इस दौर में इंटरनेट का इस्तेमाल विश्व के हर कोने में हो रहा है। इंटरनेट के जरिए भी एक तरह से विश्व के सभी देश एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। इंटरनेट का सबसे आसान और सुलभ तरीका है मोबाइल डाटा सर्विस या वाईफाई से अपने डिवाइस को कनेक्ट कर लेना। सब खुली किताब की तरह है मतलब आप कोई भी वाईफाई कनेक्ट कर लें, कहीं भी कनेक्ट हो जाओ। लेकिन इन तरीको से हमेशा ऑनलाइन सिक्योरिटी और यूजर की प्राइवेसी दांव में लगी रहती है।
ऐसे में हैकर्स अपने काम को आसानी से अंजाम दे पाते हैं। मीडिया में हैकिंग की खबरें आए दिन आती रहती हैं। आम लोग तो इंटरनेट इस्तेमाल कर लेते हैं लेकिन उन संस्थानों और लोगों का क्या जिनके लिए इंटरनेट सिक्योरिटी ही सब कुछ है। इसी दिक्कत से बचने का उपाय है वीपीएन यानी वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क। जिसको लेकर सरकार और वीपीएन कंपनियों के बीच रार हो रही है।
दरअसल वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (VPN) सर्विस देने वाली सभी कंपनियों को सरकार की ओर से तय नए नियमों के तहत भारत में कम से कम पांच साल के लिए यूजर डेटा स्टोर करना अनिवार्य होगा। नए नियम लाने के पक्ष में सरकार की ओर से कहा गया है कि साइबर सिक्योरिटी को देखते हुए ऐसा करना आवश्यक होता जा रहा है।
लेकिन इसके उलट वीपीएन कंपनियों का कहना है कि से जुड़ी जरूरतों को देखते हुए ऐसा करना जरूरी है। भारत में वीपीएन सर्विस उपलब्ध कराने वाली कंपनियां इन नियमों से चिंतित हैं उनका कहना है कि अगर भारत इन नियमों को लागू करता है तो भारत में कंपनियां काम नहीं कर पाएंगी। ये नियम इसी माह की 27 तारीख से लागू होंगे और इससे पहले ही वीपीएन कंपनी एक्सप्रेस वीपीएन ने भारत छोड़ने की घोषणा कर दी है।
क्या VPN है?
वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क वास्तव में उपयोगकर्ता की ऑनलाइन पहचान छुपाता है। यह उपयोगकर्ता को एक अस्थायी या छाया आईपी पता देता है। इससे यूजर के डेटा और लोकेशन को ट्रैक करने वालों के हाथ यूजर तक नहीं पहुंच पाते हैं। एक वीपीएन आपके डिवाइस और इंटरनेट के बीच एक सुरक्षित और एन्क्रिप्टेड कनेक्शन बनाता है। यह आपके डेटा और संचार को सुरक्षित रखता है। ऐसे में किसी तीसरे पक्ष के लिए आपकी गतिविधियों को ट्रैक करना या आपके डेटा पर हाथ साफ करना संभव नहीं है।
VPN कैसे काम करता है ?
जब आप बिना वीपीएन के इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं, तो आपका डेटा इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर के पास चला जाता है। अगर आप वीपीएन का इस्तेमाल कर रहे हैं तो यह आपके ट्रैफिक को वीपीएन सर्वर के जरिए भेजता है। इसके कारण, इंटरनेट पर आपका डेटा वीपीएन सर्वर के माध्यम से एक्सेस किया जाता है न कि आपके फोन या लैपटॉप से। इस तरह, वीपीएन निजीकरण करता है, आपके इंटरनेट प्रोटोकॉल (आईपी) पते को छुपाता है। इसलिए हैकर्स हों, सरकार हों या कोई और, किसी के लिए भी आपकी ऑनलाइन गतिविधि पर नजर रखना संभव नहीं है।
कंपनियां आमतौर पर अपने कर्मचारियों के लिए वीपीएन का उपयोग करती हैं जो अपने कार्य प्रणालियों में दूरस्थ रूप से लॉग इन करते हैं। यदि किसी क्षेत्र में कोई सामग्री प्रतिबंधित है, तो आप उस सामग्री को वीपीएन के माध्यम से भी एक्सेस कर सकते हैं। कई स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म हर देश में उपलब्ध नहीं हैं, फिर भी उन्हें वीपीएन के जरिए एक्सेस किया जा सकता है। जब सरकारें उपयोगी एप्लिकेशन को ब्लॉक करती हैं तो लोग आमतौर पर वीपीएन का सहारा लेते हैं।
नए नियमों से क्या असर पड़ेगा?
सरकार द्वारा बनाए गए नियम वीपीएन सेवाएं प्रदान करने वाली कंपनियों के अलावा क्लाउड सेवा प्रदाताओं, डेटा केंद्रों और क्रिप्टो एक्सचेंजों पर भी लागू होंगे। नियम में कहा गया है कि कंपनियों को यूजरनेम, आईपी एड्रेस और यूसेज पैटर्न समेत ढेर सारी जानकारियां स्टोर करनी होंगी। इतना ही नहीं यूजर या कस्टमर भले ही अपना अकाउंट डिलीट कर दें या सब्सक्रिप्शन कैंसिल कर दें, कंपनियों को अपना डेटा स्टोर करना होगा ताकि जरूरत पड़ने पर उसकी जांच की जा सके।
दिशानिर्देशों के अनुसार, वीपीएन कंपनियों को अपने ग्राहक को जानिए नीति के तहत ग्राहक के वैध नाम सहित कई जानकारी स्टोर करनी होती है। इसके तहत यूजर को आवंटित आईपी एड्रेस के अलावा यह भी जानकारी स्टोर करनी होगी कि यह सेवाएं कितने समय और किस उद्देश्य से ली गई हैं। एड्रेस, ईमेल आईडी और कॉन्टैक्ट नंबर जैसी कई निजी जानकारी एकत्रित करनी होगी।
आज के समय में देश में बैंकिंग फ्रॉड के काफी मामले सामने आ रहे हैं। सरकार द्वारा उठाए गए कदम साइबर अपराधियों पर नकेल कसने में मदद कर सकते हैं। जालसाजों के लिए अपनी ऑनलाइन पहचान छिपाना आसान नहीं होगा। इससे मनी लॉन्ड्रिंग पर काफी हद तक अंकुश लगाया जा सकता है।
यह भी पढ़ें : अब भारत में भी बैन होगा VPN !, जानें पूरा मामला
जहां तक यूजर्स की प्राइवेसी की बात है तो वीपीएन लीगल रहेगा, लेकिन अब यह कुछ नियमों के तहत आएगा। वीपीएन का इस्तेमाल करने वालों पर नजर रखी जा सकती है। उपयोगकर्ता निगरानी से बचने में सक्षम नहीं होगा, भले ही वह वैध जरूरतों के लिए वीपीएन और क्लाउड स्टोरेज सुविधा का उपयोग कर रहा हो। एक और खतरा है। कई टेक्नोलॉजी कंपनियों में डेटा लीक के मामले सामने आते रहते हैं. ऐसे में सवाल ये है कि वीपीएन सर्विस मुहैया कराने वाली कंपनियों के पास यूजर डेटा कितना सुरक्षित रहेगा।
उपयोगकर्ताओं को अधिक कठोर केवाईसी सत्यापन प्रक्रिया से भी गुजरना पड़ सकता है। उन्हें यह भी बताना होगा कि वे किस मकसद से वीपीएन या क्लाउड स्टोरेज सर्विस ले रहे हैं। वीपीएन कंपनियों की लागत नियमों का पालन करने में बढ़ सकती है, इसलिए वे सेवा दर बढ़ा सकते हैं।
विवाद क्यों है?
भारत सरकार वीपीएन सर्विस देने वाली कंपनियों से चाहती हैं कि वह यूजर के बारे में सभी जानकारियां न्यूनतम 5 साल तक स्टोर करें और जब सरकार द्वारा मांगी जाएं तो उपलब्ध कराई जाएं। वीपीएन सर्विस देने वालों का मानना है कि यह यूजर की प्राइवेसी पर अटैक है। यूजर डेटा स्टोर करना तो वीपीएन यूज करने के बेसिक आइडिया के ही खिलाफ है इसलिए एक्सप्रेस वीपीएन की ओर से भारत से अपने वीपीएन सर्वर हटाने का निर्णय लिया है।
वीपीएन आमतौर पर भारत में बड़ी कंपनियों, वकीलों, कार्यकर्ताओं, सुरक्षा शोधकर्ताओं, साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों और पत्रकारों द्वारा उपयोग किया जाता है। एटलस वीपीएन द्वारा बनाए गए वीपीएन एडॉप्शन इंडेक्स के अनुसार, वर्ष 2021 में भारत में 270 मिलियन से अधिक वीपीएन उपयोगकर्ता थे। वर्ष 2020 में देश में साढ़े तीन प्रतिशत से भी कम स्मार्टफोन उपयोगकर्ता वीपीएन का उपयोग कर रहे थे, लेकिन 2021 की पहली छमाही में यह आंकड़ा बढ़कर साढ़े 25 फीसदी के करीब पहुंच गया है। ग्लोबल वीपीएन यूसेज रिपोर्ट 2020 के अनुसार, भारत वीपीएन के लिए दूसरा सबसे बड़ा बाजार बन गया है और 45 प्रतिशत इंटरनेट का उपयोग वीपीएन के माध्यम से किया जा रहा है।