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ईरान को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भीतर की कटुता खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। दुनिया के दो देशों ईरान और दक्षिण कोरिया से वह खार खाए बैठे हैं। इसे इस तरह भी कहा जा सकता है कि यह दोनों देश लगातार अमेरिकी दादागिरी को चुनौती देते रहे हैं। अमेरिकी सत्ता के आगे झुकना इन दोंनों देशों को गंवारा नहीं। नतीजतन अमेरिका की तरफ से मिलने वाली धमकियों का सिलसिला बदस्तूर जारी है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर से ईरान को रडार पर लिया है। उन्होंने दुनिया के देशों पर यह दबाव बनाया है कि वह व्यापार के मामले में ईरान से दूरी बना लें। टं्रप ने दो टूक कहा है- जो ईरान से व्यापार करेगा, वह हमसे व्यापार नहीं कर पाएगा। ट्रंप ने कहा कि ईरान पर आधिकारिक रूप से प्रतिबंध लगा दिया गया है। यह अब तक का सबसे बड़ा प्रतिबंध है। नवंबर महीने में यह पाबंदी और बढ़ेगी। ऐसे में जो ईरान के साथ संबंध जारी रखना चाहते हैं वो अमेरिका के साथ अपने संबंधों को आगे नहीं बढ़ा पायेंगे। मैं ऐसा दुनिया में शांति के लिए कर रहा हूं। इससे कम कुछ भी नहीं।

असल में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ईरान के साथ एक परमाणु समझौता किया था। इस समझौते के अनुसार ईरान को अपना परमाणु कार्यक्रम सीमित करना था और उसके बदले अपने तेलों को निर्यात करना था। ओबामा के बाद ट्रंप आते हैं। इस समझौते पर तलवार लटक गयी। क्योंकि टं्रप ने इस समझौते की अपने चुनावी अभियान में काफी आलोचना की थी। लोगों का अंदेशा सही साबित हुआ। राष्ट्रपति बनने के बाद से ही टं्रप ने ईरान पर निरंतर दबाव बनाना शुरू किया। खास बात यह कि ओबामा के शासनकाल में हुए समझौते का इजराइल और अरब देश भी विरोध कर रहे हैं।

चुनावी अभियान में जनता से किए गए अपने वादों को निभाते हुए राष्ट्रपति टं्रप ने उस समझौते को रद्द कर दिया। समझौते के खत्म होते ही ईरान पर फिर से आर्थिक प्रतिबंध लागू हो गया। हालांकि यूरोपीय देश टं्रप के निर्णय से सहमत नहीं थे। लेकिन अपने जिद्दी स्वभाव के लिए जाने जाने वाले टं्रप ईरान को लेकर जरा भी नरम नहीं हुए।

 

अमेरिकी राष्ट्रपति टं्रप की इस चेतावनी से भारत के लिए मुसीबत खड़ी हो गई है। भारत के पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने हाल ही में कहा था कि भारत सबसे ज्यादा ईरान से पेट्रोल आयात करता है। ट्रंप की चेतावनी के बाद भारत को ईरान से संबंध तोड़ने होंगे। अमेरिका और ईरान में से किसी एक के चयन करने की स्थिति में भारत को अमेरिका का ही चुनाव करना होगा। ऐसे में भारत में पेट्रोलियम पदार्थों के आयात में कमी हो सकती है। अमेरिका चेतावनी के बाद ईरान से तेल आयात करना भारत के लिए आसान नहीं होगा। वैसे भी ईरान भारत को तेल देने के साथ-साथ कई अलग सुविधाएं भी देता है। कुल मिलाकर यह अमेरिका की दादागिरी है। जो भी उसके खिलाफ सिर उठाएगा, उसका सिर कुचलने की उसकी पुरानी नीति है। टं्रप की यह नई चेतावनी दुनिया से ईरान को अलग-थलग करने की चाल हैं, ताकि घबराकर ईरान
अमेरिकी सत्ता के आगे झुककर उसकी हर शर्त मान ले।

ईरान पहले भी आर्थिक प्रतिबंध झेल चुका है। इसके कारण उसे आर्थिक संकट से भी दो चार होना पड़ रहा है। वहां मुद्रा का आलम यह है कि एक डालर के बदले 90 हजार रियाल तक देने पड़े? ईरान की मुद्रा रियाल बुरी तरह त्रस्त हो गयी है। ईरान मुश्किल हालात से गुजर रहा है। वहां के अर्थशास्त्रियों ने भी आगाह किया कि अगर वहां के राष्ट्रपति रूहानी ने कोई ठोस और कारगर कदम नहीं उठाया तो आने वाले दिनों में हालात हाथ से निकल जाएंगे।

पहले से ही संकटग्रस्ट ईरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ताजा फैसले से और मुश्किल में फंस जाएगा। कारण कि आज की तारीख में अमेरिका को नजरअंदाज करना दुनिया के किसी भी देश के लिए मुमकिन नहीं दिखाई देता है। जाहिर है दुनिया के अधिकतर देश अमेरिका का साथ देने के लिए ईरान का साथ छोड़ देगे। नतीजतन ईरान की आर्थिक स्थिति भायावहता के दायरे में दाखिल हो जाएगी।

टं्रप का धमकीनुमा फैसला आने के बाद सरकारी चैनल के साथ बातचीत में ईरानी राष्ट्रपति रूहानी ने कहा है-‘अब आप दुश्मन हैं और दूसरे व्यक्ति पर चाकू से वार कर रहे हैं। जब आप कहते हैं कि बातचीत करना चाहते हैं। ऐसा करना है तो पहले चाकू हटाना पड़ेगा। यहां चकू का आशय आर्थिक प्रतिबंध से है। कहना न होगा कि ईरानी राष्ट्रपति टं्रप के फैसले के बाद बहुत गुस्से में है जो लाजिमी है। फिर भी ईरान की इस बात के लिए तारीफ करनी होगी कि वह अमेरिकी दादागिरी के सामने तन कर खड़ा होने की जुर्रत तो करता है।

लब्बोलुआब यह कि अगर हम पिछला इतिहास देखें तो हमेशा ही अमेरिका कुछ देशों को निशाने पर लिए रहता है। वियतनाम, अफगानिस्तान, इराक से लेकर दक्षिण कोरिया, ईरान तक एक लंबी फेहरिस्त है। यह इसलिए भी है कि इनकी सजा को देखकर दुनिया के बाकी देशों में दहशत का भाव महफूज रहे और वह अमेरिकी वर्चस्व के आगे सिर उठाने की हिमाकत न कर सकें। हाल ही में हम अफगानिस्तान और ईराक का अंजाम देख चुके हैं- देखें ईरान और दक्षिण कोरिया का क्या हश्र होता है।

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