पिछले दो सालों से जहां एक ओर पूरी दुनिया कोरोना महामारी से जंग लड़ रही है वहीं दूसरी तरफ अब दुनियाभर में वायु प्रदूषण का संकट बढ़ता ही जा रहा है। दुनिया के करीब 91 प्रतिशत आबादी ऐसी हवा में सांस लेने को मजबूर है, जो उसके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। भारत में भी यह विकराल रूप धारण कर चुका है।विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी वायु प्रदूषण को लेकर खतरे की घंटी बजा दी है। संगठन ने वायु प्रदूषण को स्वास्थ को नुकसान पहुंचाने वाला सबसे प्रमुख पर्यावरण संबंधी खतरा बताया है। हाल में वायु प्रदूषण को लेकर संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम यूएनइपी की चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है।

वायु प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दखल
भारत में तो हालत यह है कि सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या देश में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए कोई ठोस कानून है ? पर्यावरणविद विजय बघेल का कहना है कि भारत ही नहीं दुनिया के अधिकांश विकसित और विकासशील मुल्क वायु प्रदूषण की समस्या से जूझ रहे हैं। डब्ल्यूएचओ ने वायु गुणवत्ता को लेकर जरूरी दिशानिर्देश बहुत पहले ही जारी किए थे, लेकिन उन्हें अभी भी वैश्विक स्तर पर लागू करने के लिए कोई कानूनी ढांचा मौजूद नहीं है। वायु प्रदूषण को रोकने के लिए 34 फीसदी देशों में कोई जरूरी कानून नहीं है। महज 33 फीसदी देशों ने वायु गुणवत्ता के मानको को पूरा करने संबंधी दायित्वों को लागू किया है।उनका कहना है कि 49 फीसदी देशों ने इसे एक खतरे के रूप में चिन्हित किया है। इतना ही नहीं वायु प्रदूषण को रोकने के लिए जिन देशों में कानून है भी वह विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी मानकों के अनुरूप नहीं है। यह जानकारी हाल ही में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) द्वारा वायु गुणवत्ता कानूनों और नियमों पर जारी एक रिपोर्ट में सामने आई है।

यूरोपिय यूनियन
यूएनइपी की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के 194 मुल्कों और यूरोपिय यूनियन में वायु गुणवत्ता संबंधी नियमों और कानूनों की जांच की गई है। इस रिपोर्ट में इस बात का आंकलन किया गया है कि दुनिया के देश वायु प्रदूषण को लेकर कितने गंभीर और सजग हैं। देशों ने इस समस्या को कितनी गंभीरता से कानूनी तौर पर लागू किया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक अधिकतर अफ्रीकी देशों में इन मानकों का अभाव है। चौंकाने वाली बात यह है कि वैश्विक स्तर पर जिन देशों में वायु गुणवत्ता को लेकर जारी मानकों को अपनाया है वह भी डब्ल्यूएचओ के मानकों से मेल नहीं खाते हैं। वहां देशों ने इन्हें अपने आधार पर तय किया है।

वायु प्रदूषण को लेकर डब्लूएचओ ने जताई चिंता
उदाहरण के लिए डब्लूएचओ ने हवा में पीएम 2.5 की गुणवत्ता के लिए जो मानक तय किया है वो 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है। वहीं भारत सरकार ने पीएम 2.5 के लिए 40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर का मानक तय किया है।
पर्यावरणविद विजय बघेल का कहना है कि वायु प्रदूषण एक ऐसी समस्या है जिसकी कोई सीमा नहीं है, आप हवा को बांध नहीं सकते, जिस ओर बयार चलती है वो अपने साथ इस प्रदूषण को भी ले जाती है। इसलिए यह समझना होगा कि यह किसी एक मुल्क की समस्या नहीं है बल्कि यह पूरी मानव जाति की जिम्मेवारी है। इसके बावजूद दुनिया में महज 31 फीसद देशों के पास सीमा पार से आने वाले वायु प्रदूषण को संबोधित करने के लिए कानूनी तंत्र हैं। भारत के पास इसके लिए कोई ठोस कानून नहीं है।
वायु प्रदूषण हर वर्ष 70 लाख लोगों की जान ले रहा है, यदि इसे रोकने के लिए अभी से गंभीर प्रयास नहीं किए गए तो यह आंकड़ा 2050 तक 50 फीसद तक बढ़ जाएगा। जिस हवा में हम सांस लेते हैं वो सभी की बुनियादी जरूरत है। ऐसे में सरकारों को चाहिए की वह स्वच्छ और सुरक्षित हवा को बनाए रखने के लिए ठोस कदम उठाए।
दिल्ली जैसे शहरों में जहां हर कोई वायु गुणवत्ता को लेकर चिंतित है। ऐसे में सिर्फ कानूनों से काम नहीं चलता, हमें इसके लिए जवाबदेही तय करनी होगी। इसके लिए जनता को जागरूक करना होगा। सरकारों को इस समस्या से निपटने के लिए इच्छाशक्ति के साथ पेश आना होगा।

शिकागो विश्वविद्यालय द्वारा द्वारा जारी रिपोर्ट
अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय के एनर्जी पालिसी इंस्टिट्यूट द्वारा जारी एक रिपोर्ट से पता चलता है कि यदि इस पर गंभीरता से विचार नहीं किया गया तो इसकी वजह से प्रत्येक भारतीय का जीवन छह वर्ष कम हो जाएगा। इसे सरल शब्दों में समझे तो लोगों की औसत उम्र करीब छह वर्ष घट जाएगी। देश की राजधानी दिल्ली और लखनऊ की तस्वीर और भी भयावह और चौंकाने वाली है। यहां लोगों की औसत उम्र नौ वर्ष से अधिक घटने की आशंका जताई गई है। स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर की रिपोर्ट के मुताबिक देश में 1 लाख 16 हजार से अधिक शिशुओं की मौत के लिए वायु प्रदूषण से होती है। इसके चलते 2019 में करीब 16.7 लाख लोगों की जान गई थी।
इससे पहले कोरोना वायरस से निपटने के लिए जब भारत में लॉकडाउन लगा, उसने वायरस से लडऩे में मदद तो की। साथ ही वायु प्रदूषण के स्तर को भी काफी कमी देखने को मिली थी । वैज्ञानिकों की मानें, तो वायु प्रदूषण से निपटने के लिए निकट भविष्य में संभावित आपातकालीन उपायों में लॉकडाउन को इस्तेमाल किया जा सकता है। विशेषज्ञों ने कई पर्यावरणीय कारकों की रूपरेखा तैयार की थी , जिसमें बंद पड़ी फैक्ट्रियों और लोगों के आने-जाने में कमी के कारण हवा की गुणवत्ता, ध्वनि प्रदूषण, जल की गुणवत्ता में सुधार देखा गया था ।
वायु प्रदूषण पर नियंत्रण पाना है, तो अधिक से अधिक मात्रा में पेड़-पौधे लगाने चाहिए। आज पूरी दुनिया जनसंख्या वृद्धि की समस्या से जूझ रही है। अगर हम जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण कर लेते हैं, तो वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की भी कमी होगी और कम उद्योग धंधे लगाने की आवश्यकता होगी। जिससे प्रदूषण की मात्रा में कमी आएगी। हमें उन कल-कारखानों को बंद कर देना चाहिए, जिनसे अधिक मात्रा में प्रदूषण होता है, जिससे वायुमंडल कम से कम प्रभावित हो। ऊर्जा के लिए नए स्रोत खोजने चाहिए। कोयले और परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल कम करना चाहिए। सौर ऊर्जा का इस्तेमाल अधिक मात्रा में करना चाहिए जिसके कारण वायु प्रदूषण भी नहीं होगा और ऊर्जा भी पूरी मिल जाएगी। भारत में जब भी कोई निर्माण होता है, तो वह खुले में होता है, जिसके कारण चारों तरफ धूल-मिट्टी उड़ती रहती है और पूरा वातावरण प्रदूषित हो जाता है।