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क्या है प्राइड मंथ ….

समाज में एक ऐसा वर्ग है जिसे उपेक्षित माना जाता रहा है। समलैंगिक समुदाय के लोगों को हमेशा से ही शक और हेय दृष्टि से देखा गया है। मौजूदा समय में ये लोग अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करते हुए सर्वोच्च न्यायालय से मांग कर रहे हैं । इसी बीच उन्होंने अपने अधिकारों के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए इस महीने प्राइड मंथ भी मनाया है। हर साल जून महीने में समलैंगिक समुदाय द्वारा प्राइड परेड आयोजित की जाती है । इस पूरे महीने को ये समुदाय एक फेस्टिवल की तरह सेलिब्रेट करता है। प्राइड मंथ के दौरान देश के अलग अलग हिस्सों से परेड निकाली जाती है। ताकि एलजीबीटीक्यू समुदाय के प्रति फैले अंतर् को कम किया जा सके। इस प्राइड मंथ से न केवल एलजीबीटीक्यू सदस्य जुड़ते हैं ,बल्कि आम लोग भी बढ़ चढ़ कर  एलजीबीटीक्यू  समुदाय का समर्थन देने के लिए जुड़ते हैं। प्राइड मंथ के दौरान देश भर के कई राज्यों में कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। जिसमें लाखों लोग शामिल होते हैं। यह प्राइड मंथ 1 जून से लेकर 30 जून तक चलता है। इस मौके पर एलजीबीटीक्यू समुदाय के लोग अपने अस्तित्व को समाज में बराबरी का हिस्सा दिलाने के मकसद से अलग-अलग जगहों पर रेंबो फ्लैग के साथ परेड निकालते हैं।  द वायर के मुताबिक इस महीने की पहली तारीख को डीयू के विद्यार्थियों ने एक मार्च निकाला, जिसका मक़सद एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के अधिकारों और संघर्षों पर बात करना और साथ ही समाज में उनके बारे में जागरूकता फैलाना था।

देश में कब से मनाया गया प्राइड मंथ

 

देश में वर्ष 1999 में पहली बार प्राइड मंथ कोलकाता में मनाया गया था।  उस समय इसे द फ्रेंडशिप वॉक के नाम से जाना जाता था । गौरतलब है कि मुंबई , चंडीगढ़ ,  बेंगलुरु , चेन्नई ,दिल्ली और कोलकाता के अलावा कई शहरों में समलैंगिक  समुदाय परेड निकालता है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मुंबई में तो यह समुदाय पैनल डिस्कशन, मूवी स्क्रीनिंग, सांस्कृतिक प्रदर्शन और जागरूकता अभियान जैसी कई गतिविधियों को आयोजित करता है।

वहीं  तमिलनाडु के चेन्नई में रेनबो संगठन है, जो तमिलनाडु समलैंगिक  समुदाय सदस्यों द्वारा बनाया गया है। यह रेनबो समूह हर साल जून के महीने में चेन्नई में प्राइड परेड निकालती है। चेन्नई में प्राइड परेड का आयोजन जून के अंतिम सप्ताह के रविवार के दिन तक किया जाता है। गौरतलब है कि साल 2009 में पहली बार चेन्नई में प्राइड परेड मनाई गई थी।

इसके अलावा राजधानी दिल्ली में भी इस दौरान कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। साल 2008 में पहली बार जब दिल्ली की सड़कों पर प्राइड परेड निकाली गई थी, तब इस परेड में बहुत कम लोग ही शामिल हुए थे ,जो कि उस समय यह परेड बाराखंभा रोड से जंतर-मंतर के बीच निकाली गई थी। वहीं साल 2017 में प्राइड मार्च के दौरान करीब 17000 प्रतिभागी शामिल हुए थे। इस साल भी दिल्ली के बाराखंभा रोड से ये परेड निकाली गई थी।

अमेरिका में प्राइड पार्टी की आलोचना

 

यह प्राइड मंथ केवल भारत में ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय फलक पर इसका सेलिब्रेशन होता  है। लंडन , कनाडा , भारत , थाईलैंड ,अमेरिका में ये व्यापक स्तर पर मनाया जाता है। प्राइड मंथ के दौरान अमेरिका में रंगारंग कार्यक्रम होते हैं, लोग सड़कों पर निकलते हैं। कार्निवाल लगते हैं। इन इवेंट्स में मौज-मस्ती से लेकर LGBTQ+ को लेकर जागरूकता फैलाने पर जोर होता है। इस प्राइड मंथ के दौरान परेड में फ्लैग के रंगों में रंगे कम्‍युनिटी मेम्‍बर्स शान से निकलते हैं। इस दौरान सतरंगी झंडे लेकर समलैंगिक लोग अलग-अलग जगहों पर परेड निकालते हैं और समाज में अपने लिए बराबरी की मांग करते हैं। हाल ही में न्यूयॉर्क के वाशिंगटन स्क्वायर पार्क में आयोजित की गई प्राइड परेड की आलोचना की गई।  दरअसल प्राइड पार्टी सेलिब्रेट करते हुए महिलाएं अर्धनग्न अवस्था में नाचते-गाते दिखाई दीं। यह सब बच्चों के सामने हो रहा था। जिसे लेकर लोग सोशल मीडिया पर कड़ी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। लोगों का कहना है कि बच्चों के सामने ऐसी हरकतें करने से उनकी मानसिक स्थिति पर प्रभाव पड़ सकता है।

प्राइड मंथ का इतिहास

 

 

गौरतलब है कि हर साल होने वाली इस प्राइड मंथ की  शुरुआत अमेरिका के न्यूयॉर्क से हुई। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने साल 2000 में पहली बार ‘प्राइड मंथ’ की आधिकारिक घोषणा की थी। लेकिन इसका इतिहास पचास सालों से भी पुरानी है। गौरतलब है कि 1969 में  जब जून महीने में मैनहट्टन के स्‍टोनवॉल इन में पुलिस ने समलैंगिक समुदाय के लोगों पर छापेमारी शुरू कर दी। कई ‘बार’ में घुस कर पुलिस ने समलैंगिक समुदाय के सदस्यों के साथ मारपीट की। समलैंगिकों को गिरफ्तार कर उन्हें जेल में डाल दिया गया। उस समय तक, समलैंगिकों को कानूनी अधिकार नहीं मिले हुए थे। समलैंगिकों ने पुलिस के अत्‍याचारों का प्रतिकार किया। यह पलटवार एक प्रतीक बन गया जो अगले साल बड़े आंदोलन के रूप में सामने आया। 28 जून, 1969 के उसी हिंसक दिन की याद में ही हर साल जून में यह प्राइड मंथ मनाया जाता है। यह एक तरह से LGBTQ+ समुदाय के उन लोगों की याद का महीना होता है जिन्हें हेट क्राइम या एचआईवी /एड्स के चलते खो दिया गया हो । पहला प्राइड मार्च स्‍टोनवॉल की घटना के ठीक एक साल बाद, न्यूयॉर्क सिटी में 28 जून, 1970 को हुआ था।

LGBTQ समुदाय के झंडे का अर्थ

 

प्राइड मंथ के दौरान LGBTQ समुदाय ज्यादातर इवेंट्स कराते हैं।आपने अक्‍सर एक रंगीन झंडे को इनके समारोह में देखा होगा। यह झंडा गिल्बर्ट बेकर ने डिजाइन किया था। वह गे राइट्स ऐक्टिविस्‍ट और आर्टिस्‍ट थे। दरअसल इस समुदाय की ये डिमांड थी कि उनका एक झंडा हो। बेकर इस बात से  सहमत थे, उनका मानना था कि झंडा क्रांति का प्रतीक होता है। बेकर के अनुसार, अपने एक दोस्‍त के साथ डांस करते हुए उन्‍हें ऐसा झंडा बनाने का खयाल आया था। फ्लैग का हर रंग किसी न किसी चीज को जाहिर करता है। जैसे गुलाबी (सैक्स ), लाल (जिंदगी) नारंगी (इलाज के लिए ) पीला (सूरज की रौशनी ) हरा (प्रकृति ) फिरोजी (जादू /आर्ट ) नीला ( शांति ) बैंगनी (व्यक्ति की आत्मा का प्रतीक  )

 

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