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क्या हैं ‘सारोंग’ क्रांति, क्यों डर रही इससे म्यांमार की सेना ?

अपने लोकतांत्रिक अधिकार और निर्वाचित को सरकार को बहाल करने की मांग को लेकर म्यांमार में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे आंदोलनकारियों पर सेना की क्रूरता जारी है। म्यांमार की जनता करीब एक महीने से सेना के चंगुल से खुद को आजाद करवाने के लिए जद्दोजहद में लगी है। लेकिन सेना के चंगुल से आजादी तो नहीं लोगों को मौत जरूर मिल रही है।

इसके खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लाखों लोकतंत्र के समर्थक हर दिन सेना से भिड़ रहे है। अब म्यांमार में बेहद ही अलग अंदाज में विरोध देखने को मिल रहा है। लोगों द्वारा पहले थ्री फिंगर सैल्यूट का ट्रेंड देखने को मिला और अब घटनाक्रम में नई बात देखने को मिल रही है। इन विरोध प्रदर्शनों में पहले से ही महिलाएं भाग ले रही थी लेकिन अब उन्होंने सैनिकों से बचने के लिए अलग और अनोखा तरीका अपनाया है। महिलाओं द्वारा सैनिकों के अन्धविश्वास का सहारा लिया गया है। जिस तरह किसी सीमा पर पुलिस द्वारा बेरिकेड लगा दिए जाते हैं। उसी तरह महिलाओं ने सारोंग नाम का कपड़ा जगह-जगह लटका दिया है।

दरअसल, सारोंग म्यांमार की महिलाओं द्वारा सीने से कमर तक पहने जाने वाला एक वस्त्र है। स्थानीय मान्यता के अनुसार, इस वस्त्र के नीचे से अगर कोई पुरुष निकल जाए तो उसका पौरुष खत्म हो जाता है और वो नपुंसक हो जाता है। म्यांमार में ये मान्यता जड़ों तक गहरी हैं। जिसके कारण सैनिक इन वस्त्रों से डर भी रहे हैं। सेना की इसी डर को महिलाएं हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रही हैं।

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वे शहरों के रिहायशी इलाकों में सारोंग को झंडियों की तरह लटका रही हैं ताकि वहां सैनिक न आए। देखा जा रहा है कि सैनिक ऐसे इलाकों में प्रवेश नहीं कर रहे हैं या तो उनको मर्दानी ताकत खत्म होने का डर लग रहा है। अगर प्रवेश कर भी रहे तो पहले इन कपड़ों को हटाते हैं। जब तक सेना कपड़े हटाती है उस दौरान प्रदर्शनकारियों को वहां से हटने का पर्याप्त समय मिल जाता है। इसे ही सारोंग क्रांति के नाम से जाना जा रहा है। इसका असर भी देखा जा रहा है।

सारोंग में म्यांमार का इतिहास काफी प्राचीनतम रहा है। छाती से लेकर कमर तक पहने जाने वाला यह कपड़ा स्थानीय लोगों में बहुत प्रचलित है। सारोंग अंग्रेजी के साथ कई भाषाओं में अपभ्रंश शब्द है, जिसका अर्थ है कवर करना। यह शब्द पहली बार 1834 में इस्तेमाल किया गया था। लगभग 1 मीटर चौड़ा और ढाई मीटर लंबा यह कपड़ा पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं ने भी पहना था, लेकिन धीरे-धीरे यह महिलाओं तक सीमित हो गया। इसे फेमिनिन   गुण माना जाने लगा और तब यह माना जाने लगा कि अगर कोई पुरुष सारंग के नीचे से निकलता है, तो उसकी ताकत खो जाती है। साथ ही इसके संपर्क में आने से पौरुष भी खत्म हो जाता है। सारोंग को सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है।

इसी अंधविश्वास को अब बर्मीज महिलाएं सेना के खिलाफ हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है। यह पूरे म्यांमार में इतना तेजी से फैल चुका है कि इसे अब इसे सारोंग क्रांति कहा जा रहा है।

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