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अपने कर्ज के बूते दुनिया के देशों को दबा रहा चीन 

अपनी विस्तारवादी नीति से पड़ोसी मुल्कों पर खंजर घोंपने के लिए कुख्यात चालबाज चीन ने अपने  पुराने अंदाज में एक बार फिर से गाल बजाकर दुनिया को बरगलाने की कोशिश की है। चीन दुनियाभर में ‘गोपनीय’ शर्तों के साथ कर्ज बांटकर गरीब देशों पर भू- राजनीतिक दबदबा बढ़ाने और उनके शोषण में जुटा हुआ है। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन मौजूदा समय में  सबसे बड़ा विदेशी ऋणदाता बन गया है।

विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा संयुक्त रूप से दिए ऋणों से ज्यादा चीन दे चुका है। साथ ही दुनिया में कुल आधिकारिक द्विपक्षीय कर्ज का 65 फीसदी अकेले चीन ने दे रखा है।

इसी वर्ष जनवरी 2021 में प्रकाशित एक श्वेत पत्र के मुताबिक चीन विश्व समुदाय का हिस्सा होने के नाते अंतरराष्ट्रीय विकास सहयोग के तहत ये ऋण देने का दावा करता है। लेकिन  पिछले कुछ समय में कई देशों के साथ उसके बर्ताव इस बात के सबूत हैं कि वह इस सहयोग के नाम पर छलावा कर रहा है।

इस्राइली वेबसाइट पर अपने ब्लॉग पोस्ट में भू- राजनीति विशेषज्ञ फेबियन बुसार्ट ने लिखा है कि वैश्विक भलाई की आड़ में बांटा जा रहा चीनी कर्ज नियम-शर्तों के आधार पर शोषणकारी है। इनमें उधार लेने वाले देशों को दबाने के कई प्रावधान हैं। ऋण विकासशील देशों में चीन पर आर्थिक निर्भरता और वहां राजनीतिक लाभ बढ़ाने के दरवाजे खोलते हैं। इसके चलते कमजोर देशों की संप्रभुता पर भी गंभीर खतरा मंडराने लगा है।

बुसार्ट के मुताबिक, अधिकांश चीनी ऋण रियायती दरों के बजाय वाणिज्यिक दरों पर बांटे गए हैं। ऐसा किसी विदेशी विकास सहायता में देखने को नहीं मिलता।

52 देशों के साथ 242 समझौतों का अध्ययन 

जर्मनी के कील इंस्टीट्यूट , वाशिंगटन आधारित सेंटर फॉर ग्लोबल डवलपमेंट, एड डेटा व पीटरसन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल इकोनॉमिक्स ने वर्ष 2000 से 2020 के बीच 24 विकासशील देशों के साथ हुए सौ चीनी कर्ज समझौतों और 28 देशों के साथ हुए 142 गैर चीनी कर्ज समझौतों का अध्ययन किया था। अध्ययन में पाया गया कि  चीनी कर्ज की शर्ते ज्यादा सख्त हैं। चीन ने इन समझौतों में कड़े गोपनीय प्रावधान कर रखे हैं, जिनमें लेनदार को ऋण और उसकी शर्ते तक उजागर करने से रोका गया है। ये शर्ते आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) देशों द्वारा दिए जाने वाली विकास सहायता के उलट है। इसके चलते संबंधित लेनदार पर वास्तविक कर्जभार का अनुमान लगाने में भी बाधक है।

चीन ने श्रीलंका, लाओस और मालदीव में किया कब्जा। डिफॉल्टर होने पर लेनदार देश में उसकी संपत्तियों पर कब्जे की रणनीति है । इसका उदाहरण है  श्रीलंका का हंबनटोटा बंदरगाह, लाओस में इलेक्ट्रिक ग्रिड से लेकर ताजिकिस्तान में विवादित क्षेत्र और मालदीव के रणनीतिक रूप से अहम द्वीपों पर चीनी कब्जा शामिल है।

यह भी पढ़ें :चीन की नई चाल, मुझसे लोन लो और मुझसे ही कोरोना वैक्सीन खरीदो

हाल ही में चीन कोरोना वैक्सीन को लेकर भीऐसी ही चाल चली । पहले तो उसने दुनियाभर में कोरोना फैलाया और फिर गरीब मुल्कों को कह रहा है कि मुझेसे  लोन लेकर मेरी वैक्सीन खरीदो ।चीन ने लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई देशों को कहा है कि वो उनसे लोन लेकर उनके यहां तैयार हो रही कोरोना वैक्सीन  खरीद सकते हैं। चीन के विदेश मंत्री ने इसके लिए एक बिलियन डॉलर यानी 700 करोड़ रुपये के लोन देने  की पेशकश की ।

मेक्सिको विदेश मंत्रालय की तरफ से जारी एक बयान के मुताबिक चीन के विदेश मंत्री ने कहा है कि उनके यहां तैयार हो रही वैक्सीन पूरी दुनिया  इस्तेमाल कर  सकती है।  इसके लिए उनकी तरफ से एक  बिलियन डॉलर का लोन दिया जाएगा ।

चीन दुनिया के गरीब देशों को सस्ते लोन देने में माहिर है। एक डेटा के मुताबिक अफ्रीका के 40 फीसदी देश चीन के  कर्ज में डूबे हैं। एक अनुमान के मुताबिक अफ्रीकी देशों पर चीन का करीब 140 बिलियन डॉलर बकाया है।लोन देने के मामले में चीन ने वर्ल्ड बैंक को भी पीछे छोड़ दिया है।  हारवर्ड बिजनेस के मुताबिक चीन की सरकार और वहां की कंपनियों ने दुनिया के 150 देशों को अब तक लोन दिया है।

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