अमेरिकी प्रतिबंधों ने ईरान की कमर तोड़ डाली है। देश की अर्थव्यवस्था बुरी तरह चरमरा गई है। इसके बावजूद ईरान की जनता अमेरिकी दादागिरी के आगे झुकने को कदापि तैयार नहीं है। यह स्थिति खाड़ी में युद्ध की आशंकाओं को बढ़ा रही है
ईरान को झुकाने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जो जिद पकड़ी है उसके चलते खाड़ी में तनाव बढ़ता जा रहा है। दुनिया के कई मुल्क आशंकित हैं कि जिस तरह वर्ष 1991 में अमेरिका ने बहुराष्ट्रीय सेना के साथ ईराक के तत्कालीन राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को झुकाना चाहा, कहीं वही रवैया वह इस बार भी न अख्तियार कर ले। सद्दाम हुसैन की तरह ईरान के राष्ट्रपति हसनी रुहानी भी अमेरिका के आगे झुकने को तैयार नहीं है।
करीब तीन दशक पहले यानी 1991 में ईराक के खिलाफ अमेरिका के नेतृत्व में 38 देशों की फौजें खड़ी हो गई थीं। उसके बाद से ईराक के हालात सुधरे नहीं, बल्कि किसी न किसी वजह से बिगड़े ही हैं। अब एक बार फिर दूसरे युद्ध का ढांचा तैयार किया जा रहा है। पिछले युद्ध में जहां जॉर्ज बुश ने अमेरिकी फौजों को ईराक के विरुद्ध खड़ा किया था, अब ट्रंप अमेरिकी फौजों को ईरान के खिलाफ खड़ा कर रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जैसे युद्ध की तैयारी शुरू कर दी है। ईरानी जलक्षेत्र के आस-पास अमेरिकी एयरक्राफ्ट कैरियर आ गया है और खबर है कि अमेरिकी राष्ट्रपति के पास ईरान के खिलाफ 1 लाख 20 हजार सैनिकों को तैनात करने का प्लान भी आ गया है।
खाड़ी में युद्ध के बादल मंडराने की आशंकाओं के साथ ही अमेरिका की रणनीति आर्थिक रूप से ईरान की कमर तोड़ देने की है। ईराक, वेनेजुएला की तरह ही अमेरिका अपनी दादागिरी से ईरान को खत्म कर देना चाहता है। इस बीच ईरान पर उसने जो प्रतिबंध लगाए हैं उनके चलते खाड़ी के इस देश की अर्थव्यवस्था इतनी चरमरा गई है कि यहां लोगों को पेट भरने और पीने के पानी के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है। खबरों के मुताबिक हालात यह हैं कि देश में 25000 की एक रोटी बिक रही है। अर्थव्यवस्था के मामले में ईरान की स्थिति भी वेनेजुएला जैसी होने को है। बस अंतर इतना है कि लोग अमेरिका की दादागिरी के सामने झुकने को तैयार नहीं हैं। अमेरिका के खिलाफ एकजुट हैं। सरकार भी देशवासियों को राहत पहुंचाने के लिए हर संभव मदद कर रही है।
सर्वविदित है कि अकूत तेल भंडार वाले देश ईरान की कुल राष्ट्रीय आय का आधा हिस्सा कच्चे तेल के निर्यात से हुआ करता था। अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से ईरान की तेल निर्यात से होने वाली आय लगभग बंद हो चुकी है। अपने परमाणु कार्यक्रमों की वजह से ईरान को लगभग 40 साल से कई तरह के अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है।
दरअसल, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले राष्ट्रपति चुनाव के दौरान अपने देशवासियों से वादा किया था कि वे ओबामा प्रशासन के दौरान हुए परमाणु समझौते को तोड़कर ईरान को नए समझौते के लिए मजबूर कर देंगे। उनका तर्क था कि समझौते में ईरान को बहुत ज्यादा सहूलियत दी गई है जो सही नहीं है। चुनावी वादा पूरा करने के चक्कर में ट्रंप ईरान को झुकाने की जिद पाले हुए हैं। इसके चलते बीते एक महीने के दौरान अमेरिका और ईरान के बीच तनाव काफी बढ़ गया है। 12 जून 2019 को अमेरिकी ड्रोन को मार गिराने के बाद इरान पर प्रतिबंध और कड़े कर दिए गए हैं। दरअसल, अमेरिका नहीं चाहता है कि ईरान परमाणु शक्ति बने। अमेरिका के अनुसार ईराक का परमाणु शक्ति बनना पूरी दुनिया के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकता है। राष्ट्रपति ट्रंप ने ईरान को आगाह करते हुए कहा कि वह ‘आग से खेल रहा है।’
गौरतलब है कि ईरान ने कहा कि उसने अमेरिका के परमाणु समझौते में तय सीमा से ज्यादा मात्रा में यूरेनियम का संवर्धन कर लिया है। अमेरिका द्वारा अत्याधिक दबाव बनाने के चलते यह समझौता खत्म होने की कगार पर पहुंच गया है। व्हाइट हाउस में ट्रंप ने ईरान को आगाह करते हुए कहा, ‘उन्हें पता है वह क्या कर रहे हैं। उन्हें पता है वह किसके साथ खेल रहे हैं और मुझे लगता है वह आग के साथ खेल रहे हैं।’ ब्रिटेन ने भी तेहरान को ‘आगे किसी भी कदम से बचने के लिए कहा है। ईरान के विदेश मंत्री मोहम्मद जवाद जरीफ ने कहा कि ईरान ने मई में घोषित अपनी योजना के आधार पर 300 किलोग्राम की सीमा पार कर ली है। साथ ही उसने यह भी कहा कि वह इस कदम को वापस भी ले सकता है।
अमेरिका ने पिछले साल परमाणु समझौते से खुद को अलग कर लिया था और ईरान के महत्वपूर्ण तेल निर्यात तथा वित्तीय लेन-देन और अन्य क्षेत्रों पर सख्त प्रतिबंध राष्ट्रपति ट्रंप ने ईरान पर लगा दिए। ईरान समझौते को बचाने के लिए इसके अन्य साझेदारों पर दबाव बढ़ाने की कोशिश के तहत आठ मई को घोषणा की थी कि वह संवर्धित यूरेनियम और भारी जल भंडार पर लगाई गई सीमा को अब नहीं मानेगा। साथ ही धमकी दी थी कि वह अन्य परमाणु प्रतिबद्धताओं को भी नहीं मानेगा, जब तक कि समझौते के शेष साझेदार-ब्रिटेन, चीन, फ्रांस, जर्मनी और रूस इन प्रतिबंधों से उसे छुटकारा नहीं दिलाते, खासकर तेल की बिक्री पर लगे प्रतिबंध से। ईरान ने अपनी मंशा मई में ‘बहुत स्पष्ट’ तौर पर जाहिर कर दी थी। अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) ने पुष्टि की कि ईराक ने वह सीमा लांघ दी है जो समझौते ने उसके कम संवर्धित यूरेनियम के भंडार पर लगाई थी।
अमेरिका के कड़े प्रतिबंध लगाए जाने से ईरान की तेल निर्यात से होने वाली आय लगभग बंद हो चुकी है। देश की अर्थव्यवस्था सबसे खराब दौर से गुजर रही है। इसका असर आम लोगों और उनकी दैनिक जरूरतों पर भी रहा है। महंगाई चरम पर है। एक रोटी जो साल भर पहले तक 1000 ईरानी रियाल (1.64 रुपए) में मिलती थी, आज उसकी कीमत 25000 ईरानी रियाल (40.91 रुपए) हो गई है। इसी तरह खाने पीने की अन्य चीजें भी कम से कम तीन से चार गुना तक महंगी हो चुकी हैं।
उल्लेखनीय है कि 1998 में जब भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया था तो उसे भी आर्थिक प्रतिबंध झेलने पड़े थे। ईरान से पहले अमेरिका, भारत के भी परमाणु शक्ति बनने के खिलाफ था। लेटिन अमेरिकी देश वेनेजुएला का आर्थिक संकट भी अमेरिका की ही वजह से है। वेनेजुएला दुनिया में कच्चे तेल का सबसे बड़ा उत्पादक है। कभी दुनिया का सबसे खुशहाल रहा ये देश भी अमेरिकी प्रतिबंधों और राजनीतिक दखलअंदाजी की वजह से लंबे समय से राजनीतिक और आर्थिक संकट से जूझ रहा है। कई वर्षों से आर्थिक संकट से जूझ रहे वेनेजुएला में संकट तब और गहरा गया जब मौजूदा राष्ट्रपति निकोलस मादुरो को सत्ता से बेदखल करने के लिए विपक्ष के जुआन गुएडो ने खुद को राष्ट्रपति घोषित कर दिया। जुआन गुएडो के इस विद्रोह को अमेरिका एवं यूरोप के कई देशों ने समर्थन दे दिया। हालांकि रूस और चीन मौजूदा राष्ट्रपति मादुरो के साथ हैं। इस वजह से इस देश में भीषण राजनीतिक संकट पैद हो गया। दोनों नेताओं के समर्थन में वेनेजुएला में लंबे समय से गृह युद्ध जैसे हालात चल रहे हैं। काफी संख्या में यहां के लोग पड़ोसी देशों में शरण ले रहे हैं।
अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते वेनेजुएला में तेल का निर्यात लगभग पूरी तरह से ठप है और महंगाई चरम पर है। जानकारों के मुताबिक वेनेजुएला में मुद्रा स्फीर्ति दर अगले साल तक एक करोड़ को पार कर जाएगी। बहरहाल ईरान का नेतृत्व और जनता ने अमेरिकी दादागिरी के आगे न झुकने की ठान ली है। मौजूदा आर्थिक संकट से निपटने के लिए देश की सरकार ने निम्न एवं मध्यम आय वर्ग के लोगों के लिए रियायती दरों पर खाने-पीने की चीजों की आपूर्ति की व्यवस्था कर रखी है। इससे लोगों को काफी राहत है। खाने-पीने के उत्पादों की कमी को पूरा करने के लिए सरकार ने 68000 ऐसे व्यापारियों को लाइसेंस जारी कर दिया है, जो ट्रक या खच्चरों के जरिए ईराक से खाने-पीने का सामान ला रहे हैं। ईरान की सरकार ने इनके लिए सीमा शुल्क पूरी तरह से खत्म कर दिया है। प्रतिबंधों और तेल से होने वाली आय बंद होने की वजह से एक साल में डॉलर के मुकाबले ईरानी रियाल की कीमत तीन गुना से ज्यादा गिरी है। ईरानी रियाल और डॉलर के बीच इस तरह का रिश्ता है कि एक बढ़ता है तो दूसरा गिरता है। मतलब डॉलर जितना मजबूत होगा, ईरानी रियाल उतना ही कमजोर होता जाएगा। ईरान में इस वक्त मुद्रा स्फीति दर 37 फीसद पहुंच चुकी है। अमेरिकी प्रतिबंधों को ईरानी सरकार ही नहीं, वहां के आम लोग भी अनुचित मानते हैं। ईरानी लोग अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को सनकी तानाशाह मानते हैं, जो बिना सोचे-समझे फैसले लेते हैं।