कभी सोवियत शासन का हिस्सा रहे अज़रबैजान और आर्मेनिया में फिर से सैन्य संघर्ष शुरू हो गया है। एक सप्ताह में दोनों ओर से 200 से अधिक सैनिकों के मारे जाने के बाद भी युद्धविराम के बावजूद किसी भी क्षण युद्ध छिड़ने की आशंका है। रूस-यूक्रेन के बाद दूसरे युद्ध के बादल यूरोप पर छा गए हैं।
1920 में रूस के तत्कालीन तानाशाह जोसेफ स्टालिन ने काकेशस क्षेत्र के अधिकांश हिस्से को सोवियत नियंत्रण में ला दिया था। इसमें मुस्लिम बहुल अजरबैजान और ईसाई बहुल आर्मेनिया में शामिल थे। नागोर्नो-कराबाख प्रांत, जिस पर अर्मेनियाई लोगों का प्रभुत्व था, स्टालिन द्वारा अजरबैजान में शामिल किया गया था। 1980 के दशक में सोवियत संघ के पतन के बाद ये दोनों देश स्वतंत्र हुए। लेकिन नागोर्नो-कराबाख का घाव एक सदी बाद भी बरकरार है।
1994 के युद्ध के बाद स्थिति कैसे बिगड़ी?
हालांकि विवादित क्षेत्र पर दोनों देशों में मामूली झड़पें हुई हैं, आर्मेनिया 1988-1994 के युद्ध के दौरान अजरबैजानी सेना को क्षेत्र से बाहर निकालने में कामयाब रहा। इस युद्ध के कारण हजारों लोग मारे गए और लाखों लोग विस्थापित हुए। इसलिए यद्यपि यह क्षेत्र तकनीकी रूप से अज़रबैजान में है, यह वर्तमान में जातीय अर्मेनियाई विद्रोहियों द्वारा शासित है। वे इसे ‘नागोर्नो-कराबाख स्वायत्त प्रांत’ कहते हैं। लगभग 15 वर्षों तक तनावपूर्ण शांति रही, और 2010 के बाद, झड़पों का सिलसिला फिर शुरू हो गया। इस दौरान दोनों पक्षों के सैकड़ों सैनिक मारे गए। 10 वर्षों के बाद एक बार फिर एक बड़ा सैन्य संघर्ष छिड़ गया है।
आर्मेनिया में क्रांति के बाद विवाद क्यों भड़क उठा?
1998 में आर्मेनिया में तथाकथित ‘मखमली क्रांति’ हुई और निकोल पाशिनयान राष्ट्रपति बने। उन्होंने शुरू में घोषणा की कि वह वार्ता से हट जाएंगे। लेकिन बाद में अपनी बात बदल दी और सुझाव दिया कि विवादित हिस्सा आर्मेनिया का है। विवाद और गरमा गया और 2020 में एक बड़ा युद्ध छिड़ गया। इस युद्ध में दोनों पक्षों के करीब 6,500 सैनिक मारे गए थे। यद्यपि संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता वाले युद्ध विराम के बाद तनाव कम हो गया था।
शक्तिशाली देश अक्सर छोटे देशों के कंधे पर बंदूक रख अपनी ताकत दिखाने की कोशिश करते हैं। अजरबैजान-आर्मेनिया विवाद में ऐसी दो ताकतें हैं। अज़रबैजान को तुर्की का समर्थन प्राप्त है, जबकि रूस आर्मेनिया का समर्थन करता रहा है। बेशक, रूस दोनों के साथ अच्छे संबंधों का दावा करता है, लेकिन पुतिन आर्मेनिया को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं। बड़े राष्ट्रों के सैन्य समर्थन के कारण दोनों अक्सर एक-दूसरे के खिलाफ खड़े होते हैं।
रूस-यूक्रेन युद्ध का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं?
इसी साल मार्च के महीने में अजरबैजान की सेना ने विवादित इलाके के फारुख गांव पर कब्जा कर लिया था। यह पूरा गांव अर्मेनियाई लोगों का है। लेकिन इसके भू-रणनीतिक महत्व के कारण दोनों देश इस पर नजर बनाए हुए हैं। इसके अलावा आर्मेनिया को डर है कि अज़रबैजान यूक्रेन में रूसी सैनिकों की मौजूदगी का फायदा उठाकर और अधिक क्षेत्र पर कब्जा कर लेगा। अप्रैल में यूरोपीय संघ द्वारा नियुक्त मध्यस्थों ने स्थिति को सुलझाने की कोशिश की। लेकिन अगस्त में अजरबैजान ने नागोर्नो-कराबाख में आक्रामक कदम उठाए।
क्या यूरोप में एक और युद्ध छिड़ जाएगा?
कोरोना वायरस और छह महीने से अधिक समय से चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण दुनिया आर्थिक मंदी का सामना कर रही है। हालांकि पिछले 2-3 दिनों से आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच कोई संघर्ष नहीं हुआ है, लेकिन संभावना है कि स्थिति किसी भी समय भयावह रूप में बदल जाएगी। इसमें अजरबैजान की तरफ मुस्लिम-बहुल देशों और आर्मेनिया की तरफ ईसाई-बहुल देशों की तस्वीर है। अगर एक और युद्ध छिड़ जाता है, तो यह सभी को महंगा पड़ेगा।