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पुरुषों के यौन शोषण पर मौन क्यों?

महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न को लेकर तमाम सामाजिक संगठन, सोशल एक्टिविस्ट और महिला आयोग मुखर हो आवाज उठाते हैं जो सही भी है। लेकिन जब बात आती है पुरुषों की तो अधिकतर देशों में समाज उनका मजाक बनाने लगता है जबकि लड़कियों के मुकाबले लड़के यौन उत्पीड़न का शिकार बन रहे हैं। हाल ही में जारी हुई पाकिस्तान पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार देश में बीते छह महीनों के भीतर ऐसे मामलों की संख्या 1 हजार 390 दर्ज किए गए। इनमें 69 फीसदी पुरुष और 31 प्रतिशत महिलाएं हैं। यानी 959 पुरुष और 431 महिलाएं इसकी शिकार हुईर्ं। भारत में भी ऐसी घटनाएं आम हो चली हैं। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि पुरुषों के मामले में चुप्पी क्यों?

दुनियाभर में यौन उत्पीड़न का कोई मामला सामने आता है तो हमारे जेहन में लड़कियों के साथ होने वाली यौन उत्पीड़न की घटनाएं किसी किताब के पन्नों की भांति पलटने लगती हैं। लेकिन यौन उत्पीड़न के सभी पन्नों में हम एक पन्ने को हमेशा देखना भूल जाते हैं। वह एक पन्ना होता है लड़कों के साथ होने वाले यौन उत्पीड़न की धुंधली तस्वीर। लड़का हो या लड़की यौन शोषण दोनों के लिए दुखदाई होता है। लेकिन दुनिया के अधिकतर देशों में समाज का तानाबाना ऐसा है कि यहां लड़कों के साथ यौन उत्पीड़न की बात आते ही लोग मजाक बनाने लगते हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि दुनिया में लड़कियों से भी अधिक लड़के यौन शोषण का शिकार हो रहे हैं।

हाल ही में पाकिस्तानी पंजाब प्रांत की पुलिस की एक खुफिया रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान में लड़कियों से ज्यादा लड़के बलात्कार का शिकार हो रहे हैं। इनमें भी बड़ी संख्या कम उम्र के बच्चों की बताई गई है। अधिकतर मामलों में बच्चे का यौन शोषण उनका अपना कोई रिश्तेदार या जानने वाला ही होता है। इस साल जनवरी से 15 जून 2023 तक ऐसे मामलों की संख्या 1 हजार 390 हैं, जो अपने आप में चिंताजनक संख्या है।

पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के गृह विभाग की रिपोर्ट में दिखाए गए आंकड़ों के मुताबिक करीब 69 फीसदी (959) नाबालिग लड़के जबकि 31 फीसदी (431) नाबालिग लड़कियां रेप का शिकार हुई हैं। रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि ज्यादातर मामलों में पीड़ित एक-दूसरे को जानते थे। बताया गया है कि 55 फीसदी मामलों में पीड़ित पड़ोसी थे। 13 प्रतिशत रिश्तेदार और 32 प्रतिशत अजनबी थे। रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि पंजाब में लड़कियों के मुकाबले चाइल्ड अब्यूज की शिकायत लड़कों द्वारा ज्यादा की जा रही है।

बलात्कार का एक कारण गरीबी भी
बच्चों के साथ रेप के मामलों में गुजरांवाला से 220 से ज्यादा मामले सामने आए हैं। इसके अलावा रेप के सबसे कम 69 मामले रावलपिंडी में जबकि 89 मामले लाहौर में दर्ज किए गए हैं। डेरा गाजी खान में 199, शेखूपुरा में 128, फैसलाबाद में 186, मुल्तान में 140, बहावलपुर में 129 और सरगोधा में 103 मामले दर्ज किए गए हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान में बच्चों से होने वाले रेप के लिए कई कारण जिम्मेदार हैं। गरीबी, अशिक्षा और सामाजिक असमानताएं इसमें अहम कारण हैं।

पाकिस्तान में बच्चों के लिए काम करने वाले एनजीओ ‘साहिल’ की ओर से वर्ष 2020 में पेश एक रिपोर्ट से उजागर हुआ कि इन मामलों में से 98 मामलों में यौन शोषण के शिकार पीड़ितों की उम्र एक से पांच साल के बीच, 331 मामलों में उम्र छह से 10 साल के बीच और 11 से 15 साल के बच्चों की संख्या 490 थी जो कि चिंताजनक है। इसी तरह साल 2017 में भी एनजीओ ‘साहिल’ की ओर से बाल शोषण से जुड़ी अपनी सालाना रिपोर्ट पेश की गई थी जिसमें कहा गया था कि पाकिस्तान में 3 हजार 445 बच्चों का यौन शोषण किया गया था।

‘चाइल्ड अब्यूज सर्वाइवर’ शीर्षक से जारी इस रिपोर्ट में यौन शोषण का शिकार 2 हजार 77 लड़कियां और 1 हजार 368 लड़के थे। देश में प्रतिदिन नौ बच्चों के साथ यौन शोषण किया जाता था। एनजीओ ‘साहिल’ ने अपनी सालाना रिपोर्ट 91 स्थानीय, क्षेत्रीय और नेशनल न्यूजपेपर की खबरों और सामने आए मामलों के आधार पर तैयार की थी।

रिपोर्ट हुए मामलों में अपहरण के 1 हजार 39 मामले, बलात्कार के 467 मामले, अप्राकृतिक यौनाचार के 366 मामले, सामूहिक बलात्कार के 158 मामले, सामूहिक अप्राकृतिक यौनाचार के तहत 180 मामले और बाल यौन शोषण के प्रयास के 206 मामले सामने आए हैं। यह हाल केवल पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का ही नहीं है, बल्कि दुनिया के कई देशों में भी यौन शोषण झेलने वालों में आधे से ज्यादा लड़के होते हैं।

भारत में भी यौन शोषण का ज्यादा शिकार लड़के
पाकिस्तान की तरह ही भारत में भी लड़कियों के मुकाबले लड़कों का यौन शोषण ज्यादा होता रहा है। साल 2007 में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास कल्याण मंत्रालय द्वारा बच्चों के साथ होने वाले यौन शोषण पर स्टडी कराई गई। रिपोर्ट में सामने आया कि 53.2 फीसदी बच्चों ने एक या कई बार यौन शोषण का सामना किया। पाया गया कि यौन शोषण के शिकार हुए आधे से ज्यादा यानी 52.9 फीसदी पीड़ित लड़के थे। इस स्टडी के बाद ही यौन अपराधों से लड़कों को भी बचाने के लिए साल 2012 में पॉक्सो एक्ट लाया गया था। इस विषय पर एक गैर सरकारी संस्था ‘बटरफ्लाइज’ ने भी ‘ब्रेकिंग द साइलेंस’ शीर्षक से एक स्टडी करवाई जिसमें लड़कों का यौन शोषण करने वाले अधिकतर लड़के और उनके परिचित ही थे।
सर्वविदित है कि भारत में जबरदस्ती बनाए गए यौन संबंध अगर लड़की से हैं तो ही रेप की श्रेणी में उस मामले को माना जाता है। इस कारण ही अपराधियों द्वारा फायदा उठाया जाता है और अपराध से बचा भी जाता है। लड़कों के साथ होने वाले यौन उत्पीड़न को अपराध की श्रेणी में रखा ही नहीं जाता है। लेकिन साल 1996 में हुए एक केस ने पूरे देश में बवाल मचा दिया था जब दिल्ली में एक सेक्रेटरी रैंक के अफसर पर खुद के बेटे का यौन शोषण का आरोप लगा। आरोप था कि वह अपने दोस्तों के साथ अपने 6 साल के बच्चे के साथ गलत हरकत करता था। बच्चे की मां को जानकारी हुई तो इस पर कोर्ट में मुकदमा चला और मांग उठी की लड़कों के साथ होने वाले यौन अपराधों को भी कानून के दायरे में लाया जाए। हालांकि अधिकांश बाल यौन शोषण पुरुषों द्वारा किया जाता है। विकिपीडिया के अनुसार, लड़कों के खिलाफ रिपोर्ट हुए अपराधों में से लगभग 14 फीसदी अपराधी महिलाएं होती हैं और लड़कियों के खिलाफ रिपोर्ट किए गए अपराधों में से 6 फीसदी अपराधी महिलाएं होती हैं।

अरब देशों में भी लड़के यौन शोषण के अधिक शिकार
भारत और पाकिस्तान ही नहीं, इराक से आई एक रिपोर्ट में भी महिलाओं की तुलना में पुरुषों को ज्यादा यौन पीड़ित बताया गया। प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के एक शोध ‘अरब बैरोमीटर’ ने ‘बीबीसी अरब’ के लिए एक सर्वेक्षण किया। इस सर्वेक्षण के जरिए मध्य पूर्व, उत्तरी अफ्रीका-अल्जीरिया, मिस्र, इराक, जॉर्डन, कुवैत, लेबनान, मोरक्को, सूडान, ट्यूनीशिया, यमन और फिलिस्तीन जैसे देशों से डेटा एकत्र किया गया। इस दौरान 25 हजार से ज्यादा लोगों से सवाल पूछे गए। जिसके बाद सर्वे में यह बात सामने आई कि इराक में महिलाओं से ज्यादा पुरुष शारीरिक यौन शोषण का शिकार हुए हैं।

लैंगिक समानता आंदोलन अक्सर लड़कियों को सशक्त बनाने पर केंद्रित
साल 2019 में ‘ए रिपोर्ट फ्रॉम इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट’ की ओर से प्रकाशित दस्तावेज ‘आउट ऑफ द शैडोः शाइनिंग लाइट ऑन द रिस्पांस टू चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज एंड एक्सप्लोइटेशन’ से जानकारी मिलती है कि दुनिया के 60 देशों में से 33 देशों में बाल दुष्कर्म कानूनों में लड़कों के लिए कानूनी सुरक्षा का अभाव अभी तक मौजूद है। इसके विपरीत भारत में लड़कियों की भांति लड़कों को भी यौन शोषण से कानूनी सुरक्षा प्राप्त है।

ऐसे मुद्दों पर एक और किताब ‘एब्यूज्ड बॉयजः द नेग्लेक्टेड विक्टिम्स ऑफ सेक्सुअल एब्यूज’ भी है जिसके लेखक और मनोवैज्ञानिक मिक हंटर का कहना है कि इस समस्या को नकारने का मतलब यह नहीं है कि समस्या खत्म हो गई है। इस किताब में उत्पीड़न के शिकार लोगों के बारे में चर्चा की गई है। उन्होंने इस बात का गहन विश्लेषण किया है कि कैसे पीड़िताओं पर पुरुषत्व का दबाव उन्हें ऐसे अपराधों को सहने के लिए मानसिक रूप से मजबूर कर देता है। आमतौर पर पुरुषों की व्याख्या शोषक के रूप में की जाती है, लेकिन लोग यह मानने को तैयार नहीं हैं कि पुरुषों का भी शोषण होता है। ऐसे पूर्वाग्रह उन लोगों को प्रोत्साहित करते हैं जो बच्चों का यौन शोषण करते हैं।

लगभग 40 वर्षों तक किशोरों पर अध्ययन करने वाले न्यू हैम्पशायर विश्वविद्यालय के रॉबर्ट ब्लम कहते हैं कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि लैंगिक समानता आंदोलन अक्सर लड़कियों को सशक्त बनाने पर केंद्रित रहा है और किसी ने यह बताने की
कोशिश नहीं की कि लड़के भी भावनात्मक रूप से कभी-कभी कमजोर हो जाते हैं। समस्या यह भी है कि सशक्तिकरण का जो पाठ लड़कों को पढ़ाया जाता है उसमें दर्द की अभिव्यक्ति पुरुषत्व के विपरीत है। समाज में एक लड़के को बचपन में कमजोर होने की इजाजत नहीं है। एम्मा ब्राउन ‘हाउ टू रेज अ बॉय’ पुस्तक में लिखती हैं कि ‘लड़कों के प्रति माता-पिता, शिक्षकों और समाज का रवैया कठोर होता है। बच्चों के जन्म के साथ माताएं और विशेषकर पिता लड़कियों के प्रति अधिक भावनात्मक रूप से बात करने लगते हैं। वहीं, बेटे के साथ वह आमतौर पर ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं जो उपलब्धि पर केंद्रित होते हैं। पिता की भाषा में ऐसी विसंगतियां लड़कों पर हमेशा विजयी रहने का दबाव बनाती हैं।’ एम्मा कहती हैं, ‘यह माता-पिता बनने का गलत तरीका है। लड़कों को भी मदद की जरूरत है और वे भी पीड़ित हो सकते हैं।’

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