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कौन है बासिज आर्मी,जो ईरान हिजाब प्रदर्शन का बन गया दुश्मन

ईरान में हिजाब का विरोध थमने का नाम नहीं ले रहा है, बल्कि बढ़ता ही जा रहा है। 22 साल की महसा अमिनी को ईरान में 13 सितंबर को सिर्फ इसलिए गिरफ्तार कर लिया जाता है, क्योंकि उसने ठीक से हिजाब नहीं पहना था। पुलिस की हिरासत में उसकी 16 सितंबर को मौत हो जाती है। महसा के परिजन पुलिस पर हत्या का आरोप लगा रहे हैं। महसा अमिनी की मौत के बाद से पूरे ईरान में विरोध प्रदर्शन जारी है। दूसरी ओर ईरान के सुरक्षाबलों की ओर से प्रदर्शनकारियों पर सख्त रुख अपनाया जा रहा है।अब तक 200 से ज्यादा प्रदर्शनकारियों की मौत हो चुकी है।इन प्रदर्शनों के दौरान बंदूक और डंडे लिए वे बाइक सवार भी खूब चर्चा में हैं, जो लगातार महिलाओं की आवाज को दबाने की कोशिश में जुटे हैं। उन्हें बासिज के तौर पर जाना जाता है।

क्या है बासिज  ?

बासिज उन लोगों का समूह है, जो ईरान की सरकार के प्रति सबसे ज्यादा वफादार है। ये खुद को अर्धसैनिक बलों की तरह पेश करते है। पीछे दो दशकों से बासिज ईरान सरकार के खिलाफ किसी भी विरोध को खत्म करने में अहम भूमिका निभाता रहा है। अब जब ईरान महसा अमिनी की मौत को लेकर विरोध हो रहा है। तो बासिज से ही इसे खत्म करने का जिम्मा उठाया है। इसके लिए वो ईरान के हर शहर में तैनात हो गए है। प्रदर्शनकारियों पर हमला कर रहे हैं। इसके अलावा उन्हें हिरासत में ले रहे है। यही वजह है कि महसा अमिनी की मौत को लेकर विरोध प्रदर्शनों में बासिज के खिलाफ भी जमकर नारेबाजी हो रही है।

गौरतलब है कि इसकी स्थापना साल 1979 की इस्लामी क्रांति के तुरंत बाद अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी ने की थी। इसका मुख्य उद्देश्य ईरान को इस्लामीकरण करने और देश के भीतर के दुश्मनों का मुकाबला करना था। साल 1980 के दशक में ईरान-इराक युद्ध के दौरान, बासिज ने सद्दाम हुसैन की सेना के खिलाफ मोर्चा संभाला था।लेकिन धीरे धीरे बासिज ईरान की इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड के तहत आ गई। यह सुप्रीम नेता अयातुल्ला अली खामेनेई के प्रति वफादार है। ईरान के सुप्रीम नेता भी इस्लामिक गणराज्य के स्तंभ के रूप में बासिज की तारीफ करते रहे हैं। बासिज ने देशभर में अपनी ब्रांच खोल रखी है। यहां तक कि उसका छात्र संगठन, व्यापार संघ और मेडिकल फैकल्टी हैं। हालांकि, अमेरिका ने इसके व्यापार संघ पर प्रतिबंध लगा रखा है। बासिज में आर्म्ड ब्रिगेड, एंटी राइट फोर्स और जासूसों का एक बड़ा नेटवर्क शामिल है। इसके करीब 10 लाख सदस्य हैं। जबकि बासिज सुरक्षाबल में भी हजारों लोग शामिल है। इतना ही नहीं ये लोग बिना वर्दी के सामान्य नागरिकों की तरह रहते हैं। इन्हें सरकार अपना समर्थक मानती है।  इनमें से ज्यादातर को सरकार की ओर से सैलरी भी मिलती है। इस पर विशेषज्ञों का कहना है कि बासिज में इसलिए लोग शामिल होते हैं, क्योंकि उन्हें आर्थिक अवसर मिलते हैं, साथ ही यूनिवर्सिटी में एडमिशन और सार्वजनिक क्षेत्र में रोजगार भी आसानी से मिल जाता है।

इसमें शामिल होने के लिए कड़ी ट्रैनिंग ली जाती है। 45 दिन तक चलने वाली इस ट्रेनिंग में सैन्य और वैचारिक ट्रेनिंग दी जाती है। इसके बाद उन्हें सिखाया जाता है कि इस्लामी क्रांति अन्याय के खिलाफ एक ईश्वरीय संघर्ष है, जिसे असंख्य दुश्मनों से खतरा है। इस ट्रेनिंग को पूरा करने के बाद ही बासिज में कोई शामिल हो पाता है।

 

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