कोरोना ने पूरी दुनिया में हड़कंप मचाया हुआ है। महामारी की वजह से लाखों लोग बेरोजगार हो गए। अब इसकी वैक्सीन को लेकर भी बवाल खड़ा हो गया है। कई देशो्ं ने कोरोना वैक्सीन बनाने का दावा किया और अपने-अपने देशों में लोगों को वैक्सीन दी जाने लगी है। लेकिन अब वैक्सीन पर धार्मिक रंग चढ़ता नजर आ रहा है। दुनियाभर के मुस्लिम धर्मगुरूओं में इसको लेकर बहस शुरू हो गई है कि इसमें सूअर के मांस का उपयोग किया जा रहा है। अब इसे धर्म के आधार पर जायज होने या न होने को लेकर चर्चा हो रही है।
ऐसे में जहां पूरी दुनिया को जिस वैक्सीन का इंतजार इतने लंबे समय से था, जहां इसके टीकाकरण की तैयारियां हो रही हैं। वहीं मुस्लिम धर्मगुरूओं की इस चर्चा से दुनियाभर में टीकाकरण अभियान बाधित होने की पूरी आशंका जताई जा रही है। दरअसल टीका भंडारण और ढुलाई के दौरान उनकी सुरक्षा और प्रभाव को बनाए रखने के लिए सूअर के मांस से बने जिलेटिन का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है। पंरतु कुछ कंपनियों ने बिना सूअर के मांस को प्रयोग किए बिना टीका विकसित करने पर सफलता पाई है।
अमरीकी दवा कंपनी फाइजर और मॉडर्ना ने कहा है कि उनके दवारा तैयार की गई वैक्सीन में सूअर के मांस से बने उत्पादों का इस्तेमाल नहीं किया गया। अमेरिका के अलावा स्विजरलैंड की दवा कंपनी नोवारटिस ने सूअर के मांस का उपयोग किए बिना मैनिंजाइटिस टीका तैयार किया था, वही सऊदी अरब और मलेशिया स्थित कंपनी एजे फार्मा ऐसा टीका करने का प्रयास कर रही है। मुस्लिम समुदाय के लोगों में इस बात को लेकर असमंजस बना हुआ है कि वह कोरोना का टीका लगवाएं जा नहीं। खासकर इंडोनेशिया में यह चिंता का विषय बना हुआ है।
इस्लामिक मेडिकल एसोसिएशन के महासचिव सलमान वकार का कहना है कि आर्थैडॉक्स यहूदियों और मुसलमानों समेत विभिन्न समुदायों के बीच टीके के इस्तेमाल को लेकर असमंजस की स्थिति है। जो सूअर के मांस से बनें उत्पादों के इस्तेमाल को धार्मिक रूप से अपवित्र मानते है। वकाल के अलावा इजरायल के रब्बानी संगठन जोहर के अध्यक्ष रब्बी डेविड स्टेव ने कहा कि यहूदी कानूनों के अनुसार सूअर का मांस खाना या इस्तेमाल करना तभी जायज है जब इसके बिना काम न चले।