुख्य रूप से दो तरीके से खाद्य के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसका तेल और पशु चारा के रूप में उपयोग होता है, वहीं जानकारों का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से चीन में फसलों की पैदावार में कमी आई है। साथ ही उपजाऊ भूमि का भी नुकसान पहुंचा है। जिसके कारण चीन में खाद्य पदार्थों की भारी कमी हो गई है। ऐसे में सरकार अपने नागरिकों के पेट भरने के लिए धान से निकलने वाली भूसी को मुख्य आहार के रूप में प्रमोट कर रही है।
बीते 19 जनवरी को चीन के राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग की आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित एक अधिसूचना के अनुसार, आहार में चावल की भूसी को बढ़ावा देने के लिए चावल की भूसी उद्योग का विकास अपने लोगों के पोषण और स्वास्थ्य में सुधार के लिए धान की भूसी को मुख्य खाद्य के रूप में बढ़ावा दिया है। जो खाद्य कमी को दूर करने में मदद करेगा। जानकारों का कहना है कि चीन ने यह कदम देश में खाद्य की कमी को दूर करने के लिए उठाया है।
उत्तर कोरिया में खाद्य संकट से मौत
कोरोना के बाद से उत्तर कोरिया में भी खाद्य संकट गहराता नजर जा रहा है। इससे पहले भी ऐसी चर्चा थी । रिपोर्टों के मुताबिक, उत्तर कोरियाई क्षेत्र में एक बड़ी संख्या भुखमरी की कगार पर है, लेकिन इसको लेकर विशेषज्ञों का कहना है कि यह कोई अकाल की ओर इशारा नहीं है। इसी माह फरवरी के अंत में वर्कर्स पार्टी की केंद्रीय समिति की एक विस्तृत बैठक होने वाली है। इस बैठक के एजेंडे की फिलहाल तो स्पष्ट जानकारी नहीं है, लेकिन पार्टी के शक्तिशाली पोलित ब्यूरो द्वारा पहले कहा गया था कि कृषि विकास में आमूलचूल बदलावों को गतिशील रूप से बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ की जरूरत है।
उत्तर कोरिया में क्या चल रहा है इसका सटीक अंदाजा लगा पाना संभव नहीं है क्योंकि कोरोना महामारी इसने के दौरान अपनी सीमाओं को लगभग बंद कर दिया था। 1990 के दशक के मध्य में आए अकाल जैसी स्थिति अब तक बनी हुई है। 2011 के अंत में नेता के रूप में अपने पिता से पदभार ग्रहण करने के बाद अपने पहले सार्वजनिक भाषण में किम ने कसम खाई थी कि उत्तर कोरियाई लोगों को खाद्य पदार्थों के लिए अपनी कमर कसनी नहीं पड़ेगी। लेकिन हालात कुछ और ही बयां कर रहे हैं।
प्याज क्राइसिस
रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण सप्लाई चैन बाधित होने के चलते गेहूं संकट बना हुआ है तो वहीं अब दुनिया में खाने-पीने की वस्तुओं की भारी किल्लत होने लगी है। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में सब्जियों की कीमतों में वृद्धि, पाकिस्तान में विनाशकारी बाढ़, मध्य एशिया में भारी बारिश, रूस-यूक्रेन में युद्ध का परिणाम है। युद्ध के कारण उर्वरकों की कीमतों में भारी वृद्धि हुई थी। महंगे उर्वरकों का प्रयोग किसान नहीं कर सके। इसका असर उत्पादों पर पड़ा है। रूस के साथ संघर्ष के कारण यूक्रेन में प्याज का उत्पादन प्रभावित हुआ है। यूक्रेन, पोलैंड, रोमानिया, मोल्दोवा, कजाकिस्तान और तुर्की प्याज निर्यात कर रहा था। अब उसे प्याज का आयात करना पड़ रहा है। जिसके चलते इस समय दुनिया के अधिकतर हिस्से प्याज क्राइसिस को झेल रहे हैं। इसका सबसे अधिक असर फिलीपींस में देखने को मिल रहा है। प्याज की बढ़ती कीमतों को देखते हुए लोगों ने अब प्याज को कम खरीदना शुरू कर दिया है। ताकि घर का बजट संतुलित रहे।
फिलीपींस को रुला रहा प्याज
फिलीपींस में प्याज की कीमतें सितंबर 2022 से लगातार बढ़ रही हैं। फिलीपींस में प्याज की कीमतें पिछले चार महीनों में चार गुना हो गई हैं। कीमतों में यह बढ़ोतरी इतनी ज्यादा है कि प्याज की कीमत मीट से ज्यादा हो गई है। रॉयटर्स समाचार एजेंसी के अनुसार प्याज की कीमत अप्रैल 2022 में लगभग 70 पेसो (105.18 रुपये) प्रति किलोग्राम से बढ़कर दिसंबर 2022 में 700 पेसो (35.12 रुपये) हो गई।
फिलीपींस कृषि विभाग के मुताबिक प्याज की कीमत 550 पेसोस (2,476 रुपये) प्रति किलो है। प्याज के दाम बाजार में बिकने वाले मुर्गे से तीन गुना और बीफ से 25 फीसदी ज्यादा हैं। फिलीपींस में अधिकतर लोग मांसाहार का सेवन करते हैं और प्याज उनके भोजन का एक प्रमुख अंग है। लेकिन हालिया समय में फिलीपींस वासियों की भोजन की थाली से प्याज गायब होता जा रहा है।
ऐसा ही कुछ हाल मोरक्को का भी है। यहां पर भी प्याज और टमाटर काफी महंगा हो गया है। मोरक्को में महंगाई की मार का असर यह है कि आम लोगों के भोजन में टमाटर-प्याज शामिल नहीं हो पा रहे हैं। इसी तरह ताजिकिस्तान, किगिस्तान, कजाकिस्तान, तुर्की में भी प्याज की भारी कमी है। मध्य एशिया के ये देश प्याज का उत्पादन कर रहे हैं, लेकिन संभावित मूल्य वृद्धि से बचने के लिए देशों ने प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है। इसलिए नियमित प्याज आयातक देशों को प्याज की कमी का सामना करना पड़ रहा है।