मिग-21 विमान भारतीय वायु सेना की शान माने जाते हैं। इन विमानों ने पाकिस्तान के खिलाफ वर्ष 1965, 1971 और 1999 के युद्धों में बड़ी भूमिका निभाई थी लेकिन पिछले कुछ समय से ये विमान लगातार हादसों का शिकार हो रहे हैं। इसे लेकर अब कई सवाल खड़े हो रहे हैं।
मिग-21 सबसे पहले इंडियन एयरफोर्स में शामिल होने वाले सुपरसोनिक जेट थे, लेकिन पिछले 50 सालों में 400 से ज्यादा दुर्घटनाएं इनके खाते में दर्ज हो चुकी हैं। पिछले 20 महीनों में मिग-21 फाइटर जेट के 6 क्रैश हो चुके हैं। इस हादसे के बाद भी इन लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल वायुसेना में होता है। लेकिन मिग-21 लड़ाकू विमानों के साथ भी ऐसे ही हादसे क्यों हो रहे हैं? और ये विमान हादसे के बाद भी वायुसेना में क्यों इस्तेमाल किए जा रहे हैं? ऐसे कई सवाल उठाए जा रहे हैं।
राजस्थान के बाड़मेर में 28 जुलाई की रात को भारतीय वायु सेना का मिग-21 बाइसन लड़ाकू विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इस हादसे में विंग कमांडर मोहित राणा और फ्लाइट लेफ्टिनेंट आदित्य शहीद हो गए। वायु सेना के दोनों प्रशिक्षु पायलट राजस्थान के उत्तरलाई एयरबेस से उड़ान प्रशिक्षण ले रहे थे। ये दोनों पायलट ट्रेनिंग के दौरान हुए प्लेन क्रैश में शहीद हो गए हैं।
मिग-21 लड़ाकू विमानों के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य
इस विमान का निर्माण 1955 के आसपास मिकोयान कंपनी ने किया। 1963 में भारतीय वायु सेना में शामिल हुए। भारत ने अपने बेड़े में कुल 874 मिग-21 विमान शामिल किए। वर्तमान में वायु सेना अपने अपग्रेडेड मिग -21 बाइसन का उपयोग करती है। भारत की हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) लाइसेंस के तहत विमान का उन्नयन करती है। हालांकि, ये विमान कई बार दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं और कई पायलटों की जान भी जा चुकी है। इस वजह से लगभग 6 दशक पुराने इन विमानों के इस्तेमाल को लेकर अक्सर सवाल उठते रहते हैं।
मिग सीरीज के फाइटर जेट्स पिछले 50 सालों से भारतीय वायुसेना की रीढ़ की हड्डी रहे हैं। 1963 से, भारतीय वायु सेना को 850 से अधिक मिग लड़ाकू विमान मिले हैं। इतना ही नहीं, इन विमानों ने 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध, फिर 1971 के युद्ध और फिर 1999 के कारगिल युद्ध में देश के लिए निर्णायक भूमिका निभाई है।
भले ही ये विमान 50 साल से अधिक पुराने हों, लेकिन अपग्रेडेड मिग-21 अभी भी आसमान में किसी भी आधुनिक विमान से मुकाबला कर सकता है। इसका सबूत पूरी दुनिया ने 2019 में देखा था, जब भारतीय वायु सेना के विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान ने पाकिस्तान की पांचवीं पीढ़ी के आधुनिक एफ-16 मिग-21 बाइसन को मार गिराया था। संक्षेप में कहें तो इस मिग सीरीज के विमान (MIG-21) की लड़ाकू क्षमता अभी भी बरकरार और नायाब है लेकिन इन विमानों का सुरक्षा रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं है। इसे कुछ आंकड़ों से समझा जा सकता है।
अब तक आधे विमान दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं
2012 तक भारत के 872 मिग के लगभग आधे बेड़े दुर्घटनाग्रस्त हो गए थे। 2003 से 2013 के बीच यानी 10 साल में 38 मिग-21 विमान क्रैश हो गए। आज से पिछले 10 सालों की बात करें तो इस दौरान 21 मिग-21 विमान भी दुर्घटनाग्रस्त हुए। गौरतलब है कि 1970 से अब तक भारतीय वायु सेना के 180 से अधिक पायलट मिग विमान उड़ाते समय अपनी जान गंवा चुके हैं। इसके अलावा इन हादसों में 40 नागरिकों की जान भी गई है। मिग सीरीज के विमानों के हादसों के पीछे पांच वजहें मानी जा रही हैं।

इन 5 कारणों से बढ़ रहे हैं हादसे
पहला कारण- मिग सीरीज के विमानों (MIG-21) की ताकत उनकी सबसे बड़ी कमजोरी है। आसमान में यह विमान 2,500 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ सकता है, जिससे यह सबसे तेज लड़ाकू विमानों में से एक बन जाता है। इसके अलावा लैंडिंग के दौरान भी मिग की गति लगभग 350 किमी प्रति घंटा है, जो बहुत अधिक है। विशेषज्ञों की राय है कि यह गति विमान को संचालित करना बहुत कठिन बना देती है और दुर्घटना की संभावना को बढ़ा देती है।
एक अन्य कारण इस सीरीज का विमान डिजाइन है। दरअसल जानकारों का कहना है कि इस विमान की छतरी आकार में काफी छोटी है। कैनोपी वास्तव में विमान का वह हिस्सा होता है जहां पायलट बैठता है और विमान को उड़ाता है। इस क्षेत्र का आकार छोटा होने के कारण कई बार कहा जाता है कि पायलट रनवे को नहीं देख पाता है। चूंकि ऐसी स्थिति में विमान की गति बहुत अधिक होती है। शायद यह कई दुर्घटनाओं का कारण भी बनता है।
तीसरा कारण इन विमानों की लंबी उम्र है। भारत को अपना पहला मिंग सीरीज विमान 1963 में प्राप्त हुआ था। लेकिन दशकों बाद भी ये विमान भारतीय वायुसेना में सेवा दे रहे हैं। कई मिग विमान (MIG-21) हैं जो सेवानिवृत्त हो चुके हैं और आज संग्रहालयों और ढाबों को सुशोभित करते हैं। ऐसा ही एक मिग-21 विमान हरियाणा के रोहतक में एक ढाबे के बाहर खड़ा है।
चौथा कारण यह है कि मिग बनाने वाले रूस ने भी 1990 के बाद से उनका उत्पादन नहीं किया है। इसलिए इन विमानों को सेवा में रखने के लिए भारत को इजरायल और अन्य देशों से अपने कलपुर्जे लेने पड़ते हैं। ऐसे में दूसरी कंपनियों के स्पेयर पार्ट्स का इस्तेमाल करने से भी दुर्घटना की संभावना बढ़ जाती है।
आखिरी वजह यह है कि मिग सीरीज के विमान सिंगल इंजन वाले फाइटर होते हैं। इसलिए जब कोई इंजन उड़ान में विफल हो जाता है, तो विमान में उसका समर्थन करने के लिए कोई अन्य इंजन नहीं होता है और इससे दुर्घटनाओं से बचना मुश्किल हो जाता है।
क्यों कहा जाता है उड़ता ताबूत ?
भारतीय वायुसेना की रीढ़ कहे जाने वाले मिग-21 को भारत ने रूस से खरीदा था। रूस में बने ये विमान हर दिन ट्रेनिंग के दौरान दुर्घटनाग्रस्त होते रहे हैं और चौंकाने वाली बात यह है कि अब तक खरीदे गए कुल 872 मिग विमानों में से आधे से ज्यादा दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं। यही वजह है कि मिग-21 को भारत में ‘उड़ता ताबूत’ कहा जाने लगा है।
भारतीय वायुसेना के लिए क्यों जरूरी है मिग-21?
हालांकि 50-60 साल पुराने मिग लड़ाकू विमान (MIG-21) आज भारतीय वायुसेना में क्यों सेवा दे रहे हैं? यह समझना भी आवश्यक है कि इसका सबसे बड़ा कारण लालफीताशाही है। दरअसल, मिग बेड़े को तेजस से बदला जाना था, जिसे भारत में विकसित किया जा रहा था। लेकिन इस विमान के विकास में कई दशकों तक देरी हुई। भारतीय वायु सेना को वर्तमान में 42 स्क्वाड्रन की आवश्यकता है। एक स्क्वाड्रन में 18 लड़ाकू विमान होते हैं। दो मोर्चों पर युद्ध का मतलब है कि अगर भारत एक ही समय में पाकिस्तान और चीन दोनों के साथ युद्ध करता है, तो उसे 42 स्क्वाड्रन की आवश्यकता होगी। यानी कम से कम 756 विमानों की जरूरत होगी। लेकिन फिर भी हम इस संख्या में पीछे हैं।
इन सभी परिस्थितियों को देखते हुए भारत ने फ्रांस से राफेल की 2 स्क्वॉड्रन फ्लाई अवे कंडीशन में खरीदी है। फ्लाई अवे कंडीशन का मतलब है कि विमान पूरी तरह से तैयार है और तुरंत इस्तेमाल किया जा सकता है।

चीन-पाकिस्तान का सामना करने के लिए भारत की तैयारी
भारत को 36 राफेल विमानों के अलावा 40 तेजस विमान भी मिलेंगे। हालांकि, इसके बावजूद भारतीय सेना के पास इस साल तक केवल 29 स्क्वाड्रन होने की उम्मीद है। तो दो मोर्चे के युद्ध के लिए 42 स्क्वाड्रन की आवश्यकता होगी। वर्तमान में भारतीय वायु सेना के पास मिग-21 विमानों के चार स्क्वाड्रन हैं। जो श्रीनगर, उत्तरलाई, सूरतगढ़ और नाल में तैनात हैं। उनका लक्ष्य अगले तीन साल में सेवानिवृत्त होने का है। इसका मतलब है कि 2025 तक सभी मिग-21 विमान वायु सेना से सेवानिवृत्त हो जाएंगे।

इसकी शुरुआत सितंबर से होगी। इस साल सितंबर में श्रीनगर एयरबेस पर तैनात मिग-21 विमान के स्क्वाड्रन को रिटायर कर दिया जाएगा। इन सभी स्क्वाड्रनों ने मिग-21 बाइसन विमान को अपग्रेड किया है। बड़ी बात यह है कि हमारे देश ने मौजूदा हादसे में अपने दो बहादुर वायुसैनिकों को खो दिया है। इनमें विंग कमांडर मोहित राणा हिमाचल प्रदेश के मंडी के रहने वाले थे। वह दिसंबर 2005 में भारतीय वायु सेना में शामिल हुए और अपने स्क्वाड्रन के फ्लाइट कमांडर भी थे। मोहित राणा काफी अनुभवी और कुशल पायलट माने जाते थे। उन्हें किसी भी तरह की अजीबोगरीब स्थिति में विमान को संभालने में माहिर माना जाता था। इसी तरह फ्लाइट लेफ्टिनेंट आदित्य बल जम्मू का निवासी था और महज 26 साल के थे।
एक पायलट को भी खोना वायुसेना के लिए दर्दनाक
किसी भी देश की वायु सेना के लिए उसके पायलट फाइटर जेट से ज्यादा कीमती होते हैं क्योंकि एक फाइटर पायलट को तैयार करने में सालों की मेहनत और करोड़ों रुपये लगते हैं। इसे अमेरिका के उदाहरण से समझा जा सकता है। अमेरिकी वायु सेना पायलटों को प्रशिक्षित करने के लिए 45 से 87 करोड़ रुपये खर्च करती है। इसी तरह, भारतीय वायु सेना में एक लड़ाकू पायलट को पहले दो वर्षों के लिए कठोर प्रशिक्षण से गुजरना पड़ता है । इसका मतलब है कि पायलटों के नुकसान का मतलब वायु सेना की ताकत का नुकसान है। इसके अलावा इस तरह के हादसों से वायुसेना के जवानों के मनोबल पर गहरा असर पड़ता है और शहीद जवानों के परिवारों की क्षति अपूरणीय है।