दुनिया भर में कोविड -19 के कई दुष्प्रभावों में से एक कर्मचारियों की कमी भी है। कई देशों में कोविड प्रतिबंध हटने के बाद से शुरू हुआ इस्तीफों का सिलसिला अभी भी जारी है। नतीजतन, कई देशों को कर्मचारियों की कमी महसूस होने लगी है। जर्मनी में प्लंबर, अमेरिका में डाक सेवा कर्मियों और अन्य सेवा कर्मियों, ऑस्ट्रेलिया में इंजीनियरों, कनाडा के अस्पतालों में नर्सों की कमी है।
एएफपी की खबर के मुताबिक ऐसा नहीं है कि स्टाफ नहीं है लेकिन उस सेक्टर के लिए सही स्टाफ मिलना एक चुनौती रही है। जर्मनी यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है लेकिन इस साल पिछले साल की तुलना में 1,08,000 अधिक नौकरियां हैं। अमेरिका में तो हालात और भी बुरे हैं और ‘हेल्प वांटेड’ जैसे पोस्टर हर जगह रेस्तरां और अन्य व्यवसायों में देखे जा रहे हैं। जुलाई के अंत तक 1.1 करोड़ सीटें खाली हैं। इसका मतलब है कि जो व्यक्ति नौकरी चाहता है उसे एक ही समय में दो काम मिलेंगे।
रिसर्च फर्म कैपिटल इकोनॉमी के मुताबिक दुनियाभर में कर्मचारी पाना मुश्किल हो गया है। यूरोप, उत्तरी अमेरिका में स्थिति अधिक भयावह है। पूर्वी यूरोप, तुर्की, लैटिन अमेरिका में भी यही स्थिति है। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण विश्व अर्थव्यवस्था भले ही धीमी हो गई हो, लेकिन रिक्तियों को भरने के लिए कामगार नहीं मिल रहे हैं। इसके पीछे कारण बताया जाता है कि उक्त देश में युवाओं की संख्या कम है और इसलिए कार्यबल भी कम है। कोविड के कारण कई वृद्ध लोगों ने सेवानिवृत्ति की आयु तक पहुँचने से पहले ही अपनी नौकरी छोड़ दी है, जबकि कई अभी भी लंबे समय तक कोविड के प्रभाव का सामना कर रहे हैं। इसलिए ज्यादातर लोग इस्तीफा देना पसंद कर रहे हैं। दुनिया भर में नौकरियों के इस्तीफे में आये इजाफे का मैकिंजी द्वारा सर्वेक्षण किया गया है। कंपनियां वेतन वृद्धि, वर्क फ्रॉम होम, बोनस, वेकेशन जैसे कई प्रोत्साहन दिखा रही हैं लेकिन कहा जा रहा है कि कर्मचारियों का मिलना फिर भी मुश्किल हो रहा है।
बढ़ती उम्र और महामारी
जर्मनी जैसे देशों में लोगों का जल्दी बूढ़ा हो जाना भी एक समस्या के रूप में सामने आ रहा है। कोरोना काल के बाद से ये एक समस्या अब और विकराल होती जा रही है। इसके कई कारण है कुछ लोगों ने जल्दी रिटायर होने का मन बना लिया है और कुछ अब भी कोरोना काल से उपजी परेशानियों से बाहर नहीं आ पाए हैं। इसी तरह कुछ लोग कम तनखाह और आप्रवासन के चलते नौकरी नहीं कर रहे हैं।
कोरोना काल में लोग कहीं भी जाना मुश्किल हो रहा था। ऐसे में युवाओं ने इस समय का इस्तेमाल कई तरह के करियर विकल्प खोजने में किया। ग्लोबल कंसल्टेंसी फर्म मैकिंजी के विशेषज्ञ बोनी डॉलिंग का कहना है कि महामारी ने लोगों की धारणा और प्राथमिकतायें बदल दी हैं, जबकि नौकरी देने वाले उस बदलाव के साथ नहीं चल पाए हैं।