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ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते खतरे के बीच क्यों महत्वपूर्ण है जलवायु शिखर सम्मलेन !

जलवायु परिवर्तन का असर पूरी दुनिया में दिखने लगा है। भारत सहित दुनियाभर के देश जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान को लेकर चिंता में है। इन्हीं चिंताओं ने इस महीने की 31 अक्टूबर को होने वाले जलवायु शिखर सम्मलेन के  महत्व को बढ़ा दिया है। भारत में अत्यधिक बारिश की मार,ग्लोबल वार्मिंग और दुनिया के कई हिस्सों में अचानक मौसम बदलाव को देखते हुए इस सम्मेलन की आवश्यकता और अधिक बढ़ गई है।

यह समिट स्कॉटलैंड के शहर ग्लासगो में होने जा रहा है।  भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित दुनिया के तमाम देशों के शीर्ष नेता इस सम्मेलन में शामिल रहेंगे। दुनिया के सभी देशों द्वारा स्थिति की गंभीरता को देखते हुए सम्मेलन से पहले ही जलवायु में सुधार के लिए उचित कदम उठाने की घोषणा की गई है।

इसकी सह-मेजबानी ब्रिटेन और इटली द्वारा की जाती है। इस सम्मेलन को 2050 ग्लोबल वार्मिंग लक्ष्यों को प्राप्त करने में एक सफल कदम माना जा रहा है। आइए एक नजर डालते है कि इस सम्मेलन में क्या होगा ?

सम्मेलन में कौन शामिल होगा? 

सम्मेलन में कई देश भाग लेंगे। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण समिति के सभी सदस्य मौजूद रहेंगे। ब्रिटेन में भारतीय मूल के आलोक शर्मा परिषद की अध्यक्षता करेंगे। एक और दो नवंबर को सभी राष्ट्राध्यक्षों का सम्मेलन भी होगा।

सम्मेलन की अवधि

सम्मेलन 31 अक्टूबर से 12 नवंबर तक चलेगा। कई देशों की सरकारों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। जिन मुद्दों को आधिकारिक स्तर पर हल नहीं किया जा सकता है, उन पर जोर दिया जाएगा।

सम्मेलन के उद्देश्य क्या हैं?

इनमें से एक लक्ष्य 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को बढ़ाना है। विश्व 2025 तक शून्य उत्सर्जन के सख्त पालन पर आम सहमति तक पहुंचने की कोशिश कर रहा है। सम्मेलन में विकासशील देशों के लिए पर्यावरण के अनुकूल उपायों को लागू करने के लिए वित्त पोषण पर चर्चा करने की उम्मीद है। इसके अलावा, सम्मेलन का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होना और कार्बन ट्रेडिंग के नियमों का निर्धारण करना है।

सम्मेलन का आयोजन क्यों?

पेरिस समझौते का उद्देश्य 2050 तक कार्बन उत्सर्जन पर अंकुश लगाना और ग्लोबल वार्मिंग को दो डिग्री तक सीमित करना है। इस बीच पेरिस समझौते से अमेरिका की वापसी ने समझौते के कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न की थी। इस लक्ष्य की ओर यात्रा फिर से शुरू करने के लिए सम्मेलन का आयोजन किया गया है।

पर्यावरण संगठनों के लिए अवसर

इस सम्मेलन के अवसर पर एक अनौपचारिक पर्यावरण प्रदर्शनी होगी। इसमें विभिन्न उद्योग, सामाजिक कार्यकर्ता, बैंक, छात्र, विद्वान शामिल होंगे। यहां सेमिनार, प्रदर्शनियां और प्रदर्शन भी होने की उम्मीद है।

चुनौतियां

पर्यावरणीय उद्देश्यों को प्राप्त करने की गति अभी भी धीमी है। पेरिस समझौते पर 200 देशों ने हस्ताक्षर किए हैं। इन सभी प्रयासों में एक देश भी बाधा बन सकता है।अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपने पूर्ववर्ती डोनाल्ड ट्रंप की पर्यावरण नीति में बदलाव किया है। उन्होंने पेरिस समझौते में अपनी पुन: भागीदारी की घोषणा की है।  अन्य महत्वपूर्ण देश ब्राजील, रूस और ऑस्ट्रेलिया हैं। उनके घरेलू विकास उनके 2030 लक्ष्यों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।

 

 

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